व्यंग्य पर उद्धरण
व्यंग्य अभिव्यक्ति की
एक प्रमुख शैली है, जो अपने महीन आघात के साथ विषय के व्यापक विस्तार की क्षमता रखती है। काव्य ने भी इस शैली का बेहद सफल इस्तेमाल करते हुए समकालीन संवादों में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इस चयन में व्यंग्य में व्यक्त कविताओं को शामिल किया गया है।

जो अपने घर में ही सुधार न कर सका हो, उसका दूसरों को सुधारने की चेष्टा करना बड़ी भारी धूर्तता है।

व्यंग्य ख़त्म होते ही शब्द खिलौना बन जाता है।


यह ज़माना ख़ुशामद और सलामी का है। तुम विद्या के सागर बने बैठे रहो, कोई सेंत भी न पूछेगा।

पिंड खजूर से अरुचि उत्पन्न हुए व्यक्ति को इमली की इच्छा होती है।

मेरी दृष्टि में साहित्य की मौलिकता का प्रतिमान यही समाज की मंगलदृष्टि से अनुप्राणित, परंपरा प्राप्त, शात्र दृष्टि से सुसंस्कृत और लोकचित्त में सहज ही सुचिंत तत्त्वों को सरस रूप में प्रतिफलित करने में समर्थ व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। यह व्यक्तित्व जितना उज्ज्वल और शक्तिशाली होगा, साहित्य की मौलिकता उतनी उज्ज्वल और दृप्त होगी।

संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है, उतनी कटार नहीं।

हमारा युग जैसे लाठी लेकर आदर्श के पीछे पड़ा हुआ है। वह यथार्थ के ही रूप में जीवन के मुख को पहचानना चाहता है, और उसी को गढ़कर, बदलकर मनुष्य को उसके अनुरूप ढालना चाहता है। यह मनुष्य नियति का शायद सबसे बड़ा व्यंग्य है।

कुछ हमारे नवोदितों को लगता है कि बड़े शहरों में मौलिकता मिलेगी—मौलिकता युगावतारों के लिए है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere