
पुरुष को स्त्री को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उसने उसे परम रहस्य कहकर पुरस्कृत किया; लेकिन वास्तव में घमंड के बहाने उसके अधिकार की उपेक्षा की गई।

शांति और मौन का अर्थ है—शोर का अभाव, यानी वास्तव में एक बेचैन करने वाली शांति।

वास्तव में संकट इस तथ्य में है कि पुराना निष्प्राण हो रहा है और नया जन्म नहीं ले सकता।

उसने कहा, ‘वास्तविकता इतनी असहनीय हो गई है, इतनी धूमिल कि अब मैं केवल अपने सपनों के रंगों से ही अभिव्यक्त कर सकती हूँ।

जो वास्तविक लगता है उसे सत् नहीं माना जा सकता, वास्तविकता और सत् के बीच बहुत अंतर है।

क्या जिसे हम क्षितिज कहते हैं, वह वास्तविकता है? या हम ऐसा कह रहे हैं? लेकिन हम अनंत को नहीं देख सकते, इसलिए हम ऐसी काल्पनिक सीमाओं को स्वीकार कर लेते हैं।

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दूसरों में रुचि का कारण मनुष्य की स्वयं में रुचि है। यह संसार स्वार्थ से जुड़ा है। यह ठोस वास्तविकता है लेकिन मनुष्य केवल वास्तविकता के सहारे नहीं जी सकता। आकाश के बिना इसका काम नहीं चल सकता। भले ही कोई आकाश को शून्य स्थान कहे…

प्रत्येक परीकथा वर्तमान सीमाओं को पार करने की क्षमता प्रदान करती है, इसलिए एक अर्थ में परीकथा आपको वह स्वतंत्रता प्रदान करती है, जिसे वास्तविकता अस्वीकार करती है।

मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई आदमी वास्तव में किसी किताब का आनंद ले और उसे केवल एक बार पढ़े।

वास्तविकता उन संभावनाओं में से एक है, जिसे मैं नज़रअंदाज नहीं कर सकता।

आप अपना जीवन ऐसे जियो जैसे कि यह वास्तविक हो… हज़ारों चुंबनों जितना गहरा।

उस दूसरी दुनिया का समय अब पिछले हफ़्ते से ज़्यादा वास्तविक नहीं लगता।

संपूर्ण वास्तविकता शब्दों की दुनिया की नक़ल करने का एक व्यर्थ प्रयास था।

शांति और मौन का अर्थ है—शोर का अभाव, यानी वास्तव में एक बेचैन करने वाली शांति।

वास्तविकता को प्रचुर कल्पना से हराया जा सकता है।

मैं अब नहीं मानती कि हम चुप रह सकते हैं। हम वास्तव में ऐसा कभी नहीं करते, ध्यान रहे।

सिर्फ़ उन चीज़ों के बारे में लिखिए जिनमें वास्तव में आपकी रुचि है; वे चाहे वास्तविक हों या काल्पनिक, और किसी चीज़ के बारे में नहीं।

प्रत्येक भाषा आपको वास्तविकता के अपने हिस्से तक पहुँच प्रदान करती है।

मृत्यु वास्तव में मानवता के लिए एक महान वरदान है, इसके बिना कोई वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती।

जो दिखाई दे वह यथार्थ हो यह ज़रूरी नहीं।

जैसे समुद्र और आकाश के बीच, यात्री और समुद्र के बीच का अंतर बताना मुश्किल है; वैसे ही हक़ीक़त और दिल की भावनाओं के बीच अंतर करना कठिन है।

बुर्जुआ वर्ग को जो बनाता है—वह उसका रवैया, रुचि या शिष्टाचार नहीं है। यह उसकी आकांक्षाएँ भी नहीं हैं। बुर्जुआ वर्ग सर्वोपरि सटीक आर्थिक वास्तविकताओं का प्रत्यक्ष उत्पाद है।

कोई सच्चाई नहीं है। केवल धारणा है।

बजाय इसके कि मेरा प्रियतम मेरी बचकानी कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलने की अनुमति न दे : उसे मुझे उनसे परे जाने में मदद करनी चाहिए।

विकट यथार्थ की स्थिति में, चेतना कल्पना की जगह ले लेती है।

जो कुछ आपने नहीं दिया है, वह वास्तव में कभी भी आपका नहीं होगा।

मेरे जीवन में मेरी रबड़ हमेशा मेरी पेंसिल से पहले ख़त्म हो जाती है, क्योंकि मैंने अपनी सच्चाइयाँ लिखने के बजाय उन्हें रख लिया और दूसरों की गलतियाँ मिटा दीं।

वास्तविकता घिसी-पिटी होती है, जिससे हम रूपक का इस्तेमाल करके बच जाते हैं।

तुम लोग इज़्ज़तों में और पर्दों में रहकर जाने किन-किन व्यर्थताओं को अपने साथ लपेट लेते हो और उनमें गौरव मानते हो। यह सब तुम लोगों की झूठी सभ्यता है, ढकोसला है। फिर कहते हो, हम सच को पाना चाहते हैं। तुम्हारा सच कपड़ों में है, लिबास में है और सच्चाई से डरने में है।

मनुष्य के भीतर जो कुछ वास्तविक है, उसे छिपाने के लिए जब वह सभ्यता और शिष्टाचार का चोला पहनता है, तब उसे संभालने के लिए व्यस्त होकर कभी-कभी अपनी आँखों में ही उसको तुच्छ बनना पड़ता है।

हर वह मनुष्य जिसके हृदय में कोई संदेह नहीं है, वह यह बात पूर्ण रूप से समझ लेगा, कि एक हस्ती के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है।

अपनी आत्मा को जानो, अपने वास्तविक आत्मा को ईश्वर जानो और उसे अन्य सब के आत्मा के साथ एक जानो।

मैं कौन हूँ और कौन नहीं हूँ, इसको जानने में मैंने बहुत-सी चीज़ें जान ली हैं। और वह कौन है और कौन नहीं है इसी को जानने में बहुत-सी चीज़ें मैंने खो दी हैं।

जिस प्रकार दीपक को प्रकाशित करने के लिए किसी अन्य दीपक की अपेक्षा नहीं होती, उसी प्रकार बोध आत्म-स्वरूप होने के कारण उसे किसी अन्य बोध की अपेक्षा नहीं होती।

भयावह यथार्थ के सम्मुख ‘धर्म’ जैसी चीज़ कितनी काल्पनिक जान पड़ती है!

हक़ीक़त एक डोनट की तरह है: जो भी अच्छा, मज़ेदार और रसदार है, वह केंद्र के बाहर है, और केंद्र अगर कुछ है तो सिर्फ़ ख़ालीपन।

वास्तविकता बूढ़ी हो गई है और भ्रमित हो गई है; आख़िरकार, यह भी हर जीवित जीव की तरह उन ही क़ानूनों के अधीन है—यह उम्र बढ़ती है।

आप दुनिया को बदलने के लिए लिखते हैं… अगर आप लोगों के वास्तविकता को देखने के तरीक़े में एक मिलीमीटर का भी बदलाव कर देते हैं, तो आप इसे बदल सकते हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere