हमारी यथार्थ अर्थवत्ता हमारे अपने बीच में नहीं है, वह समस्त जगत के मध्य फैली हुई है।
भागो-भागो यथार्थ तुम्हारा पीछा कर रहा है।
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यथार्थ के प्रति मनुष्य की जानकारी बदलती रहती है या दूसरे शब्दों में वह विकसित होती रहती है। तब उस यथार्थ विशेष का बोध कराने वाले शब्द का अर्थ भी बदलता रहता है।
शांति और मौन का अर्थ है—शोर का अभाव, यानी वास्तव में एक बेचैन करने वाली शांति।
प्रकृति में प्रत्यक्ष की हम प्रतीति करते हैं, साहित्य और ललिल कला में अप्रत्यक्ष हमारे निकट प्रतीयमान होता है।
पुरुष को स्त्री को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उसने उसे परम रहस्य कहकर पुरस्कृत किया; लेकिन वास्तव में घमंड के बहाने उसके अधिकार की उपेक्षा की गई।
दुनिया में दु:ख तो बहुत हैं, परंतु अगम-अगाध गंभीर दु:ख बहुत ही कम! ठीक वैसे ही जैसे कामबोध की खुजलाहट तो सबके पास है, परंतु निर्मल उदात्त प्रेम की क्षमता बिरले के ही पास होती है।
वास्तव में संकट इस तथ्य में है कि पुराना निष्प्राण हो रहा है और नया जन्म नहीं ले सकता।
मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई आदमी वास्तव में किसी किताब का आनंद ले और उसे केवल एक बार पढ़े।
जो वास्तविक लगता है उसे सत् नहीं माना जा सकता, वास्तविकता और सत् के बीच बहुत अंतर है।
क्या जिसे हम क्षितिज कहते हैं, वह वास्तविकता है? या हम ऐसा कह रहे हैं? लेकिन हम अनंत को नहीं देख सकते, इसलिए हम ऐसी काल्पनिक सीमाओं को स्वीकार कर लेते हैं।
उसने कहा, ‘वास्तविकता इतनी असहनीय हो गई है, इतनी धूमिल कि अब मैं केवल अपने सपनों के रंगों से ही अभिव्यक्त कर सकती हूँ।
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दूसरों में रुचि का कारण मनुष्य की स्वयं में रुचि है। यह संसार स्वार्थ से जुड़ा है। यह ठोस वास्तविकता है लेकिन मनुष्य केवल वास्तविकता के सहारे नहीं जी सकता। आकाश के बिना इसका काम नहीं चल सकता। भले ही कोई आकाश को शून्य स्थान कहे…
प्रत्येक परीकथा वर्तमान सीमाओं को पार करने की क्षमता प्रदान करती है, इसलिए एक अर्थ में परीकथा आपको वह स्वतंत्रता प्रदान करती है, जिसे वास्तविकता अस्वीकार करती है।
वास्तविकता उन संभावनाओं में से एक है, जिसे मैं नज़रअंदाज नहीं कर सकता।
आप अपना जीवन ऐसे जियो जैसे कि यह वास्तविक हो… हज़ारों चुंबनों जितना गहरा।
एक फ़ोटोग्राफ़र का जो कौशल होता है, उसका योग वस्तु के बाह्य रूप के साथ होता है और एक शिल्पी का जो योग होता है, वह उसके भीतर-बाहर के साथ वस्तु के भीतर-बाहर का योग होता है, और उस योग का पंथ होता है कल्पना और यथार्थ घटना—दोनों का समन्वय कराने वाली साधना।
प्रत्येक भाषा आपको वास्तविकता के अपने हिस्से तक पहुँच प्रदान करती है।
मृत्यु वास्तव में मानवता के लिए एक महान वरदान है, इसके बिना कोई वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती।
जो दिखाई दे वह यथार्थ हो यह ज़रूरी नहीं।
जैसे समुद्र और आकाश के बीच, यात्री और समुद्र के बीच का अंतर बताना मुश्किल है; वैसे ही हक़ीक़त और दिल की भावनाओं के बीच अंतर करना कठिन है।
उस दूसरी दुनिया का समय अब पिछले हफ़्ते से ज़्यादा वास्तविक नहीं लगता।
संपूर्ण वास्तविकता शब्दों की दुनिया की नक़ल करने का एक व्यर्थ प्रयास था।
शांति और मौन का अर्थ है—शोर का अभाव, यानी वास्तव में एक बेचैन करने वाली शांति।
वास्तविकता को प्रचुर कल्पना से हराया जा सकता है।
मैं अब नहीं मानती कि हम चुप रह सकते हैं। हम वास्तव में ऐसा कभी नहीं करते, ध्यान रहे।
सिर्फ़ उन चीज़ों के बारे में लिखिए जिनमें वास्तव में आपकी रुचि है; वे चाहे वास्तविक हों या काल्पनिक, और किसी चीज़ के बारे में नहीं।
विकट यथार्थ की स्थिति में, चेतना कल्पना की जगह ले लेती है।
बजाय इसके कि मेरा प्रियतम मेरी बचकानी कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलने की अनुमति न दे : उसे मुझे उनसे परे जाने में मदद करनी चाहिए।
कोई सच्चाई नहीं है। केवल धारणा है।
जो कुछ आपने नहीं दिया है, वह वास्तव में कभी भी आपका नहीं होगा।
वास्तविकता घिसी-पिटी होती है, जिससे हम रूपक का इस्तेमाल करके बच जाते हैं।
मेरे जीवन में मेरी रबड़ हमेशा मेरी पेंसिल से पहले ख़त्म हो जाती है, क्योंकि मैंने अपनी सच्चाइयाँ लिखने के बजाय उन्हें रख लिया और दूसरों की गलतियाँ मिटा दीं।
विज्ञान में सत्य-मिथ्या का विचार ही अंतिम विचार होता है। इसी कारण से वैज्ञानिक की अंतिम अपील, विचारक के व्यक्तिगत संस्कार के ऊपर प्रमाण में होती है।
बुर्जुआ वर्ग को जो बनाता है—वह उसका रवैया, रुचि या शिष्टाचार नहीं है। यह उसकी आकांक्षाएँ भी नहीं हैं। बुर्जुआ वर्ग सर्वोपरि सटीक आर्थिक वास्तविकताओं का प्रत्यक्ष उत्पाद है।
वास्विकता एक फ़ार्मूला नहीं है।
नींद में आदमी जो सपना देखता है, उसे वह सही मानता है। जब उसकी नींद खुलती है तभी उसे अपनी ग़लती मालूम होती है। ऐसी ही दशा सभ्यता के मोह में फँसे हुए आदमी की होती है।
सभी शास्त्रों का विरोध करने वाली प्रतिज्ञा सर्वागमविरोधिनी प्रतिज्ञा कहलाती है। यथा, शरीर पवित्र है, प्रमाण तीन हैं अथवा प्रमाण हैं ही नहीं।
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वाल्मीकि ने यथार्थ की ठोस बंजर ज़मीन पर चलते हुए, उस पर जीवन की महनीय आदर्शों का प्रासाद खड़ा किया है।
सुंदर कृति के सभी रचनाकार अपने को गुप्त रखते हैं, किंतु, जो सुंदर होता है वह अपने आप आगे आ जाता है।
किसी यथार्थ के मिट जाने पर यह आवश्यक नहीं है कि उससे संबंधित शब्द भी मिट जाए, उस मृत यथार्थ का बोध कराने वाला शब्द—किसी दूसरे यथार्थ का बोधक बन जाता है।
जो प्रतिज्ञा प्रत्यक्ष प्रमाण से ही बाधित हो, अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण से ही अयथार्थ (असत्य) सिद्ध हो जाए, उसे प्रत्यक्षबाधिनी प्रतिज्ञा कहते हैं। यथा, अग्नि शीतल है, रूप का अस्तित्व नहीं है, चंद्रमा उष्ण है।
अपनी व्यक्तिगत सत्ता की अलग भावना से हटाकर निज के योगक्षेम के संबंध से मुक्त करके, जगत की वास्तविक दशाओं में जो हृदय समय-समय पर रमता है, वही सच्चा कवि हृदय है।
आधुनिक हिंदी काव्य में वास्तविक प्रणय-भावना, बहुत थोड़ी जगह और बहुत अल्प मात्रा में है।
वास्तविक संवेदनाओं का चित्रण हिंदी में बहुत ही कम हुआ है।
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प्राचीन ग्रंथों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि शब्द और यथार्थ के तात्कालिक संबंध को ऐतिहासिक दृष्टि से समझा जाए।
तुम लोग इज़्ज़तों में और पर्दों में रहकर जाने किन-किन व्यर्थताओं को अपने साथ लपेट लेते हो और उनमें गौरव मानते हो। यह सब तुम लोगों की झूठी सभ्यता है, ढकोसला है। फिर कहते हो, हम सच को पाना चाहते हैं। तुम्हारा सच कपड़ों में है, लिबास में है और सच्चाई से डरने में है।
मनुष्य के भीतर जो कुछ वास्तविक है, उसे छिपाने के लिए जब वह सभ्यता और शिष्टाचार का चोला पहनता है, तब उसे संभालने के लिए व्यस्त होकर कभी-कभी अपनी आँखों में ही उसको तुच्छ बनना पड़ता है।
वास्तविकता हमेशा, अनिवार्य रूप से अटूट नियम की भाँति उलझी हुई होती है। उसमें दिक् और काल, भूगोल और इतिहास, व्यक्ति और समाज, चरित्र और परिस्थिति, आलोचक मन और आलोचित आत्म-व्यक्तित्व—आदि-आदि घनिष्ठ रूप में बिंधे हुए होते हैं।
जिसकी स्मरण-शक्ति अत्यंत प्रखर है; वह किसी विषय का यथार्थ, हू-ब-हू विवरण दे देता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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