बाज़ार पर कविताएँ

सामान्य अर्थ में बाज़ार

वह स्थान है जहाँ वस्तुओं का क्रय-विक्रय संपन्न होता है। विशिष्ट अर्थों में यह कभी जगत का पर्याय हो जाता है तो आधुनिक पूँजीवादी संकल्पनाओं में लोक के आर्थिक सामर्थ्य की सीमितता का सूचक। प्रस्तुत चयन में विभिन्न अर्थों और प्रसंगों में बाज़ार का संदर्भ लेती कविताओं का संकलन किया गया है।

एक दिन

सारुल बागला

अजनबी शहर में

संजय कुंदन

पैसा पैसा

नवीन सागर

मेरे अभाव में

अखिलेश सिंह

सीलमपुर की लड़कियाँ

आर. चेतनक्रांति

जाग मछंदर

दिनेश कुमार शुक्ल

याचना

सुमित त्रिपाठी

बहुत दिखना

अखिलेश सिंह

बच्चे

अमिताभ

इस्तेमाल

अनीता वर्मा

बीमा एजेंट

सौरभ राय

उत्पाद

निशांत कौशिक

होटल

मंगलेश डबराल

रास्ते में

राजेश सकलानी

और अंत में

विनय सौरभ

छलाँग

नारायण सुर्वे

इमारतें

हरि मृदुल

फेरीवाला

शक्ति महांति

वहाँ कोई बच्ची नहीं थी

हरीशचंद्र पांडे

विज्ञापन

अनीता वर्मा

हार्डवेयर की दुकान

आर. चेतनक्रांति

कला के हथियार

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

गैस चैंबर

दीपक जायसवाल

कैसी बात करें जो तुमको भाए

कृष्ण मुरारी पहारिया

अश्वगाथा

कैलाश वाजपेयी

आइसक्रीम

ऋतुराज

छोटी-सी शॉपिंग

निदा फ़ाज़ली

अबकी दीवाली

अबुल हाशिम ख़ान

सोनागाछी का मतलब

जोशना बैनर्जी आडवानी

चौराहा और पुस्तकालय

खेमकरण ‘सोमन’

हाट की बात

विनय सौरभ

बाबू को ख़त

अखिलेश सिंह

टाई

हरि मृदुल

घर से जाते हुए

अपूर्वा श्रीवास्तव

बाज़ार होता शहर

परमेंद्र सिंह

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere