लोक पर उद्धरण
लोक का कोशगत अर्थ—जगत
या संसार है और इसी अभिप्राय में लोक-परलोक की अवधारणाएँ विकसित हुई हैं। समाज और साहित्य के प्रसंग में सामान्यतः लोक और लोक-जीवन का प्रयोग साधारण लोगों और उनके आचार-विचार, रहन-सहन, मत और आस्था आदि के निरूपण के लिए किया जाता है। प्रस्तुत चयन में लोक विषयक कविताओं का एक विशेष और व्यापक संकलन किया गया है।

जिन लोगों के मन में केशव के काव्य के बारे में रूखेपन और पाण्डित्य का भ्रम है, उन्हें कदाचित् यह पता नहीं है कि केशव हिंदी के उत्तर-मध्य युग के कवियों में सबसे अधिक व्यवहारविद्, लोक-कुशल और मनुष्य के स्वभाव के मर्मज्ञ कवि हैं।

सूक्ष्म अभिव्यक्ति के लिए लोकभाषाओं से बल प्राप्त करना ही होगा।
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एक ख़ास तरह का मध्यवर्ग शहर में विकसित होता रहा है, जो गाँवों से आया है। आधुनिक हिंदी साहित्य उन्हीं लोगों का साहित्य है।

यमुना अद्भुत रसमय चरित्र के साथ हमारे मानस लोक में प्रतिष्ठित है।

लोक तो वेद के आगे-आगे चलता है और इसी से पंचांग की घोषित तिथि से पंद्रह दिन पहले ही लोक-मानस मान लेता है कि संवत्सर बदल गया।

फगुनी हवा का परस लोक को उत्तेजना देता है और सभ्यता का ओढ़ना लोग उतार फेंकते हैं।

ब्रज के हवा-पानी में ही वह रस है जो घूँघट का पट विदीर्ण कर देता है।

जो शब्द जितने लंबे समय से लोक-व्यवहार में रहता है, उस पर उतनी ही ज़्यादा मानवीय जीवन की ऐतिहासिक छाप पड़ती चली जाती है।

मेरी आधुनिकता में मेरे गाँव और शहर के बीच का संबंध किस तरह घटित होता है, इस प्रश्न की विकलता मेरे भाव-बोध का एक अनिवार्य हिस्सा है।

मेरी आधुनिकता की एक चिंता यह है कि उसमें लालमोहर कहाँ है? मेरी बस्ती के आख़िरी छोर पर रहने वाला लालमोहर वह जीती-जागती सचाई है, जिसकी नीरंध्र निरक्षरता और अज्ञान के आगे मुझे अपनी अर्जित आधुनिकता कई बार विडंबनापूर्ण लगने लगती है।

बहैसियत एक रचनाकार के मेरे लिए आधुनिकता सबसे पहले मेरा अनुभव है।

जन-रागिनी और उसकी अंत:श्रद्धा जाने कितनी घटनाओं को अपनी गहराई के जादू से दैवी रूप प्रदान कर देती है, इतिहास विफल रहता है, कला समय का आघात बर्दाश्त नहीं कर पाती और साहित्य कभी-कभी पन्नों में सोया रह जाता है, किन्तु लोक-रागिनी का स्वर आँधी-पानी के बीच समय की उद्दाम-धारा के बहाव के बीच, विस्मृति के कितने अभिचारों के बीच भी शाश्वत बना रहता है और यद्यपि यह नहीं पता चलता कि किस युग से, किस घटना से और किस देश से उसका संबंध है और यह भी नहीं पता चलता कि उसके कितने संस्करण अपने-आप अनजाने कण्ठों द्वारा हो गए हैं, पर उसमें जो सत्य सत्त बनकर खिंच आता है, उसे कोई भी हवा उड़ा नहीं पाती, क्योंकि वह सत्य बहुत भारी होता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere