देश पर उद्धरण
देश और देश-प्रेम कवियों
का प्रिय विषय रहा है। स्वंतत्रता-संग्राम से लेकर देश के स्वतंत्र होने के बाद भी आज तक देश और गणतंत्र को विषय बनाती हुई कविताएँ रचने का सिलसिला जारी है।

अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।

अपने देश के प्रति मेरा जो प्रेम है, उसके कुछ अंश में मैं अपने जन्म के गाँव को प्यार करता हूँ। और मैं अपने देश को प्यार करता हूँ पृथ्वी— जो सारी की सारी मेरा देश है—के प्रति अपने प्रेम के एक अंश में। और मैं पृथ्वी को प्यार करता हूँ अपने सर्वस्व से, क्योंकि वह मानवता का, ईश्वर का, प्रत्यक्ष आत्मा का निवास-स्थान है।

जब देश में कोई विशेष नियम प्रतिष्ठित होता है, तब वह एक ही दिन में नहीं, बल्कि बहुत धीरे-धीरे संपन्न हुआ करता है। उस समय वे लोग पिता नहीं होते, भाई नहीं होते, पति नहीं होते-होते हैं केवल पुरुष। जिन लोगों के संबंध में वे नियम बनाए जाते है, वे भी आत्मीया नहीं होती, बल्कि होती हैं केवल नारियाँ।

स्त्री का हृदय सर्वत्र एक है; क्या पूर्व क्या पश्चिम, क्या देश क्या विदेश |

दया और क्षमा भी मानव के धर्म हैं, तो शक्तिवान होना और उपयुक्त समय पर देश और धर्म की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करना भी धर्म है।

जिस देश में आपने जन्म लिया है, उसके प्रति कर्त्तव्य पालन करने से बढ़कर संसार में कोई दूसरा काम है ही नहीं।

हम अपने देश का ‘पुनर्निर्माण’ बिना उसकी भाषा के पुनर्निर्माण के नहीं कर सकते। लोगों के बात करने का लहजा बदलिए और देखिए कि आपने उनके व्यवहार को बदल दिया है।

जिस चिह्न से जो देश युक्त होता है और जिससे जिसकी पहचान होती है, विद्वानों का कहना है कि उस देश का वही नाम रखना चाहिए।

मैं नहीं चाहता कि मेरे लिए कोई स्मारक बनवाया जाए, या मेरी प्रतिमा खड़ी की जाए। मेरी कामना केवल यही है कि लोग देश से प्रेम करते रहें और आवश्यकता पड़ने पर उसके लिए प्राण भी न्यौछावर कर दें।

हमें यह मान लेना चाहिए कि कोई किसी दूसरे देश में इसलिए विदेशी बन जाता है, क्योंकि वह अंदर से पहले से ही विदेशी होता है?

हिन्दुस्तान का उद्धार हिन्दुस्तान की जनता पर निर्भर है। जनता में अपनी योग्यता के अनुसार यह भाव पैदा करना प्रत्येक स्वदेशवासी का परम धर्म है।

अगर केवल सही व्यक्ति को देश छोड़ना होता, तब बाक़ी सभी लोग देश में रह सकते थे।

देशभक्त स्वदेश के लिए जीता है क्योंकि उसे जीना ही चाहिए, स्वदेश के लिए ही मर जाता है क्योंकि देश की यह माँग होती है।

आज मैं देश से बाहर हूँ, देश से दूर हूँ, परंतु मन सदा वहीं रहता है और इसमें मुझे कितना आनंद अनुभव होता है।

दान देना अपना कर्त्तव्य है, ऐसे भाव से जो दान देश, काल और पात्र के प्राप्त होने पर प्रत्युपकार न करने वाले के लिए दिया जाता है, वह सात्त्विक दान है।

धीर और मनस्वी मनुष्य के लिए क्या अपना देश है और क्या विदेश है? वह तो जिस देश में जाता है, उसी को अपने भुजा-बल से अपने वश में कर लेता है।

देश का अर्थ मिट्टी नहीं है। देश का अर्थ जन-समुदाय है।

देश की रक्षा राजा की सेना नहीं करती! देश की प्रजा करती है।

क्या मैं अपने ही देश में ग़ुलामी करने के लिए ज़िंदा रहूँ? नहीं, ऐसी ज़िंदगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।

लोगों को अपनी भाषा की असीम उन्नति करनी चाहिए, क्योंकि सच्चा गौरव उसी भाषा को प्राप्त होगा जिसमें अच्छे अच्छे विद्वान जन्म लेंगे और उसी का सारे देश में प्रचार भी होगा।

काम का अंदाज़ा यह है कि इस मुल्क में ऐसे कितने लोग हैं—जिनकी आँखों से आँसू बहते हैं, उनमें से कितने आँसू हमने पोंछे, कितने आँसू हमने कम किए। वह अंदाज़ा है इस मुल्क की तरक़्क़ी का, न कि इमारतें जो हम बनाएँ, या कोई शानदार बात जो हम करें।

जब मैं विदेश में रहता हूँ, तो मेरा यह नियम है कि अपने देश की सरकार की आलोचना या उस पर प्रहार नहीं करता। जब मैं स्वदेश वापस आता हूँ तो खोए समय की कमी पूरी कर लेता हूँ।

किसी देश में उस समय तक एकता और प्रेम नहीं हो सकता, जब तक उस देश के निवासी एक-दूसरे के दोषों पर ज़ोर देते रहते हैं।

ज़माने की हवा का रुख पहिचानकर देश के नेता अपने कार्यक्रम में सुधार नहीं करते हैं तो ज़माना आगे निकल जाएगा और नेता पीछे रह जाएँगे। ज़माना नेताओं के लिए रुका नहीं रहेगा।

माताएँ ही सब संसार को उठा सकती हैं। माताएँ ही देश को उठा या गिरा सकती हैं। माताएँ ही प्रकृति के ज्वार में उतार और प्रवाह ला सकती हैं। महापुरुष सदा ही श्रेष्ठ माताओं के पुत्र हुआ करते हैं।

धर्म सत्य है। सत्य देश और काल से अबाधित होता है। देश बदल जाने पर धर्म नहीं बदलता। काल बदल जाने पर धर्म नहीं बदलता।

बड़े राष्ट्र की पहचान यही है कि अपने समाजों में साथ-साथ रहने-पहनने का चाव और स्वीकारने-अस्वीकारने का माद्दा जगाता है।

बुद्धिमान पुरुष देश और काल को अपने अनुकूल पाकर पराक्रम प्रकट करे। देशकाल की अनुकूलता न होने पर किया गया पराक्रम निष्फल होता है।

हिन्दू के नाते मैं यह अनुभव करता हूँ कि मेरे देश के साथ किया गया अन्याय ईश्वर का अपमान है। मेरे देश का कार्य भगवान राम का कार्य है। उसकी सेवाएँ ही श्रीकृष्ण सेवाएँ हैं।

राजनीति से देश का कल्याण न होगा, धर्म का डंका पीटने से भी कुछ न होगा, अर्थनीति से भी अपनी कमी दूर न होगी जन्मभूमि पर प्रेम हो—जीवंत प्रेम। वह प्रेम आत्मा, संपत्ति और संतान से भी बड़ा हो—जिस प्रेम से छोटे-बड़े सब को एक नज़र से देखा जा सके।

तत्त्वतः देशभक्ति का अर्थ है देश से प्रेम। और एडमंड बर्क के शब्दों का प्रयोग करते हुए हम कहें तो "यदि तुम्हें अपने देश से प्रेम करना है तो देश को सुंदर होना ही चाहिए।" यदि हमारा देश उन मानदंडों पर खरा नहीं उतरता जिनसे उसकी जनता उससे प्रेम करे तो हमें उसकी सहायता करनी चाहिए जिससे वह उन मानदंडों पर खरा उतर सके।


पुत्र रूप एक जन और माता रूप भूमि के मिलन से ही देश की सृष्टि होती है।

आजकल समता का सिद्धांत जो प्रचलित हो रहा है, उससका आधार प्रेम नहीं, यही संपत्ति और प्रभुत्व है। वैज्ञानिकों के ज्ञान और नीतिज्ञों की नीति—दोनों का लक्ष्य इसी सपत्ति और प्रभुत्व की वृद्धि है। उसी के कारण जीवन में संघर्ष है और देश में युद्ध है।

अद्भुत सहनशीलता है इस देश के आदमी में! और बड़ी भयावह तटस्थता! कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले, तो वह दान का मंत्र पढ़ने लगता है।

काष्ठा, कला, मुहूर्त, दिन, रात, लव, मास, पक्ष, छह ऋतु, संवत्सर और कल्प इन्हें 'काल' कहते हैं तथा पृथ्वी को 'देश' कहा जाता है। इनमें से देश का तो दर्शन होता है किंतु काल दिखाई नहीं देता। अभीष्ट मनोरथ की सिद्धि के लिए जिस देश और काल को उपयोगी मानकर उसका विचार किया जाता है, उसको ठीक-ठीक ग्रहण करना चाहिए।

देश की सच्ची संपत्ति है उसके वे युवक और युवतियाँ जिनके शरीर की आभा में प्रकृति का सबसे अधिक स्पष्ट दर्शन होता है। और जिनके हृदय में उदारता और कर्मण्यता, सहिष्णुता और अदम्य साहस के स्रोत का प्रवाह पूरे ज़ोरों पर है।

प्रत्येक सद्ग्रंथ में दो तरह की बातें हुआ करती हैं, एक सामयिक, नश्वर, देशविशेष और कालविशेष से संबंध रखनेवाली और दूसरी शाश्वत, अविनश्वर, सब कालों और देशों के लिए समान रूप से उपयोगी और व्यवहार्य।

शहीदों के मज़ारों पर लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशां होगा।

क्या मेरे लिए इससे बढ़कर कोई इज़्ज़त हो सकती है। कि सबसे पहला और अव्वल मुसलमान हूँ जो आज़ादिये वतन की ख़ातिर फाँसी पा रहा है?

इस देश में लड़की के दिल में जाना हो, तो माँ-बाप के दिल की राह से जाना होता है।

क्या कभी वह रोशनी ख़त्म हो सकती है जो महात्मा गांधी ने इस देश में दुनिया में डाली? आज से हज़ार वर्षं बाद भी यह रोशनी चमकेगी और इस देश को और दुनिया को चमकाएगी।

मुझे लगता है कि गेंद बल्ला या बाल-बैट इस ग़रीब देश के लिए ठीक नहीं। हमारे देश में निर्दोष और कम ख़र्च वाले बहुत से खेल हैं।

अपने देश या अपने शासक के दोषों के प्रति सहानुभूति रखना या उन्हें छिपाना देशभक्ति के नाम को लजाना है, इसके विपरीत देश के दोषों का विरोध करना सच्ची देश-भक्ति है।

ओ मेरे स्नेही देश! तुम्हारी दुखी कुटिया में स्वर्ग की शांति है। ऐसी प्रीति, सहज प्राणस्पर्शी भाषा और सेवा का महिमामय त्याग, मैं कहाँ पाऊँगी?

बदसूरती आम हिंदुस्तानी आँख को दिखाई ही नहीं देती।

बाहरी चमक-दमक होते हुए भी कोई देश भीतर से खोखला हो सकता है।

शरीर के महत्त्व को, अपने देश के महत्त्व को समझने के लिए बीमार होना बेहद ज़रूरी बात है।

जब तक देश में पवित्रता नहीं आती तब तक बल नहीं आता।

कैसी दयनीय बात है कि हम स्वदेश की रक्षार्थ एक बार मर सकते हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere