बाज़ार पर उद्धरण

सामान्य अर्थ में बाज़ार

वह स्थान है जहाँ वस्तुओं का क्रय-विक्रय संपन्न होता है। विशिष्ट अर्थों में यह कभी जगत का पर्याय हो जाता है तो आधुनिक पूँजीवादी संकल्पनाओं में लोक के आर्थिक सामर्थ्य की सीमितता का सूचक। प्रस्तुत चयन में विभिन्न अर्थों और प्रसंगों में बाज़ार का संदर्भ लेती कविताओं का संकलन किया गया है।

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मैंने एक दिन बाज़ार में एक कुम्हार को देखा जो मिट्टी के टुकड़े को अपने पैरों से रौंद रहा था। वह मिट्टी अपनी जिह्वा से उससे यह शब्द कह रही थी—कभी मैं भी तेरी तरह मनुष्य के रूप में थी और मुझमें भी ये सब बातें वर्तमान थीं।

उमर ख़य्याम
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मैं ऐसा नहीं मानता कि विश्व-बाज़ार कविता को निगल जाएगा और कविता हमेशा के लिए अपना प्रभाव खो देगी।

केदारनाथ सिंह
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विश्व-बाज़ार विश्व-समाज की नई गतिविधि है और उसमें बहुत कुछ ऐसा हो सकता है जिससे नए ढंग की कविता जन्म ले।

केदारनाथ सिंह
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बाज़ार चाहे भी तो भाषा के बिना ज़िंदा नहीं रह सकता जबकि भाषा की प्रकृति में वह अंतर्निहित शक्ति होती है कि वह बाज़ार के साथ भी ज़िंदा रहे और बाज़ार के बिना भी ज़िंदा रह सके।

केदारनाथ सिंह
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बाज़ार वह जगह है जहाँ स्वागत किया जाता है, अंगीकृत किया जाता है, सजाया जाता है, बेचा जाता है और फ़ालतू भी कर दिया जाता है।

ज्ञानरंजन

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere