
मेरी आत्मा को छोड़कर, हर चीज़, धूल का हर कण, पानी की हर बूँद, भले ही अलग-अलग रूपों में हो, अनंत काल तक अस्तित्व में रहती है?

जितना आप प्रकट होते हैं और जहाँ आप प्रकट होते हैं, अपने आप पर उतना ही और केवल वहीं विश्वास करें। जो देखा नहीं जा सकता, फिर भी अस्तित्व में है, सर्वत्र है और शाश्वत है। आख़िरकार हम वही हैं।

संभवतः मेरे जीवन का अस्ल मक़सद मेरे शरीर, मेरी संवेदनाओं और मेरे विचारों को लेखन बनाने के लिए हो, दूसरे शब्दों में : कुछ समझ में आने लायक़ और सार्वभौमिक हो, जिससे मेरा अस्तित्व अन्य लोगों के जीवन और मस्तिष्क में विलीन हो जाए।

मानव अस्तित्व इतनी भंगुर चीज़ है और इस तरह के ख़तरों से घिरा हुआ है कि मैं बिना सिहरे प्यार नहीं कर सकती हूँ।

मैंने अपना साहित्यिक अस्तित्व ऐसे व्यक्ति जैसा बनाना शुरू कर दिया, जो इस तरह रहता है जैसे उसके अनुभव किसी दिन लिखे जाने थे।

जो कुछ आप महसूस करते हो, वह ख़ुद-ब-ख़ुद अपना अस्तित्व पाएगा।

शिकायत—अगर मेरा अस्तित्व शाश्वत हो जाए, तो फिर कल मेरा अस्तित्व कैसा होगा?

प्रेम में, अगर वह सचमुच ‘प्रेम’ है, एक वायदा ज़रूर होता है—कि मैं अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व की तहों से अपने ‘प्रेमी’ या ‘प्रेमिका’ को उसके व्यक्तित्व और अस्तित्व की तहों तक प्रेम करता हूँ।


बुराई उदासीनता पर फलती-फूलती है और इसके बिना अस्तित्व में नहीं हो सकती है।

हे संजय! ज्ञान का विधान भी कर्म को साथ लेकर ही है, अतः ज्ञान में भी कर्म विद्यमान है। जो कर्म के स्थान पर कर्मों के त्याग को श्रेष्ठ मानता है, वह दुर्बल है, उसका कथन व्यर्थ ही है।

यह उन्मत्त उत्सव, ये रासक गान, ये शृंगक सीत्कार, ये अबीर-गुलाल, ये चर्चरी और पटह मनुष्य की किसी मानसिक दुर्बलता को छिपाने के लिए है, ये दुःख भुलाने वाली मदिरा है, ये हमारी मानसिक दुर्बलता के पर्दे है। इनका अस्तित्व सिद्ध करता है कि मनुष्य का मन रोगी है, उसकी चिंता-धारा आविल है, उसका पारस्परिक संबंध दुःखपूर्ण है।

पार्वती और गंगा हमारे अस्तित्व का ही मेरुदंड है। हमारे भीतर और बाहर जो कुछ उत्तम है, जो कुछ सुंदर है, जो कुछ पवित्र है, उसको प्रतीक रूप में पार्वती और गंगा व्यक्त करती हैं।

जीवन में जो दिखाई पड़ता है, उसकी ही नहीं, उसकी भी सत्ता है, जो कि दिखाई नहीं पड़ता है।


संसार का अस्तित्व वर्षा पर आधारित होने के कारण वही संसार की सुधा कहलाने योग्य है।

समाज में स्थित विभिन्न नगरीय तथा राजनैतिक संस्थाओं की अस्तित्व में स्थित व्यवस्था को अमान्य करना—यह विद्रोही साहित्य का लक्ष्य होता है।

बेहया दूसरे की बाढ़ को रोकने वाली वनस्पति है।

अस्तित्व और अनस्तित्व—यही तो प्रश्न है।

तुझे केवल दो बातों का स्मरण रखना उचित है—प्रथम यह कि तू ममत्व की बाधा को दूर कर दे। द्वितीय यह कि तू अस्तित्व के मैदान को पार कर जा।

मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है जिसके लिए अपना ही अस्तित्व एक समस्या है, जो उसे स्वयं हल करना है।

वस्तु की अपनी भावात्मक अभिव्यक्ति है जो रसिक के मन को प्रभावित करने में कला के अलावा भी अपना असर रखती है।

तुम्हारा अपना रास्ता है, मेरा अपना और जहाँ तक सही और एकमात्र रास्ते का सवाल है तो ऐसे किसी रास्ते का अस्तित्व नहीं है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere