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स्वप्न पर कविताएँ

सुप्तावस्था के विभिन्न

चरणों में अनैच्छिक रूप से प्रकट होने वाले दृश्य, भाव और उत्तेजना को सामूहिक रूप से स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न के प्रति मानव में एक आदिम जिज्ञासा रही है और विभिन्न संस्कृतियों ने अपनी अवधारणाएँ विकसित की हैं। प्रस्तुत चयन में स्वप्न को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध

गीत नया गाता हूँ

अटल बिहारी वाजपेयी

उदास लड़के

घुँघरू परमार

प्रेम के आस-पास

अमर दलपुरा

सपने

पाश

जाने से पहले

गीत चतुर्वेदी

बड़बड़

नाज़िश अंसारी

एक दिन

सारुल बागला

मेरे अभाव में

अखिलेश सिंह

लड़के सिर्फ़ जंगली

निखिल आनंद गिरि

नग्नता और प्रेम

मोहिनी सिंह

बुरे समय में नींद

रामाज्ञा शशिधर

यह उस रात की कहानी है

प्रदीप अवस्थी

उम्मीद अब भी बाक़ी है

रविशंकर उपाध्याय

हम उस दिन

बेबी शॉ

स्वप्न

सौरभ अनंत

ग्रामीण प्रणय गीत

एमिलियो वास्केज़

मनुष्य का रास्ता

एनरीक़ पेना बैरीनिशिया

पहले

निशांत कौशिक

ईश्वर का मुखपत्र

लुइस मुनोज़ मारिन

एक रात द्वीप पर

पाब्लो नेरूदा

तुम

बेबी शॉ

रात, डर और सुबह

नेहा नरूका

सपना और दीवार

लैंग्स्टन ह्यूज़

परिचय

वास्को पोपा

इनसोम्निया

प्रदीप अवस्थी

भागने का एक सपना

ली मिन-युंग

क़ैदख़ाना

अशरफ़ अबूल-याज़िद

बिल्ला

होर्खे लुइस बोर्खेस

डचेस की बिल्लियाँ

राफ़ाएल मेंदेज़ दोरिख़

नींद

गुंटर कुनेर्ट

एक आत्मा का रेशम

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

कभी न लौटेंगे वे सपने

अलेक्सांद्र ब्लोक

तुम्हारी बाँहों में

मिक्लोश राद्नोती

मुझे था मालूम

अन्ना अख्मातोवा

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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