बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

19 अप्रैल 2025

‘दो दीमकें लो, एक पंख दो’

‘दो दीमकें लो, एक पंख दो’

मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर पाने का मौक़ा दिया। मेरे लिए यह मौक़ा असाधारण तो नहीं, लेकिन कुछ दुर्लभ ज़रूर है। लि

18 अप्रैल 2025

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

एक मैं उन दुखों की तरफ़ लौटती रही हूँ, जिनके पीछे-पीछे सुख के लौट आने की उम्मीद बँधी होती है। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे समंदर का भार कछुओं ने अपनी पीठ पर उठा रखा हो और मछली के रोने से एक नदी फूट पड़े

18 अप्रैल 2025

ए.एन. कॉलेज से हो रही है बिहार में 'हिन्दवी कैंपस कविता' की शुरुआत

ए.एन. कॉलेज से हो रही है बिहार में 'हिन्दवी कैंपस कविता' की शुरुआत

हिन्दवी कैंपस कविता—‘हिन्दवी’ का एक विशेष आयोजन है। इस आयोजन के माध्यम से देश के विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के साथ-सहयोग से वहाँ के छात्रों को साहित्य-सृजन के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाता

17 अप्रैल 2025

दास्तान-ए-गुरुज्जीस-3

दास्तान-ए-गुरुज्जीस-3

दूसरी कड़ी से आगे... उन दिनों अमूमन सर्दी-गर्मी की छुट्टियाँ ननिहाल में बीतती थी। नाना को साहित्य, संगीत, गीत से प्रेम है। उनके इस प्रेम का शिकार मामा-मौसी के बाद सबसे अधिक हम और भाई हुए। ठंड की भ

17 अप्रैल 2025

दिन के सारे काम रात में गठरी की तरह दिखते हैं

दिन के सारे काम रात में गठरी की तरह दिखते हैं

रात की बारिश रात के चौथे पहर से बारिश का आख़िरी टुकड़ा लटक रहा है लैम्पपोस्ट पर क़ायम हुई थकन पत्तियों पर चमकती गीली रौशनी एक गुज़रती गाड़ी सड़क पर जमा पानी के चिरते चले जाने की आवाज़ रात की बारिश

16 अप्रैल 2025

कहानी : चोट

कहानी : चोट

बुधवार की बात है, अनिरुद्ध जाँच समिति के समक्ष उपस्थित होने का इंतज़ार कर रहा था। चौथी मंजिल पर जहाँ वह बैठा था, उसके ठीक सामने पारदर्शी शीशे की दीवार थी। दफ़्तर की यह दीवार इतनी साफ़-शफ़्फ़ाक थी कि

14 अप्रैल 2025

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो!

इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो!

“आप प्रयागराज में रहते हैं?” “नहीं, इलाहाबाद में।” प्रयागराज कहते ही मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है, अगर मैं बोलने की कोशिश भी करता हूँ तो दिल रोकने लगता है कि ऐसा क्यों कर रहा है तू भाई! ऐसा नहीं

13 अप्रैल 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘बुद्धि की आँखों में स्वार्थों के शीशे-सा!’

रविवासरीय : 3.0 : ‘बुद्धि की आँखों में स्वार्थों के शीशे-सा!’

• गत बुधवार ‘बेला’ के एक वर्ष पूर्ण होने पर हमने अपने उद्देश्यों, सफलताओं और योजनाओं का एक शब्दचित्र प्रस्तुत किया। इस शब्दचित्र में आत्मप्रचार और आभार की सम्मिलित शैली में हमने लगभग अपना ही प्रशस्ति

12 अप्रैल 2025

भारतीय विज्ञान संस्थान : एक यात्रा, एक दृष्टि

भारतीय विज्ञान संस्थान : एक यात्रा, एक दृष्टि

दिल्ली की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी के बीच देश-काल परिवर्तन की तीव्र इच्छा मुझे बेंगलुरु की ओर खींच लाई। राजधानी की ठंडी सुबह में, जब मैंने इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से यात्रा शुरू की, तब मन क

11 अप्रैल 2025

विभाजन-विस्थापन-पुनर्वासन की एक विस्मृत कथा

विभाजन-विस्थापन-पुनर्वासन की एक विस्मृत कथा

पहले पन्ने पर लेखक ने इस उपन्यास (‘मरिचझाँपि को छूकर बहती है जो नदी’) का मर्म लिख दिया है—“विभाजन, विस्थापन एवं पुनर्वासन की एक विस्मृत कथा”। यह पंक्ति पढ़ते ही आप सहज से थोड़े सजग पाठक में बदल जाते