
करुणा में एक उदास सौंदर्य की उपलब्धि एक सर्वसाधारण अनुभव है।

करुणा और समर्पण के बीच का अंतर प्रेम का सबसे अंधकारमय, सबसे गहरा क्षेत्र है।

रामायण करूण रस का महाकाव्य है।

करुणा, करुणा, करुणा। मैं नए साल के लिए प्रार्थना करना चाहती हूँ, संकल्प नहीं। मैं साहस के लिए प्रार्थना कर रही हूँ।


हे भारत! धर्म, अर्थ, भय, कामना तथा करुणा से दिया गया दान पाँच प्रकार का जानना चाहिए।

आप करुणा के आधार पर शासन नहीं बदल सकते हैं। इसके लिए कुछ और कड़े क़दम उठाने होंगे।

हम इनसान हैं, मैं चाहता हूँ इस वाक्य की सचाई बची रहे।

कर्मक्षेत्र में परस्पर सहायता की सच्ची उत्तेजना देने वाली किसी न किसी रूप में करुणा ही दिखाई देगी।

करुणा अपना बीज अपने आलंबन या पात्र में नहीं फेंकती है अर्थात् जिस पर करुणा की जाती है, वह बदले में करुणा करने वाले पर भी करुणा नहीं करता— जैसा कि क्रोध और प्रेम में होता है—बल्कि कृतज्ञ होता अथवा श्रद्धा या प्रीति करता है।

जिनकी करुणा का प्रसार-क्षेत्र जितना अधिक होता है, श्री भगवान के साथ उनका तादात्म्य भी उतना ही गंभीर रहता है।

आदमी और आदमी को जोड़ने वाली वह संवेदना, जो लालित्य-उल्लास की जननी है—को किस विषैले धुएँ ने मार दिया?

क्योंकि करुणा शीघ्र ही कोमल हृदय में बरसती है।

पत्तियों का झरना धरती के सौंदर्य की करुणतम् अवस्था है।

कविता के क्षेत्र में केवल एक आर्य-सत्य है : दुःख है। शेष तीन राजनीति के भीतर आते हैं।

मृत्यु का आघात जिस करुणा के स्रोत को उद्वेलित करता है, वह करुणा ही सबसे बड़ी मानवीय निधि है।

गाय मूर्तिमंत करुणामयी कविता है।

हमारा युग स्नेह और प्रीति में तो रिक्त है ही, करुणा में भी यह अति दरिद्र है। यह इतना दीन हो चुका है कि इसकी अंतिम पूँजी विषाद भी धीरे-धीरे चुक रही है और इसके शेष हो जाने पर यह आत्मघात से भी बुरी अवस्था होगी।

अपने माँस की वृद्धि के लिए दूसरे प्राणी के शरीर का भक्षण करने वाला दयावान कैसे हो सकता है?

करुणा विषाद की रोमांटिक अवस्था है।


मृत्यु का बोध विषाद है, करुणा नहीं।

शोक अपनी निज की इष्ट-हानि पर होता है और करुणा दूसरों की दुर्गति या पीड़ा पर होती है।


जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म दर्शन देता है।

वृद्धों और पागलों पर कोई दया नहीं करता।

करुणा ऐसी भाषा है जिसे एक बहरा सुन सकता है और एक अँधा देख सकता है।

राज्य और व्यक्ति के संबंध को अधिकाधिक समझना आधुनिक संवेदना की शर्त है।

कभी भी व्यक्तिगत दुखबोध की कविता एक अच्छी कविता का मानदंड नहीं हो सकती, वही कविता प्रामाणिक होगी जिसके सरोकार राष्ट्रीय दुखों से जुड़े होंगे।

दुःख भाव है और करुणा स्वत्व।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere