
अगर तुम जीना चाहते हो तो तुम्हें पहले अपने अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहिए।

भरी-पूरी शवयात्रा के लिए बहुत बासी जनसंपर्क काम न देगा; लोग भूल जाते हैं या मरकर एक अजनबी पीढ़ी छोड़ जाते हैं।

अगर आप चाहते हैं कि आपकी शवयात्रा धूमधाम से संपन्न हो तो आपको मरने से काफ़ी पहले एक विशेष प्रकार का जनसंपर्क चलाना पड़ेगा।

महापुरुषों के निधन पर पार्कों में होनेवाली सार्वजनिक सभाएँ या बाज़ार की हड़ताल बहुत हद तक रस्म-अदायगी है। पर रस्में भी हमारी सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक जीवन का अविभाज्य अंग है और यदि यशपाल जैसे साहित्यकार के न रहने पर भी ऐसी रस्में अदा नहीं की जाति तो उससे कुछ ऐसे निष्कर्ष निकलते हैं जिनसे इस देश के साहित्यकर्मियों को साहित्य की स्थिति के विषय में यथार्थ दृष्टि मिल सकती है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere