मित्र पर उद्धरण

मित्रता दो या दो से

अधिक व्यक्तियों के बीच का अंतर्वैयक्तिक बंधन है जिसके मूल में आत्मीयता होती है। मित्रता के गुणधर्म पर नीतिकाव्यों में पर्याप्त विचार किया गया है। इस चयन में मित्र और मित्रता-संबंधी अभिव्यक्तियों को शामिल किया गया है।

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इस पर भरोसा मत करो कि कोई भी दोस्त दोषों के बिना है, और किसी स्त्री से प्यार करो, परी से नहीं।

डोरिस लेसिंग
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मैं जीवन के बाद के जीवन की कल्पना नहीं कर पाता : जैसे ईसाई या अन्य धर्मों के लोग विश्वास रखते हैं और मानते हैं जैसे कि सगे-संबंधियों और दोस्तों के साथ हुई बातचीत जिसे मौत आकर बाधित कर देती है, और जो आगे भी जारी रहती है।

एडवर्ड मुंक
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…साथी होना तुच्छ होने के लिए हमारी सांत्वना है।

सामंथा हार्वे
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अपने सपनों को अंतरिक्ष में पतंग की तरह फेंक दो, और तुम नहीं जानते कि वह वापस क्या लाएगा— नया जीवन, नया दोस्त, नया प्यार, या कोई नया देश।

अनाइस नीन
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हम सभी एक दूसरे को छोड़ देते हैं। हम मर जाते हैं, हम बदल जाते हैं—यह ज़्यादातर बदलाव है—हम अपने सबसे अच्छे दोस्तों को पीछे छोड़ देते हैं। लेकिन अगर मैं तुम्हें छोड़ भी देती हूँ, तो मैं तुम्हें अपना कुछ दे चुकी होऊँगी। तुम मुझे जानने के कारण एक अलग व्यक्ति हो जाओगे। यह अपरिहार्य है।

एडना ओ’ब्रायन
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लोगों को दोस्त बनने के लिए जो चीज़ आकर्षित करती है, वह यह है कि वे एक ही सच्चाई को देखते हैं। वे उसे साझा करते हैं।

सी. एस. लुईस
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जलती हुई आग से सुवर्ण की पहचान होती है, सदाचार से सत्य पुरुष की, व्यवहार से श्रेष्ठ पुरुष की, भय प्राप्त पर शूर की, आर्थिक कठिनाई में धीर की और कठिन आपत्ति में शत्रु एवं मित्र की परीक्षा होती है।

वेदव्यास
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ऐसा कोई भी व्यक्ति आपका दोस्त नहीं है जो आपसे चुप रहने की माँग करता है, या आपके विकास के अधिकार को अस्वीकार करता है।

एलिस वॉकर
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जिसके पास धन होता है, उसी के बहुत से मित्र होते हैं। जिसके पास धन है, उसी के भाई-बंधु हैं। संसार में जिसके पास धन है, वही पुरुष कहलाता है। और, जिसके पास धन हैं, वही पंडित माना जाता है।

वेदव्यास
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पुराने दोस्त की तरह जब कोई आपको बहुत अच्छी तरह से जान जाता है तो वह आपसे मिलना नहीं चाहता।

डोरिस लेसिंग
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संसार में दो वस्तुएँ बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन और दूसरे सत्य-शिक्षक मित्र।

अबुल फ़ज़ल
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श्रृंगार जिनका प्रधान है, ऐसे काम के मित्रगण नारी को जीतने से जीत लिए जाते हैं।

कृष्ण बिहारी मिश्र
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मैं आपके बारे में दोस्त के रूप में कभी नहीं सोच सकता। आप दोस्त के बिना काम चला सकते हैं।

ग्राहम ग्रीन
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एक (बुद्धि) से दो (कर्तव्य और अकर्तव्य) का निश्चय करके, चार (साम, दान, दंड, भेद) से तीन (शत्रु, मित्र तथा उदासीन) को वश में कीजिए। पाँच (इंद्रियों) को जीतकर छड़ (संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधी भाव और समाश्रय रूप गुणों) को जानकर, सात (स्त्री, जुआ, मृगया, मद्य, कठोर वचन, दंड की कठोरता और अन्याय से धनो-पार्जन) को छोड़कर सुखी हो जाइए।

वेदव्यास
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तुम अपनी पत्नी की आबरू की रक्षा करना, और उसके मालिक मत बन बैठना, उसके सच्चे मित्र बनना। तुम उसका शरीर और आत्मा वैसे ही पवित्र मानना, जैसे कि वह तुम्हारा मानेगी।

महात्मा गांधी
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संसार में स्त्री के समान कोई बंधु नहीं है, स्त्री के समान कोई आश्रय नहीं है और धर्म-संग्रह में भी स्त्री के समान सहायक दूसरा कोई नहीं है।

वेदव्यास
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पुराने दोस्त पी लेने के बाद और पराए हो जाते हैं। पी लेने के बाद दोस्तों की ज़बान खुल जाती है, दिल नहीं।

कृष्ण बलदेव वैद
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मनुष्य स्वयं ही अपना बंधु है, स्वयं ही अपना शत्रु है, स्वयं ही अपने कर्म और अकर्म का साक्षी है।

वेदव्यास
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कोई कितना ही शुद्ध और उद्योगी क्यों हो, लोग उस पर दोषारोपण कर ही देते हैं। अपने धार्मिक कर्मों में लगे हुए वनवासी मुनि के भी शत्रु, मित्र और उदासीन ये तीन पक्ष पैदा हो जाते हैं।

वेदव्यास
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निर्धनता मनुष्य में चिंता उत्पन्न करती है, दूसरों से अपमान कराती है, शत्रुता उत्पन्न करती है, मित्रों में घृणा का पात्र बनाती है और आत्मीय जनों से विरोध कराती है। निर्धन व्यक्ति की घर छोड़कर वन चले जाने की इच्छा होती है, उसे स्त्री से भी अपमान सहना पड़ता है। ह्रदयस्थित शोकाग्नि एक बार ही जला नहीं डालती अपितु संतप्त करती रहती है।

शूद्रक
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मित्र-द्रोही, कृतघ्न स्त्री हत्यारे और गुरु-घाती—इन चारों का प्रायश्चित हमारे सुनने में नहीं आया है।

वेदव्यास
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मनुष्य अपना उद्धार अपने-आप करे, स्वयं अपनी अवनति या दुर्गति करे। प्रत्येक मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु है।

वेदव्यास
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मित्रों का हृदय अनिष्ट की आशंका ही किया करता है।

कृष्ण बिहारी मिश्र
  • संबंधित विषय : दिल
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पशुओं को अपने मित्रों की पहचान करना प्रकृति सिखाती है।

विलियम शेक्सपियर
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बुरा मनुष्य भला और मनुष्य बुरा हो जाया करता है। शत्रु भी मित्र बन जाता है और मित्र भी बिगड़ जाता है।

वेदव्यास
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प्रभो! बृहस्पति के मत के अनुसार अर्थ की सिद्धि चार प्रकार से होती है—वंश परंपरा से, प्रारब्ध की अनुकूलता से, धन के लिए किए गए सकाम कर्म से और मित्र के सहयोग से।

वेदव्यास
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दैववश मनुष्य के भाग्य की जब होनावस्था (दरिद्रता) जाती है तब उसके मित्र भी शत्रु हो जाते हैं, यहाँ तक कि चिरकाल से अनुरक्त जन भी विरक्त हो जाता है।

शूद्रक
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जो पुत्रहीन है उसका घर सूना प्रतीत होता है। जिसका हार्दिक मित्र नहीं है उसका घर सदा से सूना है। मूर्खों के लिए दसों दिशाएँ सूनी हैं। निर्धन के लिए तो सब कुछ सूना है।

शूद्रक
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काम-क्रोध आदि मनःशक्तियाँ जिन्हें 'शत्रु' कहा जाता है, सुनियन्त्रित होकर परम सहायक मित्र बन जाती हैं।

हजारीप्रसाद द्विवेदी
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संयम वह मित्र है, जो ज़रा देर के लिए चाहे आँखों से ओझल हो जाए, पर धारा के साथ बह नहीं सकता, संयम अजेय है, अमर है।

प्रेमचंद
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सच्चे दोस्त की संगति में आध्यात्मिक आनंद जैसी अनुभूति होती है!

निकोलाई गोगोल
  • संबंधित विषय : सच
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जब तक समय अपने अनुकूल हो जाए, तब तक शत्रु को कंधे पर बिठाकर भी ढोना चाहिए, परंतु जब अनुकूल समय जाए तब उसे उसी प्रकार नष्ट कर दे, जैसे घड़े को पत्थर पर पटककर फोड़ दिया जाता है।

वेदव्यास
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दरिद्रता के कारण पुरुष के बंधुजन उसकी वाणी का विश्वास नहीं करते, उसकी मनस्विता हँसी का विषय बन जाती है, शीलवान की कांति भी मलीन हो जाती है, बिना शत्रुता के ही मित्र लोग विमुख हो जाते हैं, आपत्तियाँ बड़ी हो जाती हैं और जो पाप कर्म अन्य लोगों द्वारा किया हुआ होता है, उसे बी उसी का किया हुआ मानने लगते हैं।

भास

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere