शराब पर उद्धरण
शराब अल्कोहलीय पेय पदार्थ
है जिसे मदिरा, हाला, सुरा भी कहते हैं। हमारे समाज के अधिकांश हिस्से में शराब को एक बुराई और अनैतिक चीज़ मानते हैं। शराबियों का सम्मान और विश्वास कम ही किया जाता है, बावजूद इसके शराब पीने वालों के लिए इसकी उपस्थिति सुख और दुख दोनों में ही केंद्रीय होती है। साहित्य में इसे अराजकता, बोहेमियन जीवन-प्रवृत्ति, आवारगी के साथ चलने वाली चीज़ माना जाता है। शराब कविता का विषय बहुत शुरू से ही रही है। यहाँ प्रस्तुत है—शराब विषयक कविताओं से एक विशेष चयन।

कोशिश करो कि कभी अपने घर के बाहर शराब के नशे में धुत्त न मिलो।

कुछ शराबों की तरह हमारा प्यार न तो पूरा हो सकता है और न ही कहीं जा सकता है।

पीते वक़्त ख़्वाहिश होती है अच्छा संगीत सुनूँ, और संगीत के इर्द-गिर्द ख़ामोशी हो।

पुराने दोस्त पी लेने के बाद और पराए हो जाते हैं। पी लेने के बाद दोस्तों की ज़बान खुल जाती है, दिल नहीं।

पीते वक़्त भी निपट अकेला होता हूँ, लिखते वक़्त भी।

क्रोध के लक्षण शराब और अफ़ीम दोनों से मिलते हैं। शराबी की भाँति क्रोधी मनुष्य भी पहले आवेशवश लाल-पीला होता है। फिर यदि आवेश के मंद पड़ जाने पर भी क्रोध न घटा हो तो वह अफ़ीम का काम करता है और मनुष्य की बुद्धि को मंद कर देता है। अफ़ीम की तरह वह दिमाग़ को कुतर कर खा जाता है।

पीते वक़्त अगर लिखने की-सी कैफ़ियत पैदा हो जाए तो पीना सिर्फ़ पीना नहीं रहता।

शराब, मछली, मधु से बनी शराब, माँस, आसव, तिल और चावल की खिचड़ी—इन सब वस्तुओं को धूर्तों ने यज्ञ में प्रचलित कर दिया है। वेदों में इसके उपयोग का विधान नहीं है।

शराब पीने वाले का, पिलाने वाली सरकार का हमें बहिष्कार करना चाहिए।

'लज्जा' नामक अच्छी महिला 'मद्य' नामक अशुभ व भयंकर दोष से युक्त व्यक्ति के सामने नहीं आएगी।

शराबियों की सरकार शराबबंदी नहीं करेगी। उसे अपनी आमदनी की चिंता है। शराब तो हमें ही बंद करनी होगी। इसके लिए शराब पीने वालों का बहिष्कार कीजिए।


लिखते वक़्त अगर बग़ैर पिए पीने का-सा सरूर आ जाए तो लिखने में भी पीने की-सी कैफ़ियत पैदा हो जाती है।

नशा उतर जाने के बाद हदें फिर हावी हो जाती हैं। लेकिन क्षणिक या अस्थायी ‘बेहदी’ भी बुरी नहीं होती।

पीता ज़्यादा नहीं। ज़्यादा पी ही नहीं सकता।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere