

नास्तिकता प्रायः धर्म की प्राणशक्ति की अभिव्यक्ति रही है, धर्म में वास्तविकता की खोज रही है।

चाहे कविता किसी भाषा में हो, चाहे किसी वाद के अंतर्गत, चाहे उसमें पार्थिव विश्व की अभिव्यक्ति हो, चाहे अपार्थिव की और चाहे दोनों के अविच्छिन्न संबंध की, उसके अमूल्य होने का रहस्य यही है कि वह मनुष्य के हृदय से प्रवाहित हुई है।

सूक्ष्म अभिव्यक्ति के लिए लोकभाषाओं से बल प्राप्त करना ही होगा।

बहुत से पुराने शब्द हैं जो अत्यंत अभिव्यक्ति-प्रवण है। परंतु प्रयोग न होने से लोग भूल गए हैं।


दुनिया नहीं बदलेगी अगर आप ज़िम्मेदारी का बोझ अपने कंधों पर नहीं लेंगे।

छाया भारतीय दृष्टि से अनुकृति और अभिव्यक्ति की भंगिमा पर अधिक निर्भर करती है। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौंदर्यमय प्रतीक-विधान और उपचारवक्रता के साथ स्वानुभूति की विवृति छायावाद की विशेषताएँ हैं। अपने भीतर से मोती के पानी की तरह आंतर स्पर्श करके भाव-समर्पण करने वाली अभिव्यक्ति छाया कांतिमयी होती है।

क्रोध का एक हल्का रूप है चिड़चिड़ाहट, जिसकी व्यंजना प्रायः शब्दों ही तक रहती है।

चीन के बुद्धिजीवियों और प्रोफ़ेसरों और उनका बचाव करने वाले राजनीतिक माफ़िया के बीच एक महीन-सी रेखा है जो उन्हें अलग करती है।

कहिए आपको जो कहने की ज़रूरत है—बिल्कुल सीधे और सादे शब्दों में, और फिर उसकी ज़िम्मेदारी लीजिए



बोलने की आज़ादी में यह समाहित है कि दुनिया परिभाषित नहीं है। यह तभी अर्थपूर्ण होती है जब लोगों को यह अनुमति हो कि वे दुनिया को अपने तरीके से देख सकें।

अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला।

सचमुच मनुष्य के वास्तविक रूप की अकुण्ठ अभिव्यक्ति, सबके लिए सह्य नहीं होती। मगर मन में जो गुदगुदी अनायास पैदा होती है, उसे अस्वीकार करना सबके लिए कठिन होता है।

जिनके स्वादिष्ट भोजन की ओर बालक लालायित दृष्टि से देखते रहें और विधिवत खा न पाएँ, तो उन्हें इससे बड़ा पाप क्या होगा?
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere