
असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।

हमारे पूर्वजों ने अधिकारों के लिए संघर्ष किया, आज की पीढ़ी को कर्तव्य के लिए संघर्ष करना है।


जो पहले से मन में पूर्ण हो, उस प्रवाह को बह जाने से रोकने के लिए संघर्ष करो।

पक्षी अंडे से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करता है। अंडा ही दुनिया है। जो जन्म लेना चाहता है उसे एक दुनिया को नष्ट करना होगा।


अपने और विश्व के बीच के संघर्ष में विश्व का साथ दो।

अपना संघर्ष ख़ुद चुनो।

हम भाषा से जूझ रहे हैं।

तुम्हें मुझे माफ़ कर देना चाहिए, क्योंकि मैंने सिर्फ़ तुम्हारे लिए संघर्ष किया था।

हम भाषा के साथ संघर्ष में उलझे हुए हैं।

किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणी मात्र का धर्म है।

परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चोड़ाई में ले जाता है। परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही समाज की असली प्रगति है।

दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दुःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।

सामाजिक चेतना सामाजिक संघर्षों में से उपजती है।

इस आधुनिक (रूसी) क्रांति का अध्ययन बहुत रोचक है। जो रूप इसने अब ग्रहण किया है, वह मार्क्सवादी सिद्धांत व मतांधताओं को रूस की अनिच्छुक प्रतिभा पर लादने के प्रयत्न के फलस्वरूप है। हिंसा पुनः असफल रहेगी। यदि मैंने परिस्थिति को ठीक समझा है, तो मुझे एक प्रतिक्रांति की आशा है। कार्ल मार्क्स के समाजवाद से अपनी स्वाधीनता के लिए रूस की आत्मा अवशय संघर्ष करेगी।

महान संघर्षों में पाखंडपूर्ण कार्य भी साथ-साथ होते रहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इनके प्रति सतर्क रहें।

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।


अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।

हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।

हे देशवासी, तू अपने आप को पहचान। अपने हृदय व मस्तिष्क से काम लेकर तू परतंत्रता का दाग़ मिटा दे। तू क्रांति ला, क्रांति ला। तेरी मेहनत की कमाई से दूसरे धनवान बन रहे हैं। तू किन के सामने भटकता है और किन के भय से डरता है। अपने ख़ून-पसीने से तू जिनके लिए नींव बना रहा है, वही लोग तुझे हेय समझते हैं। हे पौरुषहीन! क्रांति ला, क्रांति ला।

परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है।

हम दोपहर में अपने पसीने को व्यय करते हैं और रात्रि में तेल को। हर रात्रि में चिंतन करके थकते हैं और दिन में परिश्रम करके।


जो मुझसे नहीं हुआ, वह मेरा संसार नहीं।

अगर इस दुनिया को ईश्वर का ख़्वाब समझ लिए जाए तो ईश्वर से अपेक्षा कम हो जाए, हमदर्दी ज़्यादा।


परिश्रम के पश्चात् नींद, तूफ़ानी समुद्र के पश्चात् बंदरगाह, युद्ध के पश्चात् विश्राम और जीवन के पश्चात् मृत्यु अत्यधिक आनंदप्रद होते हैं।

प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी कार्य में इसलिए उत्कृष्ट नहीं होते कि वे उसमें परिश्रम करते हैं। अपितु वे उसमें परिश्रम करते हैं क्योंकि वे उसमें उत्कृष्ट होते हैं।

देवता हमें कठोर परिश्रम के मूल्य पर सभी अच्छी वस्तुएँ देते हैं।

आँच केवल आग में ही नहीं पाई जाती। कभी एकांत मिले तो अपने लिखे हुए के तापमान को जाँचो।


आगे का कलाकार मेहनतकश की ओर देखता है।

क्या यही सच है कॉमरेड कि विचार और क्रिया में दूरी हमेशा बनी रहती है?

मेहनत से धरती जो देती है, वह सोना बनता है।


जो भी अपनी भूमि पर अँगूठे के बल खड़ा हो जाता है, वट-वृक्ष हो जाता है।

चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो; परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता।

निरंतर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे।

ये काफ़ी है कि अगर मैं किसी चीज़ का धनी हूँ तो वह उलझनें हैं, न की निश्चिन्त्ताएं।

मैं बाद अज़मर्ग कामयाबी का मुरीद हूँ।

मेरे पास कुछ पैसे थे। मैंने सबसे सुंदर पेंटिंग्स बनाईं। मैं पूर्ण रूप से एकांत प्रिय था। मैंने बहुत काम किया। मैंने बहुत सारा नशा किया। लोगों के लिए मैं भयानक था।

मुक्ति के बिना समानता प्राप्त नहीं की जा सकती और समानता के अभाव में मुक्ति संभव नहीं है।

कोई यथार्थ से जूझकर सत्य की उपलब्धि करता है और कोई स्वप्नों से लड़कर। यथार्थ और स्वप्न दोनों ही मनुष्य की चेतना पर निर्मम आघात करते हैं, और दोनों ही जीवन की अनुभूति को गहन गंभीर बनाते हैं।

मैं पैदाइशी ‘अछूत’ हूँ। मुझे किसी संस्था में कोई आस्था नहीं। बकवास और ख़ुराफ़ात मुझसे बरदाश्त नहीं होते। स्याह को सफ़ेद या भूरा मैं नहीं कह सकता। खेल मैं नहीं खेलता।

कहीं भी आग लगना बुरा है, मगर यह उत्साह पैदा करता है। आग आदमी को आवाज़ देकर सामने कर देती है।

बाधाएँ मुझे कुचल नहीं सकतीं। प्रत्येक बाधा कठोर संकल्प की ओर ले जाती है।

स्वप्नद्रष्टा या निर्माता वही हो सकता है, जिसकी अंतर्दृष्टि यथार्थ के अंतस्तल को भेदकर उसके पार पहुँच गई हो, जो उसे सत्य न समझकर केवल एक परिवर्तनशील अथवा विकासशील स्थिति भर मानता हो।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere