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पृथ्वी पर कविताएँ

पृथ्वी, दुनिया, जगत।

हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।

हाथ

केदारनाथ सिंह

दूर से अपना घर देखना चाहिए

विनोद कुमार शुक्ल

यह पृथ्वी रहेगी

केदारनाथ सिंह

थोड़ी धरती पाऊँ

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

धरती सारी

अदिति शर्मा

धरती

शरद बिलाैरे

वियतनाम

वीस्वावा षिम्बोर्स्का

सनातनता

शांदोर वोरोश

अंकुरित उल्लास

चाङ् ह्यान जाङ्

प्रार्थना

एवॉ तोथ

केवल बाल पुस्तकें पढ़ना

ओसिप मंदेलश्ताम

धीरे-धीरे नष्ट करते हैं

रामकुमार तिवारी

धरती जानती है

येहूदा आमिखाई

छवि

पॉल इल्यार

चिड़िया को

सुमित त्रिपाठी

मुक्ति

सौरभ अनंत

बीच की जगहें

गार्गी मिश्र

छि: छि:

सुभाष मुखोपाध्याय

तमाशा

रतन थियाम

खोज ली पृथ्वी

नंद भारद्वाज

पृथ्वी पर

आदित्य शुक्ल

यह सिर्फ़ भ्रम है

सुमित त्रिपाठी

वीरभोग्या वसुंधरा

शिरीष कुमार मौर्य

मैंने धरती देखी

पुरुषोत्तम शिवराम रेगे

भूमि

अक्कितम

जारज

सैयद अब्दुल मलिक

इतनी तो प्यारी लगती है धरती

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

पारपत्र

सुकांत भट्टाचार्य

मधुमय धरती की धूल

रवींद्रनाथ टैगोर

अहल्या पृथिवी

बीरेन बरकटकी

बची हुई पृथ्वी

लीलाधर जगूड़ी

सिद्धि

बालमणि अम्मा

सुफ़ैद

श्रुति कुशवाहा

तब भी

अनुभव

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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