स्त्री पर कविताएँ

स्त्री-विमर्श भारतीय

समाज और साहित्य में उभरे सबसे महत्त्वपूर्ण विमर्शों में से एक है। स्त्री-जीवन, स्त्री-मुक्ति, स्त्री-अधिकार और मर्दवाद और पितृसत्ता से स्त्री-संघर्ष को हिंदी कविता ने एक अरसे से अपना आधार बनाया हुआ है। प्रस्तुत चयन हिंदी कविता में इस स्त्री-स्वर को ही समर्पित है, पुरुष भी जिसमें अपना स्वर प्राय: मिलाते रहते हैं।

प्रेमिकाएँ

अखिलेश सिंह

मेरे बेटे

कविता कादम्बरी

औरतें

रमाशंकर यादव विद्रोही

क्या तुम जानते हो

निर्मला पुतुल

मर्दानगी

आर. चेतनक्रांति

स्त्रियाँ

अनामिका

तोड़ती पत्थर

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

शीघ्रपतन

प्रकृति करगेती

प्रेम करती स्त्री

मंगलेश डबराल

वेश्याएँ

राजकमल चौधरी

अनुवाद

अनामिका

सिगरेट पीती हुई औरत

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

शृंगार

आलोकधन्वा

स्‍त्री और आग

नवीन रांगियाल

बड़बड़

नाज़िश अंसारी

छूना मत

सविता भार्गव

स्त्री के पैरों पर

प्रियंका दुबे

उसने कहा मुड़ो

वियोगिनी ठाकुर

नींद में रुदन

सविता सिंह

बेजगह

अनामिका

प्रेम का समाजवाद

अनुराधा सिंह

मिलन

सविता भार्गव

आख़िरी रोटी

नेहा नरूका

मदर इंडिया

गीत चतुर्वेदी

घर

ममता बारहठ

हंडा

नीलेश रघुवंशी

गालियाँ

सविता भार्गव

कजरी के गीत मिथ्या हैं

मनीष कुमार यादव

पूश्किन-सा

अंकिता रासुरी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere