एक चित्र में जिसे रंग कहते हैं, उसे ही जीवन में उत्साह कहते हैं।
जो भी व्यक्ति योग्य है, वह सिर्फ़ वही पढ़ता है जो उसे पसंद है, जैसा कि उसका मूड होता है, और वह अत्यधिक उत्साह के साथ पढ़ता है।
जीवन का प्राथमिक प्रसन्न उल्लास मनुष्य के भविष्य में मंगल और सौभाग्य को आमंत्रित करता है। उससे उदासीन न होना चाहिए।
जिनके हृदय में उत्साह होता है, वे पुरुष कठिन से कठिन कार्य आ पड़ने पर हिम्मत नहीं हारते।
कर्मक्षेत्र में परस्पर सहायता की सच्ची उत्तेजना देने वाली किसी न किसी रूप में करुणा ही दिखाई देगी।
उपनिषद् छान-बीन की, मानसिक साहस की, और सत्य की खोज के उत्साह की भावना से भरपूर हैं। यह सही है कि यह सत्य की खोज मौजूदा ज़माने के विज्ञान के प्रयोग के तरीकों से नहीं हुई है, फिर भी जो तरीका अख़्तियार किया गया है, उसमें वैज्ञानिक तरीके का एक अंश है हठवाद को दूर कर दिया गया है।
भावुक होते ही 'कुछ करना चाहिए' की भावना उसके मन को मथने लगी, पर 'क्या करना चाहिए' इसका जवाब उसके पास नहीं था।
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दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनंद वर्ग में उत्साह का है।
कर्म-भावना-प्रधान उत्साह ही सच्चा उत्साह है। फल-भावना-प्रधान उत्साह तो लोभ ही का एक प्रच्छन्न रूप है।
कर्म-सौंदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं।
मैं बुद्धिमत्ता की उदासीनता की अपेक्षा उत्साह की गलतियों को बेहतर मानता हूँ।
पीड़ित आत्मा को उल्लास प्रभावित नहीं कर सकता।
जो अधीर और असमर्थ होते हैं, उनमें उत्साह उत्पन्न नहीं होता। प्रायः उत्साही पुरुष ही राजसंपत्ति का उपभोग करते हैं।
बिना उत्साह के कोई महान उपलब्धि कभी नहीं हुई।
लोग जिससे उद्विग्न नहीं होते, जो लोगों से उद्विग्न नहीं होता और जो हर्ष, क्रोध, भय तथा उद्वेग से मुक्त रहता है, वह मुझे (ईश्वर को) प्रिय है।
यदि चित्त एकाग्र रहेगा, तो फिर सामर्थ्य की कभी कमी न पड़ेगी। साठ वर्ष के बूढ़े होने पर भी किसी नौजवान की तरह तुममें उत्साह और सामर्थ्य दीख पड़ेगी।
उत्तेजना में विचार मंद हो जाता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere