लालच पर उद्धरण
लालच किसी पदार्थ, विशेषतः
धन आदि प्राप्त करने की तीव्र इच्छा है जिसमें एक लोलुपता की भावना अंतर्निहित होती है। इस चयन में लालच विषय पर अभिव्यक्त कविताओं को शामिल किया गया है।

लोग, लोभ, काम, क्रोध, अज्ञान, हर्ष अथवा बालोचित चपलता के कारण धर्म के विरुद्ध कार्य करते तथा श्रेष्ठ पुरुषों का अपमान कर बैठते हैं।

स्वर्ग की तृष्णा मनुष्य के मनुष्य न होने की ललक है।


कर्म-भावना-प्रधान उत्साह ही सच्चा उत्साह है। फल-भावना-प्रधान उत्साह तो लोभ ही का एक प्रच्छन्न रूप है।

कामना करने वाले मनुष्य की एक कामना जब पूर्ण हो जाती है तो दूसरी कामना उपस्थित हो जाती है। तृष्णा बाण के समान तीक्ष्ण प्रहार करती है।

तृष्णा सबसे बढ़कर पापिष्ठ तथा नित्य उद्वेग करने वाली बताई गई है। उसके द्वारा प्रायः अधर्म ही होता है।वह अत्यंत भयंकर पाप बंधन में डालने वाली है।
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