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कल्पना पर उद्धरण

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शिल्प का जो संसार होता है, वह अगर सच्ची कल्पना के द्वारा सजीव नहीं, तो वह फेन बुद्बुद के ऊपर प्रतिबिंबित संसार-चित्र की तरह मिथ्या और क्षणभंगुर है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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तत्त्वों के अनुसंधान की जगह कल्पना का प्रवेश निषेध होता है, किंतु जो सिर्फ़ आँखों से दिखाई देता है, वह हमें बहुत दूर नहीं ले जा सकता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
  • संबंधित विषय : आँख
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एक बार जब बुराई व्यक्तिगत हो जाती है, रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन जाती है तो उसका विरोध करने का तरीक़ा भी व्यक्तिगत हो जाता है। आत्मा कैसे जीवित रहती है? यह आवश्यक प्रश्न है। और उत्तर यह है : प्रेम और कल्पना से।

अज़र नफ़ीसी
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कला का कार्य यथास्थिति बताने से ज़्यादा यह कल्पना करना है कि क्या संभव है।

बेल हुक्स
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मुझे अपनी कल्पना को साकार करने के लिए अकेलेपन के दर्द की ज़रूरत है।

ओरहान पामुक
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मुझे लगता है कि व्यक्ति ईश्वर से आता है और ईश्वर के पास वापस जाता है, क्योंकि शरीर की कल्पना की जाती है और जन्म होता है, यह बढ़ता है और घटता है, यह मर जाता है और ग़ायब हो जाता है; लेकिन जीवात्मा शरीर और आत्मा का मेल है, जिस तरह एक अच्छी तस्वीर में आकार और विचार का अदृश्य संगम होता है।

यून फ़ुस्से
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शैतान की मौत कल्पना के लिए त्रासदी थी।

वॉलेस स्टीवंस
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मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई आदमी वास्तव में किसी किताब का आनंद ले और उसे केवल एक बार पढ़े।

सी. एस. लुईस
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मेरी देशभक्ति कोई वर्जनशील वस्तु नहीं है। वह तो सर्वग्रहणशील है और मैं ऐसी देशभक्ति को स्वीकार नहीं करूँगा जिसका उद्देश्य दूसरे राष्ट्रों के दुख का लाभ उठाना या उनका शोषण करना हो। मेरी देशभक्ति की जो कल्पना है वह हर हालत में हमेशा, बिना अपवाद के समस्त मानव-जाति के व्यापकतम हित के अनुकूल है। यदि ऐसा हो तो उस देशभक्ति का कोई मूल्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, मेरा धर्म तथा धर्म से नि:सृत मेरी देशभक्ति, समस्त जीवों को अपना मानती है।

महात्मा गांधी
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एक फ़ोटोग्राफ़र का जो कौशल होता है, उसका योग वस्तु के बाह्य रूप के साथ होता है और एक शिल्पी का जो योग होता है, वह उसके भीतर-बाहर के साथ वस्तु के भीतर-बाहर का योग होता है, और उस योग का पंथ होता है कल्पना और यथार्थ घटना—दोनों का समन्वय कराने वाली साधना।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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सिर्फ़ उन चीज़ों के बारे में लिखिए जिनमें वास्तव में आपकी रुचि है; वे चाहे वास्तविक हों या काल्पनिक, और किसी चीज़ के बारे में नहीं।

सी. एस. लुईस
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ईश्वर और कल्पना एक ही हैं।

वॉलेस स्टीवंस
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कल्पित कथा मकड़ी के जाल की तरह है, जो शायद थोड़ा-बहुत जुड़ा हुआ है, लेकिन फिर भी चारों कोनों पर जीवन से जुड़ा हुआ है।

अज़र नफ़ीसी
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वास्तविकता को प्रचुर कल्पना से हराया जा सकता है।

मार्क ट्वेन
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कल्पना प्रकृति पर मनुष्य की हुकूमत है।

वॉलेस स्टीवंस
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कल्पना चीज़ों की अभिलाषा है।

वॉलेस स्टीवंस
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दुःख के प्रतिकार से थोड़ा दुःख रहने पर भी मनुष्य सुख की कल्पना कर लेता है।

अश्वघोष
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खनखनाते हुए मणिमय मुक्ताहार, सोने के नूपुर, कुंकम के अंगराग, सुगंधित पुष्प, विचित्र मालाएँ, रंगबिरंगे वस्त्र—इन सब चीज़ों की मूर्खों ने नारी में कल्पना कर ली है किंतु भीतर-बाहर विचारने वालों के लिए तो स्त्रियाँ नरक ही हैं।

कृष्ण बिहारी मिश्र
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सत्य कल्पना से अधिक अजीब है। लेकिन ऐसा इसलिए है, क्योंकि कल्पना संभावनाओं से चिपके रहने के लिए बाध्य है; सच नहीं।

मार्क ट्वेन
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सृष्टिकर्ता के जिस निराकार आदर्श की हम कल्पना करते हैं, उसके साथ सृष्ट वस्तुएँ अगर एक होकर मिल जाएँ तो प्रलय हो जाएगी।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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नफ़रत की वजह कल्पना का होना है।

ग्राहम ग्रीन
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ईश्वर की कृपा की भयावह विचित्रता की कल्पना तुम कर सकते हो, और ही मैं।

ग्राहम ग्रीन
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मैं ऐसे किसी समय की कल्पना नहीं कर सकता जब पृथ्वी पर व्यवहार में एक ही धर्म होगा।

महात्मा गांधी
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कल्पना से रहित यथार्थ; मनुष्य के कटे हाथ-पैरों के समान भद्दी और विश्री वस्तु होती है, वैसे मृत देह की स्मृति और कल्पना को जाग्रत करती है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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कल्पना गीत गाती है और उस गीत से प्राण-वीणा में नृत्य छंद बज उठता है।

नलिनीबाला देवी
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कवि तो समय की परिधि में नहीं बँधता, उसकी रचना अनंत काल के लिए होती है और इसीलिए उसके काव्य से ऐसे अर्थ भी सिद्ध होते हैं जो उसकी अपनी कल्पना में नहीं होते। यही उसके काव्य की पूर्णता और विशेषता है।

महात्मा गांधी
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कल्पना सत्य की बड़ी बहन है। स्पष्टतः जब तक किसी ने कहानी नहीं कही थी तब तक संसार में कोई नहीं जानता था कि सत्य क्या है। अतः यह सबसे प्राचीन कला है, यह इतिहास की जननी है।

जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग
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कवि का वेदांत-ज्ञान, जब अनुभूतियों से रूप, कल्पना से रंग और भावजगत से सौंदर्य पाकर साकार होता है, तब उसके सत्य में जीवन का स्पंदन रहेगा, बुद्धि की तर्क-श्रृंखला नहीं। ऐसी स्थिति में उसका पूर्ण परिचय अद्वैत दे सकेगा और विशिष्टाद्वैत।

महादेवी वर्मा
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मेरी पीढ़ी के लोगों के लिए गांधी जी कल्पना थे, जवाहरलाल जी कामना और नेताजी सुभाष कर्म। कल्पना सर्वथा द्रष्टा रहेगी, तथापि विस्तार में उसके कुछ अपने दोष थे, पर उसकी कीर्ति, मैं आशा करता हूँ कि समय के साथ चमकेगी। कामना कड़वी हो गई है और कर्म अपूर्ण रहा।

राममनोहर लोहिया
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कवि का कल्पना-सचेतन हृदय जितना ही विश्व-व्यापी होता है, उतनी ही उनकी रचना की गहराई से हमारी परितृप्ति बढ़ती है।

रवींद्रनाथ टैगोर
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कवि को अपने कार्य में अंतःकरण की तीन वृत्तियों से काम लेना पड़ता है—कल्पना, वासना और बुद्धि। इनमें से बुद्धि का स्थान बहुत गौण है। कल्पना और वासनात्मक अनुभूति ही प्रधान है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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मुझे हृदय की भावनाओं की पवित्रता तथा कल्पना की सत्यता पर ही पक्का विश्वास है, अन्य पर नहीं—कल्पना जिसे सौंदर्य के रूप में ग्रहण करती है वह सत्य ही होना चाहिए चाहे पहले वह अस्तित्व में था या नहीं।

जॉन कीट्स
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कल्पना की तुलना में बुद्धि इसी प्रकार है जैसे कर्ता की तुलना में उपकरण, आत्मा की तुलना में शरीर और वस्तु की तुलना में उसकी छाया।

शंकर शैलेंद्र
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हिंदुस्तान की कल्पना भरी हुई है; यूरोप की कला में प्रकृति का अनुकरण है। इस कारण शायद पश्चिम की कला समझने में आसान हो सकती है लेकिन समझ में आने पर वह हमें पृथ्वी से ही जकड़ने वाली होगी, और हिंदुस्तान की कला जैसे-जैसे हमारी समझ में आएगी, वैसे-वैसे हमें ऊपर उठाती जाएगी।

महात्मा गांधी
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हमारा भविष्य जैसे कल्पना के परे दूर तक फैला हुआ है, हमारा अतीत भी उसी प्रकार स्मृति के पार तक विस्तृत है।

महादेवी वर्मा
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मोहक गीत में कल्पनाओं को जगाने की बड़ी शक्ति होती है।

प्रेमचंद
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मेरी कल्पना का हिंदू-धर्म मेरे लिए अपने-आप में पूर्ण है।

महात्मा गांधी
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सहानुभूतिशील कल्पना और कल्पनाशील सहानुभूति, हमें आत्माविस्तार के लिए उद्यत कर देती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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कल्पना, मनुष्य-प्राण की मानसी वीणा का चिरंतन संगीत है।

नलिनीबाला देवी
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शिशु के जीवन में अनेक पथ अज्ञात रहते हैं, वहाँ पर कल्पना की अबाध गति देखने को मिलती है और प्रत्येक शिशु इसी अज्ञात को अपने-अपने चरित्र और क्षमता के अनुसार, अनेक और विभिन्न मूर्तियों के माध्यम से पहचानता हुआ चलता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर
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कल्पना और भावना, दोनों का जो मिला-जुला रूप हमें कलाकृति में दिखाई देता है, उसके माध्यम से हम उन वस्तु-सत्यों का, जीवन-स्थितियों का अनुमान कर सकते हैं कि जिनके प्रति वास्तविक जीवन में की गई संवेदनात्मक प्रतिक्रियाएँ, कवि-हृदय में संचित होकर भाव या भावना का रूप धारण कर चुकी हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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कल्पना को कहीं कहीं यथार्थ से जुड़ना चाहिए। कल्पना को रचने और समझने के लिए यथार्थ की भाषा से कहीं कहीं जुड़ना होगा।

कुबेरनाथ राय
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थोड़ा भाषण देना जाने से, और अख़बारों मे लिखना सीख जाने से ही नेता बन जाने की नौजवानों मे कल्पना हो तो वह ग़लत है। सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ना चाहिए

सरदार वल्लभ भाई पटेल
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यथार्थता के जगत की अपनी सीमाएँ हैं; कल्पना का जगत असीम है। हम एक को बढ़ा नहीं सकते अतः हमें दूसरे को छोटा करना चाहिए, क्योंकि उनके अंतर से ही वे बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं जो हमें दुखी कर देती हैं।

रूसो
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मानसिक रूप-विधान का नाम ही संभावना या कल्पना है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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कवि जिस ग्रंथ की रचना करता है उसके सब अर्थों की कल्पना नहीं कर लेता है। काव्य की यही ख़ूबी है कि वह कवि से भी बढ़ जाता है।

महात्मा गांधी
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हमारे विचार या आदर्श अमर होंगे, हमारे भाव जाति की स्मृति से कभी नहीं मिटेंगे, भविष्य में हमारे वंशधर की हमारी कल्पनाओं के उत्तराधिकारी बनेंगे, इस विश्वास के साथ मैं दीर्घ काल तक समस्त विपदाओं और अत्याचारों को हँसते हुए सहन कर सकूँगा।

सुभाष चंद्र बोस
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हर युग की अनुश्रुति पुराण पर कल्पना का नया रंग चढ़ा देती है और इस प्रकार हम तक आते-आते यह जीवन-गाथा सत्य, कल्पना, सिद्धांत, आदर्श, नीति आदि का संघात बन जाती है।

महादेवी वर्मा
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कल्पना और काल्पनिकता—दोनों में बड़ा अंतर है। सच्ची कल्पना युक्ति, संयम और सत्य के द्वारा सुनिर्दिष्ट आकार में बँधी होती है, काल्पनिकता में सत्य का आभास-मात्र होता है। लेकिन वह अद्भुत अतिरंजना से असंहत रूप में फूली हुई होती है, उसमें जो थोड़ा-बहुत प्रकाश होता है—उससे सौ गुना ज़्यादा धुआँ होता है।

रवींद्रनाथ टैगोर
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ईश्वर अनादि है, पर उस ईश्वर को, मैं दावे के साथ कहता हूँ, कोई नहीं जानता—वह कल्पना से परे है। वह सत्य है, पर इतना प्रकाशवान कि मनुष्य के नेत्र उसके आगे नहीं खुले रह सकते। उस सत्य को जानने का प्रयत्न करो, उस ईश्वर को पाने के लिए घोर तपस्या करो, पर सब व्यर्थ है—निष्फल है। यदि तुम ईश्वर को ही जान सको, यदि तुम्हारी कल्पना में ही वह अखंड और नि:सीम अनन्त का रचियता सके, तो फिर वह ईश्वर कैसा?

भगवती चरण वर्मा

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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