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छाया पर कविताएँ

छाया, छाँव, परछाई विषयक

कविताओं का चयन।

हमसफ़र

सुधांशु फ़िरदौस

साथ

वेणु गोपाल

छाया मत छूना

गिरिजाकुमार माथुर

साया

रमेश क्षितिज

परछाइयाँ

देवरकोण्ड बालगंगाधर तिलक

बुलावा

केहरि सिंह मधुकर

धरती पर जीवन सोया था

रामकुमार तिवारी

छाया

जी. शंकर कुरुप

ख़ाकी छायाएँ

सुदीप बनर्जी

जेठ

सुधीर रंजन सिंह

ये एक रात का साया है

प्रकृति करगेती

उसकी छाया

कंचन जायसवाल

एक सवाल

अंकुर मिश्र

मेरी परछाई

ममता जयंत

मैं हर रात

चित्रा सिंह

परछाईं

चावलि बंगारम्मा

छाया मत छूना मन

आशुतोष दुबे

साये का रास्ता

चंद्रकुमार

लौ

चंद्रकुमार

वृक्ष और छाया

मनोहर श्याम जोशी

होगा

अहर्निश सागर

पानी की परछाईं

दिलीप शाक्य

अदृश्य में

आदित्य शुक्ल

एक कोई अडोल

विनाेद शाही

शहर और उसकी छाया

उत्कर्ष पांडेय

छाया

सीताकांत महापात्र

सो लूँगा कुछ देर

नंदकिशोर आचार्य

ईश्वर तुम्हारी परछाई है

पुरुषोत्तम प्रतीक

परछाईं

हेमंत शेष

टूटी रोशनी

साैमित्र मोहन

परछाई

आकांक्षा

प्रतीति

गिरधर राठी

छाया

भगवत रावत

पहचान

संजीव मिश्र

सिंहों की छाया

शिवमंगल सिद्धांतकर

परछाइयाँ

शिव कुमार गांधी

धूप

प्रियंकर पालीवाल

छाया का वरदान

प्रमिला शंकर

घृणास्पद

अजय नेगी

परछाइयाँ

श्री श्री

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere