संगीत पर कविताएँ

रस की सृष्टि करने वाली

सुव्यवस्थित ध्वनि को संगीत कहा जाता है। इसमें प्रायः गायन, वादन और नृत्य तीनों शामिल माने जाते हैं। यह सभी मानव समाजों का एक सार्वभौमिक सांस्कृतिक पहलू है। विभिन्न सभ्यताओं में संगीत की लोकप्रियता के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। भर्तृहरि ने साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को पूँछ-सींग रहित साक्षात् पशु कहा है। इस चयन में संगीत-कला को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

संगतकार

मंगलेश डबराल

कजरी के गीत मिथ्या हैं

मनीष कुमार यादव

पागलदास

बोधिसत्व

राग यमन

अंकिता शाम्भवी

कोरस गायिका

आशुतोष दुबे

लोक गायक

प्रभात

पहले

निशांत कौशिक

एक धुन

आशीष त्रिपाठी

बिथोवेन

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

पियानो

डी. एच. लॉरेंस

स्वागत

सिल्वा कपुतिक्यान

इकतारे का गीत

लियोपोल्ड सेडार सेंगोर

सारंगी

कृष्णमोहन झा

पुर-असरार ढोल

गाब्रियल ओकारा

नया अनहद

दिनेश कुमार शुक्ल

राग यमन

अरुणाभ सौरभ

गीत नहीं गाता हूँ

अटल बिहारी वाजपेयी

ध्रुपद का टुकड़ा

दिनेश कुमार शुक्ल

दादा-दादी

श्रीप्रसाद

पुल्लुव-बाला

पी. कुण्हिरमन नायर

धितांग

जोशना बैनर्जी आडवानी

संगीत के रहते

असद ज़ैदी

न्यौली

हरि मृदुल

बैजू बावरा

यतींद्र मिश्र

निमाती कन्या

लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ

स्वाद की तलाश

शंकरानंद

राग भटियाली

कुँवर नारायण

वाद्य-यंत्र

सुरजीत पातर

संगीत-सभा

अजंता देव

संगीत

जितेंद्र कुमार

गुर्जरी तोड़ी

यतींद्र मिश्र

लोकतंत्र में लोक कलाकार

जितेंद्र श्रीवास्तव

ध्रुपद सुनते हुए

कृष्ण कल्पित

गवनहार आजी

केशव तिवारी

नया

व्योमेश शुक्ल

भरथरी गायक

केशव तिवारी

सुनो इकतारे

कृष्ण कल्पित

सरगम

शुभम नेगी

मुरचंग

संजीव मिश्र

आलाप

वसु गंधर्व

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere