ईश्वर पर उद्धरण
ईश्वर मानवीय कल्पना
या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

प्रत्येक सर्जक या विधाता, जीवन के चाहे जिस क्षेत्र की बात हो—‘विद्रोही’ और ‘स्वीकारवादी’ दोनों साथ ही साथ होता है।

हर आदमी भगवान की छवि में बना है, भले ही उसमें इसे भूलने की प्रवृत्ति हो।

हर किसी के अंदर एक गहरी लालसा होती है। हम हमेशा किसी न किसी चीज़ के लिए लालायित रहते हैं और हम मानते हैं कि हम जिस चीज़ के लिए लालायित रहते हैं वह यह या वह है, यह व्यक्ति या वह व्यक्ति, यह चीज़ या वह चीज़ है; लेकिन वास्तव में हम ईश्वर के लिए लालायित रहते हैं, क्योंकि मनुष्य सतत प्रार्थना है। व्यक्ति अपनी लालसा के माध्यम से एक प्रार्थना है।

ईश्वर संसार को समझाने के लिए स्वप्न में देखा गया एक शब्द मात्र है।

ख़ुदा बस इतना ही करता है कि देखता रहता है हमें, और मार देता है—जब हम उबाऊ हो जाते हैं। हमको कभी भी, हो सके तो हर समय, उबाऊ होने से बचना चाहिए।

मुझे लगता है कि व्यक्ति ईश्वर से आता है और ईश्वर के पास वापस जाता है, क्योंकि शरीर की कल्पना की जाती है और जन्म होता है, यह बढ़ता है और घटता है, यह मर जाता है और ग़ायब हो जाता है; लेकिन जीवात्मा शरीर और आत्मा का मेल है, जिस तरह एक अच्छी तस्वीर में आकार और विचार का अदृश्य संगम होता है।

ईश्वर इतना दूर है कि कोई भी उसके बारे में कुछ नहीं कह सकता है और यही कारण है कि ईश्वर के बारे में सभी विचार ग़लत हैं और साथ ही वह इतना क़रीब है कि हम उसे देख ही नहीं सकते, क्योंकि वह व्यक्ति में आधार या रसातल है। आप इसे जो चाहें कह सकते हैं।

अगर एक स्त्री अकेली सोती है तो यह सभी पुरुषों के लिए शर्मनाक है। ईश्वर के पास बड़ा दिल है, लेकिन एक ऐसा भी पाप है जिसे वह माफ़ नहीं करता : अगर एक स्त्री किसी पुरुष को बिस्तर पर बुलाती है और वह नहीं जाता।

लेखक को अपनी पुस्तक में ब्रह्मांड में ईश्वर की तरह होना चाहिए, जो हर जगह मौजूद है और कहीं भी दिखाई नहीं देता है।

विभिन्न धर्म अलग-अलग भाषाएँ हैं, जिनमें प्रत्येक की अपनी सच्चाई हो सकती है और सच्चाई की कमी हो सकती है और ऐसा सोचना मूर्खतापूर्ण है कि ईश्वर किसी प्रकार से परिभाषित है, जिसके बारे में आप कुछ भी कह सकते हैं।

मैं सब धर्मो को सच मानता हूँ। मगर ऐसा एक भी धर्म नहीं है जो संपूर्णता का दावा कर सके। क्योंकि धर्म तो हमें मनुष्य जैसी अपूर्ण सत्ता द्वारा मिलता है, अकेला ईश्वर ही संपूर्ण है। अतएव हिंदू होने के कारण अपने लिए हिंदू धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए भी मैं यह नहीं कह सकता कि हिंदू धर्म सबके लिए सर्वश्रेष्ठ है; और इस बात को तो स्वप्न में भी आशा नहीं रखता कि सारी दुनिया हिंदू धर्म को अपनाए। आपकी भी यदि अपने ग़ैर-ईसाई भाइयों की सेवा करनी है तो आप उनकी सेवा करनी है तो आप उनकी सेवा उन्हें ईसाई बनाकर नहीं, बल्कि उनके धर्म की त्रुटियों को दूर करने में और उसे शुद्ध बनाने में उनकी सहायता करके भी कर सकते हैं।

धर्म कुछ संकुचित संप्रदाय नहीं है, केवल बाह्याचार नहीं है। विशाल, व्यापक धर्म है ईश्वरत्व के विषय में हमारी अचल श्रद्धा, पुनर्जन्म में अविरल श्रद्धा, सत्य और अहिंसा में हमारी संपूर्ण श्रद्धा।

ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं—मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति।

अपने देश के प्रति मेरा जो प्रेम है, उसके कुछ अंश में मैं अपने जन्म के गाँव को प्यार करता हूँ। और मैं अपने देश को प्यार करता हूँ पृथ्वी— जो सारी की सारी मेरा देश है—के प्रति अपने प्रेम के एक अंश में। और मैं पृथ्वी को प्यार करता हूँ अपने सर्वस्व से, क्योंकि वह मानवता का, ईश्वर का, प्रत्यक्ष आत्मा का निवास-स्थान है।

भगवान में विश्वास करने से इनकार करने में बहुत गर्व शामिल है।

हम ईश्वर से दो स्तरों पर विलगित हैं—‘पतन’ हमें उससे अलग करता है और ‘जीवन-वृक्ष’ उसे हमसे।

मैं स्वर्ग के पार उड़ गया और भगवान को काम करते हुए देखा। मैंने पवित्र कष्ट सही।

ईश्वर विवरण में है।

मैं उसके साथ छह महीने रहा। उस दिन से—ईश्वर मेरा साक्षी है!—मुझे किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं पड़ी। सिवाय एक चीज़ के कि शैतान या भगवान, उन छह महीनों की स्मृति मेरे मन से मिटा देगा।

ईश्वर अपना रूप पल-पल बदलता रहता है। ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो उसे उसके तमाम रूपों में भी चीन्ह सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि हमें संदेह है कि भगवान हमारे लिए सबसे अच्छा करेंगे, हम सोच रहे हैं कि सबसे अच्छा कितना दर्दनाक होगा।

सब धर्म ईश्वर की देन हैं, परंतु उनमें मानव की अपूर्णता की पुट है, क्योंकि वे मनुष्य की बुद्धि और भाषा के माध्यम से गुज़रते हैं।

हिटलर पर भी ग़ुस्सा करना उचित नहीं है, ईश्वर पर तो और भी कम।

ईश्वर मुझमें है, वरना ईश्वर मुझमें है, वरना बिल्कुल नहीं है। बिल्कुल नहीं है।

किसी को जानने के बाद उसके बारे में कहने के लिए कुछ भी नहीं बचता। जो लोग ईश्वर को नहीं जानते, वे ईश्वर के बारे में सबसे ज़्यादा बातें करते हैं।

भगवान के लिए प्यार तब शुद्ध है, जब ख़ुशी और पीड़ा समान कृतज्ञता के लिए प्रेरित करती हैं

ईसाई होने का मतलब अक्षम्य को क्षमा कईसाई होने का मतलब अक्षम्य को क्षमा करना है, क्योंकि भगवान ने आपमें अक्षम्य को क्षमा कर दिया है।

यदि कोई ईश्वर पर पूरा भरोसा कर सकता है तो दूसरों के मन (की सत्ता) पर क्यों नहीं?

ईश्वर, मैं तुमसे नफ़रत करता हूँ। मैं तुमसे इस तरह नफ़रत करता हूँ, मानो तुम सच में मौजूद हो।


ईसाई यह नहीं सोचता है कि परमेश्वर हमसे इसलिए प्रेम करेगा क्योंकि हम अच्छे हैं, लेकिन यह सोचता है कि परमेश्वर हमें इसलिए अच्छा बनाएगा; क्योंकि वह हमसे प्रेम करता है।

ईश्वर और कल्पना एक ही हैं।

प्यारे भगवान, मुझे थोड़ी देर, थोड़ी और देर तक शापित बने रहने दो।

वस्तुतः स्त्रियों को अपने इष्ट व्यक्ति (प्रियतम) के प्रवास से उत्पन्न दुःख अत्यंत असह्य होते हैं।

ईश्वर केवल उन लोगों को छोड़ देता है जो ख़ुद को छोड़ देते हैं, और जो भी अपने दुख को अपने दिल के भीतर बंद रखने की हिम्मत रखता है, वह उससे लड़ने में—शिकायत करने वाले व्यक्ति से अधिक मज़बूत होता है।

हम ईश्वर की उपस्थिति को अनदेखा कर सकते हैं, लेकिन कहीं भी उनसे बच नहीं सकते हैं। वह दुनिया में हमेशा विद्यमान हैं। वह हर जगह गुप्त रूप से चलते हैं।

आप परमेश्वर से तब तक प्रेम नहीं करते हैं, जब तक आप किसी व्यक्ति से पूरी तरह प्रेम नहीं करते हैं।

बुरे लोगों को सज़ा देना ईश्वर का काम है, हमें माफ़ करना सीखना चाहिए।


ईश्वर नहीं, बल्कि उसमें विश्वास मायने रखता है।

भविष्य परमेश्वर के हाथ में है, सरकार के हाथ में नहीं है।

दानव हो या मानव, मुनि हो या भोले-भाले शंकर, भी सुरलोक की सुंदरियों को कटाक्ष-शृंखला से वह बंध ही जाएगा।

ज्ञान की अपेक्षा (परमेश्वर के स्वरूप का) ध्यान श्रेष्ठ है।

(परमेश्वर के स्वरूप के) ध्यान की अपेक्षा कर्मफल का त्याग श्रेष्ठ है।

सारा धन भगवान का है और यह जिन लोगों के हाथ में है, वे उसके रक्षक हैं, स्वामी नहीं।

भगवान कितना अधिक दुःख-कष्ट मनुष्य को देते हैं, तब उसे सच्ची मानवता तक पहुँचा देते हैं।

ईश्वर दर्शकों के साथ खेलता एक विदूषक है, जिसके दर्शक हँसने से भी डरते हैं।

अपने-आप में स्थिर हो और जानो कि मैं ईश्वर हूँ।

मैंने कभी कुछ ज़्यादा तो नहीं, पर भगवान से एक प्रार्थना तो की है : हे भगवान, मेरे दुश्मनों को हास्यास्पद बना दो। और भगवान ने इसे मंज़ूर कर लिया।

उन लोगों के लिए कुछ भी बदसूरत नहीं है, जो ईश्वर द्वारा बनाई गई हर चीज़ के गुणों और उसकी मोहकता को समझते हैं।
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