यथार्थ के प्रति मनुष्य की जानकारी बदलती रहती है या दूसरे शब्दों में वह विकसित होती रहती है। तब उस यथार्थ विशेष का बोध कराने वाले शब्द का अर्थ भी बदलता रहता है।
दुनिया में दु:ख तो बहुत हैं, परंतु अगम-अगाध गंभीर दु:ख बहुत ही कम! ठीक वैसे ही जैसे कामबोध की खुजलाहट तो सबके पास है, परंतु निर्मल उदात्त प्रेम की क्षमता बिरले के ही पास होती है।
आँखें एक जैसी होने पर भी देखने-देखने में फ़र्क़ होता है।
शरीर अंततः अवास्तविक है।
विज्ञान में सत्य-मिथ्या का विचार ही अंतिम विचार होता है। इसी कारण से वैज्ञानिक की अंतिम अपील, विचारक के व्यक्तिगत संस्कार के ऊपर प्रमाण में होती है।
नींद में आदमी जो सपना देखता है, उसे वह सही मानता है। जब उसकी नींद खुलती है तभी उसे अपनी ग़लती मालूम होती है। ऐसी ही दशा सभ्यता के मोह में फँसे हुए आदमी की होती है।
जो प्रतिज्ञा प्रत्यक्ष प्रमाण से ही बाधित हो, अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण से ही अयथार्थ (असत्य) सिद्ध हो जाए, उसे प्रत्यक्षबाधिनी प्रतिज्ञा कहते हैं। यथा, अग्नि शीतल है, रूप का अस्तित्व नहीं है, चंद्रमा उष्ण है।
किसी न किसी जादू या टोने में यक़ीन किए बग़ैर, कवि या लेखक बने रहना शायद ही संभव हो।
कोरा किताबी ज्ञान मनुष्य को धोखा भी दे सकता है, किन्तु संघर्षों से निकली हुई शिक्षा कभी भी झूठी नहीं होती।
प्राण-संशय होने पर प्राणियों के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं होता है।
यथार्थ क्या है और अयथार्थ क्या है–इसका कोई स्पष्ट भेद नहीं रहा है और न ही सच्च व झूठ में कोई अंतर रहा है।
कल्पना और काल्पनिकता—दोनों में बड़ा अंतर है। सच्ची कल्पना युक्ति, संयम और सत्य के द्वारा सुनिर्दिष्ट आकार में बँधी होती है, काल्पनिकता में सत्य का आभास-मात्र होता है। लेकिन वह अद्भुत अतिरंजना से असंहत रूप में फूली हुई होती है, उसमें जो थोड़ा-बहुत प्रकाश होता है—उससे सौ गुना ज़्यादा धुआँ होता है।
यथार्थ और भ्रम के अपने-अपने आकर्षण हैं। यथार्थ को जानते हुए भ्रम में रहना एक तीसरा रास्ता है, और उसके आकर्षण कम नहीं।
आधुनिकता का प्रभाव बीमारी के रूप में लोगों के मन में घुस गया है। इस बीमारी का पहला दुष्परिणाम यह है कि आदमी जो जीता है, उससे भिन्न रूप दिखाता है।
नाटक में सत्य एक शाश्वत मरीचिका है।
वृहत्तर अर्थों में प्रसन्नता कोई ऐसी यथार्थवादी खोज नहीं है। प्रसन्नता एक क्षण है। प्रसन्नता एक तितली है। मैं जब कोई रचना पूरी कर लेता हूँ तो मुझे प्रसन्नता महसूस होती है।
जब आप राजनीति में शुद्धता की तलाश शुरू करते हैं, तब आप अंततः अवास्तविकता तक पहुँच जाते हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere