पुस्तक पर उद्धरण
पुस्तकें हमारे लिए नए
अनुभव और ज्ञान-संसार के द्वार खोलती हैं। प्रस्तुत चयन में ‘रोया हूँ मैं भी किताब पढ़कर’ के भाव से लेकर ‘सच्ची किताबें हम सबको अपनी शरण में लें’ की प्रार्थना तक के भाव जगाती विशिष्ट पुस्तक विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

सच्चे कद का पुस्तक उधार लेने वाला; अभी जिसकी हमने कल्पना की, वह पुस्तकों का चिरकालीन संग्राहक सिद्ध होता है, उस तेवर के सबब नहीं जो वह अपने उधार खजाने की सुरक्षा के लिए करता है और इसलिए भी नहीं कि वह कानून की दैनंदिन दुनिया से आते हुए हर तकाजों की अनसुनी करता जाता है, बल्कि इसलिए क्योंकि वह उन पुस्तकों को पढ़ता ही नहीं।

किताबें यह बताती हैं कि मनुष्य के मौलिक विचार उतने नए नहीं होते, जितना वह समझता है।

…प्यार करना, अधूरी रह गई किताब को जारी रखने जैसा आसान काम नहीं था।

मैंने एक दिन एक किताब पढ़ी और मेरा पूरा जीवन बदल गया।

मैं एक बहुत ही साधारण इंसान हूँ, मुझे बस किताबें पढ़ना पसंद है।

किताबें, जिन्हें हम सांत्वना समझने की भूल करते हैं; केवल हमारे दुःख को और गहरा करती हैं।

लेखक को अपनी पुस्तक में ब्रह्मांड में ईश्वर की तरह होना चाहिए, जो हर जगह मौजूद है और कहीं भी दिखाई नहीं देता है।

शब्दों, लेखन और पुस्तकों के बिना न कोई इतिहास होगा और न ही मानवता की कोई अवधारणा होगी।

ख़ुद को किताब की समस्याओं में डुबाना प्यार के बारे में सोचने से बचने का अच्छा तरीक़ा है।

मैं कल्पना नहीं कर सकता कि कोई आदमी वास्तव में किसी किताब का आनंद ले और उसे केवल एक बार पढ़े।

कैसे मैं, जो जीवन को इतनी तीव्रता से चाहता है, स्वयं को लंबे समय तक किताबों की निरर्थक बातों और स्याही से काले पड़े पन्नों में उलझा हुआ छोड़ सकता था!

किताबें उन लोगों के लिए हैं जो चाहते हैं कि वे कहीं और हों।

हमारा जीवन मनुष्यों के संपर्क से मुक्त होकर वृक्षों में वाणी, गतिशील सरिताओं में पुस्तकें, शिलाओं में सदुपदेश तथा प्रत्येक वस्तु में अच्छाई का दर्शन करने लगता है।

केवल वही पुस्तक लिखने योग्य है जिसे लिखने का हममें साहस नहीं है। जिस पुस्तक को हम लिख रहे होते हैं, वह हमें आहत करती है, हमें कँपाती है, शर्मिंदा करती है, ख़ून निकालती है।

कोई भी पुस्तक दस वर्ष की आयु में पढ़ने योग्य नहीं है जो पचास वर्ष और उससे अधिक की आयु में भी उतनी ही और अक्सर उससे कहीं अधिक पढ़ने योग्य नहीं है।

आपको केवल उन्हीं पुस्तकों को लिखना चाहिए जिनके न होने से आप दुखी हैं।

अच्छी पुस्तक पढ़ने के बाद आप सदैव मनोवृत्ति के उन्नयन के साथ उठते हैं।

जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहता है जो वही किताब पढ़ता है जिसे वह पढ़ता है तो पढ़ने का आनंद दोगुना हो जाता है।

मलार्मे ने कहा कि दुनिया में सब कुछ इसलिए मौजूद है कि एक किताब में समाप्त हो जाए। आज सब कुछ इसलिए मौजूद है कि वह एक तस्वीर में समाप्त हो जाए।

सच्चाई किताब की गहराइयों में छुपी होती है, बस उसे पढ़ने की देर है।

हर जगह किताबें। अलमारियों पर और किताबों की क़तार के ऊपर छोटी-सी जगह पर और पूरे फ़र्श पर और कुर्सियों के नीचे, वे किताबें जो मैंने पढ़ी हैं, वे किताबें जो मैंने नहीं पढ़ी हैं।

मेरे बारे में जो कुछ भी मायने रखता है, सब मेरी किताबों में है।

एक बेहतर किताब हृदय को शिक्षित करती है।

कोई किताब जो उसमें है, उससे सफल नहीं बनती है; बल्कि उससे बनती है जो बाद में बचा रह जाता है।

अगर कोई ऐसी पुस्तक है जिसे आप पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उसे अभी तक लिखा नहीं गया है, तो आपको उसे ज़रूर लिखना चाहिए।

यह स्पष्ट है कि हर अच्छी किताब को दस साल में कम से कम एक बार पढ़ लेना चाहिए।

दुनिया के इतिहास का पूरा हिस्सा अक्सर मुझे कुछ नहीं लगता बल्कि एक चित्र पुस्तक जो मानवता की सबसे शक्तिशाली और बेतुकी इच्छा को दर्शाती है—भूलने की इच्छा।

उसे ऐसा लगता है, जैसे कोई किताब उसके पीछे ख़ुद को लिख रही हो; उसे बस इतना करना है कि ज़िंदा रहना है।

अगर किसी लेखक को सब पता हो जो होने जा रहा है, तो उसकी पुस्तक उसके शुरू करने से पहले ही मर जाएगी।

मैं जहाँ भी जाती हूँ—शहर के चौक पर—किताबों की दुकानें अभी भी सबसे प्रिय हैं।

किताबें, किताबें, किताबें। ऐसा नहीं है कि मैंने बहुत अधिक पढ़ा है। मैं उन्हीं किताबों को बार-बार पढ़ती जाती हूँ। लेकिन ये सभी मेरे लिए ज़रूरी थीं। उनकी उपस्थिति, उनकी गंध, उनके शीर्षकों के अक्षर और उनके चमड़े की जिल्द की बनावट।

मैं कहता हूँ कि मैं अपनी किताबों का निचोड़ हूँ।

मैं अपनी किताबों में उस तरह के जादू में विश्वास नहीं करती, लेकिन मुझे विश्वास है कि जब आप अच्छी किताब पढ़ते हैं तो कोई जादुई घटना घट सकती है।

हम अपने जीवन का एक भी पन्ना नहीं फाड़ सकते हैं, लेकिन हम पूरी किताब को आग में झोंक सकते हैं।

किताबों की भारी मात्रा के बावजूद, कितने लोग हैं जो पढ़ते हैं! और अगर कोई तरीक़े से पढ़ता है, तो उसको एहसास होगा कि हर दिन निगलने के लिए कितनी बकवास सामग्री भरी पड़ी है।

पुस्तकों को बैटरी की ज़रूरत नहीं है।

यह सही है कि ‘सत्य’ ‘अस्तित्व’ आदि शब्दों के आते ही हमारा कथाकार चिल्ला उठता है, 'सुनो भाइयो! यह क़िस्सा-कहानी रोककर मैं थोड़ी देर के लिए तुमको फ़िलासफ़ी पढ़ाता हूँ, ताकि तुम्हें यक़ीन हो जाए कि वास्तव में मैं फ़िलासफ़र था पर बचपन के कुसंग कारण यह उपन्यास (या कविता) लिख रहा हूँ। इसलिए हे भाइयो! लो, यह सोलहपेजी फ़िलासफ़ी का लटका; और अगर मेरी किताब पढ़ते-पढ़ते तुम्हें भ्रम हो गया हो कि मुझे औरों-जैसी फ़िलासफ़ी नहीं आती, तो उस भ्रम को इस भ्रम से काट दो।'

पुस्तकें एकत्र करने के प्रचलित तरीकों में, संग्राहक के लिए सर्वाधिक उपयुक्त तरीका यही होगा कि वह किसी पुस्तक को उधार लेकर उसे लौटाए नहीं।

किताब लिखना—घटिया किताब तक लिखना नरक है।

संतों की वाणी सुनो, शास्त्र पढ़ो, विद्वान हो लो, लेकिन अगर ईश्वर को हृदय में स्थान नहीं दिया तो कुछ नहीं किया।

वह उत्तर प्रदेश जिसे मैं अपनी थाती समझकर प्यार करता था–सिर्फ़ किताबों में बचा है। मुझ तक वह पहुँचा भी किताबों के रास्ते था।

अच्छे दोस्त, अच्छी क़िताबें और एक उनींदी चेतना: एक आदर्श जीवन यही है।

पुस्तक पढ़ना तो चाहते हैं, पर गाँठ का पैसा ख़र्च करके नहीं। जिनकी माकूल आमदनी है वह भी पुस्तकों की भिक्षा माँगने में नहीं शरमाते।

वेद शास्त्रों में कहा है कि जिसका मूल अव्यक्त है, जो अनादि है, जिसकी चार त्वचाएँ, छः तने, पचीस शाखाएँ, अनेक पत्ते और बहुत से फूल हैं, जिनमें कड़ुवे और मीठे दो प्रकार के फल लगे हैं, जिस पर एक ही बेल है, जो उसी के आश्रित रहती है, जिसमें नित्य नए पत्ते और फूल निकलते रहते हैं, ऐसे संसार-वृक्ष स्वरूप आपको हम नमस्कार करते हैं।

मैं एक शब्द कहने के लिए आया था और वह शब्द मैं अब कहता हूँ। परंतु यदि मृत्यु ने उसके कहे जाने में बाधा डाल दी, तो आने वाला कल उसे कहेगा, क्योंकि आने वाला कल अनंत की पुस्तक में कोई रहस्य नहीं रहने देता।

बुरी पुस्तकें एक ऐसा विष होती हैं, जो समाज में बुराई के बीज डालती हैं। इन पुस्तकों के लेखक अपनी क़ब्रों से भी भावी पीढ़ियों की हत्या करते रहते हैं।

बच्चे की ज़िंदगी एक लंबी ज़िंदगी है। उसमें एक किताब आकर चली नहीं जानी चाहिए।

मैं अपनी किताब के पहले प्रारूप का क़ैदी हूँ।

किसी प्रगतिशील जाति के जीवन में सजीव शक्ति बने रहने के लिए महाकाव्य को मंद गति से परिवर्तनशील ग्रंथ होना ही चाहिए। परिशोधन और विस्तार तो इस बात के बाह्य संकेत मात्र हैं कि यह प्रेरणा देने और मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ रहा है, न कि पुस्तकों की धूल-धूसरित अलमारी में पड़ा अप्रुक्त तथा विस्मृत ग्रंथ।

वे (नारी-नेत्र) ही वे पुस्तकें, कलाएँ और शिक्षापीठ हैं जो समस्त संसार को प्रकट करते हैं, रखते और पोषित करते हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere