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अवनीन्द्रनाथ ठाकुर

1871 - 1951 | जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी, पश्चिम बंगाल

प्रसिद्ध चित्रकार, लेखक और कला-आचार्य। बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के संस्थापक।

प्रसिद्ध चित्रकार, लेखक और कला-आचार्य। बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के संस्थापक।

अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 2

 

उद्धरण 143

विशुद्ध व्याकरण और परिभाषा आदि के द्वारा घटना का बखान करने से ही यदि घटना का पूरा बखान हो जाता तो साहित्य समाचार-पत्रों में ही बंद रहता।

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एक निरी कामकाजी दृष्टि के द्वारा एक कामकाजी व्यक्ति को खेत, कृषि-विज्ञान और नीतिशास्त्र की किताबों के पन्नों की तरह दिखाई देते हैं, खेतों की हरियाली किस तरह से गाँव के कोने तक फैल गई है—उसे भावुक ही देखता है।

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एक सुभाषित है—'कवितारसमाधुर्य्यम् कविर्वेत्ति’, कविता का रस-माधुर्य सिर्फ़ कवि जानता है। ठीक उसी प्रकार सुर में सुर मिलना चाहिए, नहीं तो वाद्ययंत्र कहेगा ‘गा’ और गले से निकलेगा ‘धा’।

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रूप-विद्या मनुष्य को विषय के सत्य तक पहुँचा देना चाहती है।

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जो कला होती है वह सुंदर और सत्य होती है, जो बनावट होती है वह असुंदर और असत्य होती है।

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Recitation

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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