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वेद पर उद्धरण

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कृतघ्न को यश कैसे प्राप्त हो सकता है? उसे कैसे स्थान और सुख की उपलब्धि हो सकती है? कृतघ्न विश्वास के योग्य नहीं होता। कृतघ्न के उद्धार के लिए शास्त्रों में कोई प्रायश्चित नहीं बताया गया है।

वेदव्यास
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वेद से बड़ा शास्त्र नहीं है, माता के समान गुरु नहीं है, धर्म से बड़ा लाभ नहीं है तथा उपासना से बड़ी तपस्या नहीं है।

वेदव्यास
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शास्त्र कटु औषधि के समान अविद्यारूप व्याधि का नाश करता है। काव्य आनंददायक अमृत के समान अज्ञान रूप रोग का नाश करता है।

कुंतक
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कवि का वेदांत-ज्ञान, जब अनुभूतियों से रूप, कल्पना से रंग और भावजगत से सौंदर्य पाकर साकार होता है, तब उसके सत्य में जीवन का स्पंदन रहेगा, बुद्धि की तर्क-श्रृंखला नहीं। ऐसी स्थिति में उसका पूर्ण परिचय अद्वैत दे सकेगा और विशिष्टाद्वैत।

महादेवी वर्मा
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कवि जिस ग्रंथ की रचना करता है उसके सब अर्थों की कल्पना नहीं कर लेता है। काव्य की यही ख़ूबी है कि वह कवि से भी बढ़ जाता है।

महात्मा गांधी
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दान, दक्षता, शास्त्र ज्ञान, शौर्य, लज्जा, कीर्ति, उत्तम बुद्धि, विनय, श्री, धृति, तुष्टि और पुष्टि—ये सभी सद्गुण भगवान श्री कृष्ण में नित्य विद्यमान हैं।

वेदव्यास
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वेद शास्त्रों में कहा है कि जिसका मूल अव्यक्त है, जो अनादि है, जिसकी चार त्वचाएँ, छः तने, पचीस शाखाएँ, अनेक पत्ते और बहुत से फूल हैं, जिनमें कड़ुवे और मीठे दो प्रकार के फल लगे हैं, जिस पर एक ही बेल है, जो उसी के आश्रित रहती है, जिसमें नित्य नए पत्ते और फूल निकलते रहते हैं, ऐसे संसार-वृक्ष स्वरूप आपको हम नमस्कार करते हैं।

तुलसीदास
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मैंने 'बाइबिल' को समझने का प्रयत्न किया है। मैं उसे अपने धर्मशास्त्र में गिनता हूँ। मेरे हृदय पर जितना अधिकार 'भगवद्गीता' का है, उतना ही अधिकार 'सरमन आन माउंट' का भी है। ‘लीड काइंडली लाइट' तथा अन्य अनेक प्रेरणा-स्फूर्त्त प्रार्थना-गीत मैं किसी ईसाईधर्मावलंबी से कम भक्ति के साथ नहीं गाता हूँ।

महात्मा गांधी
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श्रीकृष्ण का लोकरक्षक और लोकरंजक रूप गीता में और भागवत पुराण में स्फुरित है। पर धीरे-धीरे वह स्वरूप आवृत्त होता गया है और प्रेम का आलंबन मधुर रूप ही शेष रह गया।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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हरि कथा तो भगवान्, भक्त और नाम का त्रिवेणी-संगम है।

संत तुकाराम
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क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है तथा क्षमा शास्त्र है।

वेदव्यास
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योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है और शास्त्र के ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना जाता है तथा कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है। अतः हे अर्जुन! तू योगी हो।

वेदव्यास
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अन्य बहुत से शास्त्रों का संग्रह करने की क्या आवश्यकता है? गीता का ही अच्छी तरह से गान करना चाहिए, क्योंकि वह स्वयं पद्मनाभ भगवान् के मुख कमल से निकली हुई है।

वेदव्यास
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जीवन के सिद्धांतों को व्यवहार में लाने की जो कला या युक्ति है, उसी को 'योग' कहते हैं। सांख्य का अर्थ है— 'सिद्धांत' अथवा 'शास्त्र' और 'योग' का अर्थ है 'कला'।

विनोबा भावे

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere