
स्त्रियों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि सुंदरता उनका छत्र है, इसलिए मन शरीर को आकार देता है और अपने चमकदार पिंजरे में घूमते हुए केवल अपनी जेल को सजाना चाहता है।

स्नेह से उत्पन्न दया नामक शिशु, धन नामक धाय से पोषित होता है।

बचपन में हमेशा एक पल होता है, जब दरवाज़ा खुलता है और भविष्य को प्रवेश करने देता है।

बंधुओं तथा मित्रों पर नहीं, शिष्य का दोष केवल उसके गुरु पर आ पड़ता है। माता-पिता का अपराध भी नहीं माना जाता क्योंकि वे तो बाल्यावस्था में ही अपने बच्चों को गुरु के हाथों में समर्पित कर देते हैं।

छोटेपन में अहंकार का दर्प इतना प्रचंड होता है कि वह अपने को ही खंडित करता रहता है।


बचपन मनुष्य पर कभी-कभी दुबारा भी आता है परंतु यौवन कभी नहीं।

हम खेलना बंद नहीं करते क्योंकि हम बूढ़े हो जाते हैं; हम बूढ़े हो जाते हैं क्योंकि हम खेलना बंद कर देते हैं।
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बचपन के जंगली बाग़ीचे में सब कुछ एक अनुष्ठान है।

मेरे पास वह सब है जिसे मैंने खो दिया। मैं अपना बचपन ऐसे लेकर चलती हूँ जैसे कोई पसंदीदा फूल हाथों को ख़ुशबुओं से भर देता है।

मैं एक प्यारा बच्चा था।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere