देह पर कविताएँ

देह, शरीर, तन या काया

जीव के समस्त अंगों की समष्टि है। शास्त्रों में देह को एक साधन की तरह देखा गया है, जिसे आत्मा के बराबर महत्त्व दिया गया है। आधुनिक विचारधाराओं, दासता-विरोधी मुहिमों, स्त्रीवादी आंदोलनों, दैहिक स्वतंत्रता की आवधारणा, कविता में स्वानुभूति के महत्त्व आदि के प्रसार के साथ देह अभिव्यक्ति के एक प्रमुख विषय के रूप में सामने है। इस चयन में प्रस्तुत है—देह के अवलंब से कही गई कविताओं का एक संकलन।

स्त्री के पैरों पर

प्रियंका दुबे

उसने कहा मुड़ो

वियोगिनी ठाकुर

पूश्किन-सा

अंकिता रासुरी

इच्छा

उपासना झा

मुझे पसंद हैं

अणुशक्ति सिंह

पंचतत्व

गीत चतुर्वेदी

आलिंगन

अखिलेश सिंह

देह पर आकृतियाँ

अंकिता शाम्भवी

हम और दृश्य

रूपम मिश्र

इसी काया में मोक्ष

दिनेश कुशवाह

कीलें

शुभम नेगी

सबसे पहले

हेमंत कुकरेती

पीड़ा में पगी स्त्री

वियोगिनी ठाकुर

संबंध

अरुण कमल

वसंत

राकेश रंजन

मैं लाशें फूँकता हूँ

मनीष कुमार यादव

दूध के दाँत

गीत चतुर्वेदी

शिल्पी

बेबी शॉ

जीवन और मृत्यु

लक्ष्मण गुप्त

अपना-अपना तरीक़ा

जितेंद्र रामप्रकाश

ख़ाली मकान

स्टीफन स्पेंडर

देह का संगीत

घनश्याम कुमार देवांश

एकांत में वह

कंचन जायसवाल

औरत एक देह है?

प्रीति चौधरी

तुम्हारी स्मृतियाँ

वियोगिनी ठाकुर

चुम्बन

सौरभ मिश्र

निष्ठुरता

प्रिया वर्मा

लड़की एक

उमा भगत

तृप्ति

कुंजकिरण

अभिलाषा

कुंजकिरण

देह की दूरियाँ

गिरिजाकुमार माथुर

बसंत की देह

ज्याेति शोभा

मर्द नहीं हैं

सुमित त्रिपाठी

मर्दों में

निखिल आनंद गिरि

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere