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देह पर कविताएँ

देह, शरीर, तन या काया

जीव के समस्त अंगों की समष्टि है। शास्त्रों में देह को एक साधन की तरह देखा गया है, जिसे आत्मा के बराबर महत्त्व दिया गया है। आधुनिक विचारधाराओं, दासता-विरोधी मुहिमों, स्त्रीवादी आंदोलनों, दैहिक स्वतंत्रता की आवधारणा, कविता में स्वानुभूति के महत्त्व आदि के प्रसार के साथ देह अभिव्यक्ति के एक प्रमुख विषय के रूप में सामने है। इस चयन में प्रस्तुत है—देह के अवलंब से कही गई कविताओं का एक संकलन।

नीली आग वाली लड़की

पाब्लो नेरूदा

उसने कहा मुड़ो

वियोगिनी ठाकुर

सागर शब्द है शुष्क

शुन्तारो तानीकावा

अपना-अपना तरीक़ा

जितेंद्र रामप्रकाश

इच्छा

उपासना झा

आठ सितंबर

पाब्लो नेरूदा

मेरे तन!

सी. पी. कवाफ़ी

वसंत

राकेश रंजन

आलिंगन

अखिलेश सिंह

ख़ाली मकान

स्टीफन स्पेंडर

एकांत में वह

कंचन जायसवाल

साँझ का उजास

यीव बोनफ़्वा

दाँत की विदाई

हो चि मिन्ह

शिल्पी

बेबी शॉ

हम और दृश्य

रूपम मिश्र

रोगशैया पर

कोफ़ी अवूनोर

1901 के दिन

सी. पी. कवाफ़ी

मानव शरीर

येहूदा आमिखाई

सबसे पहले

हेमंत कुकरेती

जीवन और मृत्यु

लक्ष्मण गुप्त

कीलें

शुभम नेगी

मुझे पसंद हैं

अणुशक्ति सिंह

पूश्किन-सा

अंकिता रासुरी

स्त्री के पैरों पर

प्रियंका दुबे

पीड़ा में पगी स्त्री

वियोगिनी ठाकुर

चुम्बन

सौरभ मिश्र

औरत एक देह है?

प्रीति चौधरी

जिस्म याद करो

सी. पी. कवाफ़ी

सितंबर : 1903

सी. पी. कवाफ़ी

निष्ठुरता

प्रिया वर्मा

संबंध

अरुण कमल

मर्दों में

निखिल आनंद गिरि

लड़की एक

उमा भगत

तृप्ति

कुंजकिरण

बसंत की देह

ज्याेति शोभा

मर्द नहीं हैं

सुमित त्रिपाठी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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