
अनुभव और दंड ऐसी सीख देते हैं जो अन्य उपायों से संप्रेषित नहीं होती।

त्यागने की संतुष्टि और अनुभव की संतुष्टि में बहुत बड़ा अंतर है।

ख़ुशी का अनुभव करते हुए हमें उसके प्रति चेतन होने में कठिनाई होती है। जब ख़ुशी गुज़र जाती है और हम पीछे मुड़कर उसे देखते और अचानक से महसूस करते हैं—कभी-कभार आश्चर्य के साथ—कितने ख़ुश थे हम।

अनुभव अर्थात् मनुष्यों द्वारा अपनी ग़लतियों को दिया जाने वाला नाम।

पूर्वकल्पित धारणाओं से किसी को समझना सही नहीं है। सच्ची पहचान उसके आचरण से ही मिल सकती है। लेकिन व्यवहार प्रासंगिक है। क्या यह व्यक्तित्व के सुसंगत पहलुओं का परिचय दे सकता है? अन्यथा व्यवहार भी भ्रामक है। धारणा भी भ्रामक है। अनुभव भी भ्रामक है… तो सच क्या है? लेकिन सत्य भी धारणा ही है, है ना? बिना धारणा के मैं दौड़ नहीं सकता।

सिर्फ़ विश्वास करने से काम नहीं चलता। आश्वस्त भी होना चाहिए—अनुभव से।

जो लोग सौंदर्य के उपभोग में उन्मत्त हैं, उनकी यंत्रणा कैसी है, इसका अनुभव मैं भोजन करने के लिए बैठने पर ही करता हूँ। मेरे जीवन में घोर दुःख यह है कि अन्न-व्यंजन थाली में रखते-रखते ही ठंडे हो जाते हैं। उसी प्रकार सौंदर्य-रूपी मोटे चावल का भात है, प्रेम-रूपी केला के पत्तल पर डालते ही ठंडा हो जाता है—फिर कौन रुचि से उसे खाए? अंत में वेश-भूषा-रूपी इमली की चटनी मिलाकर, ज़रा अदरक-नमक के क़तरे डालकर किसी तरह निगल जाना पड़ता है।

भय का अनुभव केवल उन्हें ही होगा जिनको विश्वास नहीं है।

प्रतिभा लंबा धैर्य है और मौलिकता इच्छाशक्ति और गहन अवलोकन का प्रयास है।

मूर्खों के साथ कभी बहस मत करो। वे आपको अपने स्तर तक गिरा देंगे और आपको अनुभव से हरा देंगे।

मैंने अपना साहित्यिक अस्तित्व ऐसे व्यक्ति जैसा बनाना शुरू कर दिया, जो इस तरह रहता है जैसे उसके अनुभव किसी दिन लिखे जाने थे।

गति देखी तो नहीं जा सकती, अनुभव करना होता है।

अनुभव सबसे क्रूर शिक्षक है। लेकिन तुम सीखते हो, मगर क्या तुम सच में सीखते हो।

प्रमाद भी एक अनुभव है।

प्यार को कभी समझा नहीं गया है, चाहे इसे पूरी तरह से अनुभव किया गया हो और उस अनुभव को संप्रेषित किया गया हो।

आत्मज्ञान ही हमारी चेतना की शर्त और सीमा है। शायद इसलिए ही कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने अनुभव की छोटी परिधि के बाहर की बातें बहुत कम जानते हैं। वे अपने भीतर देखते हैं और उन्हें जब वहाँ कुछ नहीं मिलता तो वे यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि बाहर कुछ नहीं है।

विदाई के अनुभव की उत्कटता सिर्फ़ आँखें ही विशेषत: बयाँ कर पाती हैं

आत्मनिरीक्षण खाने वाला दानव है। आपको इसे बहुत सारी सामग्री, बहुत सारे अनुभवों, अनेक लोगों, अनेक स्थानों, कई प्रेमों, कई रचनाओं का भक्षण कराना होगा, और तब यह आपको खाना बंद कर देता है।


कोई भी व्यक्ति जो कुछ अनुभव कर रहा है, उस समय वह इसके विशेषज्ञों से बड़ा विशेषज्ञ होता है।

आज मैं देश से बाहर हूँ, देश से दूर हूँ, परंतु मन सदा वहीं रहता है और इसमें मुझे कितना आनंद अनुभव होता है।

निर्धन अनुभव करने में ही निर्धनता है।

दुःख सहन किए बिना मनुष्य कभी भी हृदय के आदर्श के साथ अभिन्नता अनुभव नहीं कर सकता और परीक्षा में पड़े बिना मनुष्य कभी भी निश्चित रूप से नहीं बता सकता कि उसके पास कितनी शक्ति है।

संसार में संभव सभी अनुमानों और वर्णनों से किसी सड़क के प्राप्त होने वाले ज्ञान की तुलना में तुम्हें उस पर यात्रा करने से उस सड़क का अधिक ज्ञान प्राप्त होगा।

मैं कौन हूँ और कौन नहीं हूँ, इसको जानने में मैंने बहुत-सी चीज़ें जान ली हैं। और वह कौन है और कौन नहीं है इसी को जानने में बहुत-सी चीज़ें मैंने खो दी हैं।

अनुभव वह नहीं है जो आपके साथ घटित होता है, अपितु जो आपके साथ घटित होता है उसका आप क्या करते हैं, वह अनुभव है।

आध्यात्मिक अनुभव विचार से भी अधिक गहरे होते हैं।

पुराण तो स्वयं विराट् साहित्य का अंश है। अतः उसकी बुद्धिसम्मत भागवत व्याख्या ही उसे हमारे जीवन के निकट ला सकती है। यह कार्य सहज नहीं क्योंकि एक ओर अनुभूति की न्यूनता इस व्याख्या को नीरस सिद्धांत बना सकती है और दूसरी ओर अनुभूति की अधिकता में यह विश्वसनीयता नहीं रहती।

अहिंसा श्रद्धा और अनुभव की वस्तु है, एक सीमा से आगे तर्क की चीज़ वह नहीं है।

और ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं।
वे देते हैं, जिस प्रकार विजय का फूल दशों दिशाओं में अपना सौरभ लुटा देता है।
इन्हीं लोगों के हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आँखों में से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान छिटकता है।

दरिद्रनारायण का अर्थ है ग़रीबों का ईश्वर, ग़रीबों के हृदय में निवास करने वाला ईश्वर। इस नाम का प्रयोग दिवंगत देशबंधु दास ने एक बार सत्य-दर्शन के पावन क्षणों में किया। इस नाम को मैंने अपने अनुभव से नहीं गढ़ा है बल्कि यह मुझे देशबंधु से विरासत के रूप में प्राप्त हुआ है।


मेरी दृष्टि से पुनर्जन्म शास्त्रीय प्रयोगों और अनुभव से सिद्ध वस्तु है।

कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मेरे लेखन का उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया है या महसूस किया है, या यदि नहीं; तो क्या उनके लिए ऐसी चीज़ों को अनुभव करना सामान्य है।

समस्त अनुभव एक मेहराब है जिस पर निर्माण कर सकते हैं।

मनुष्य अपने अनुभव के अनुपात में बुद्धिमान नहीं होते हैं, अपितु अनुभव के लिए अपनी क्षमता के अनुपात में।

जीवन में उम्र के साथ-साथ जो वस्तु मिलती है, उसका नाम है अनुभव। केवल पुस्तकें पढ़कर इसे नहीं पाया जा सकता। और न पाने तक इसका मूल्य नहीं मालूम होता। लेकिन इस बात को भी याद रखना चाहिए कि अनुभव, दूरदर्शिता आदि केवल शक्ति प्रदान ही नहीं करते, शक्ति का हरण भी करते हैं।

माँगने पर देना अच्छा है, लेकिन आवश्यकता अनुभव करके, बिना माँगे देना और भी अच्छा है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere