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संवेदना पर उद्धरण

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आँख वाले प्रायः इस तरह सोचते हैं कि अंधों की, विशेषतः बहरे-अंधों की दुनिया, उनके सूर्य प्रकाश से चमचमाते और हँसते-खेलते संसार से बिलकुल अलग हैं और उनकी भावनाएँ और संवेदनाएँ भी बिलकुल अलग हैं और उनकी चेतना पर उनकी इस अशक्ति और अभाव का मूलभूत प्रभाव है।

हेलेन केलर
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मानवीय संवेदना के मूल स्वभाव को ठीक से समझे बिना सब कुछ को ख़ारिज कर देने का औद्धत्य कभी फलप्रसू नहीं होता।

कृष्ण बिहारी मिश्र
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मौन निकटता की भावना लाता है। जैसे ही बात खुलती है, तीसरी उपस्थिति की मानो चेतावनी आती है।

रघुवीर चौधरी
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उपन्यास भावनाओं को साँचा देते हैं, समय का ऐसा अनुमान देते हैं जिसे औपचारिक इतिहास नहीं दे सकता।

डोरिस लेसिंग
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जल्दी-जल्दी में लिखी गईं गोपनीय नोटबुक्स और तीव्र भावनाओं में टाइप किए गए पन्ने, जो ख़ुद की ख़ुशी के लिए हों।

जैक केरुआक
  • संबंधित विषय : सुख
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संभवतः मेरे जीवन का अस्ल मक़सद मेरे शरीर, मेरी संवेदनाओं और मेरे विचारों को लेखन बनाने के लिए हो, दूसरे शब्दों में : कुछ समझ में आने लायक़ और सार्वभौमिक हो, जिससे मेरा अस्तित्व अन्य लोगों के जीवन और मस्तिष्क में विलीन हो जाए।

ऐनी एरनॉ
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जब बुराई को अच्छाई के साथ प्रतिस्पर्धा करने दी जाती है, तो बुराई में भावात्मक जनवादी गुहार होती है जो तब तक जीतती रहती है जब तक कि अच्छे पुरुष और स्त्रियाँ दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ एक अग्र-दल के रूप में खड़े हो जाएँ।

हाना आरेन्ट
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जब मैं लिखती हूँ, तो मेरे मन में कहीं वह विलक्षण और बहुत सुखद भावना सिर उठाती है जो कि मेरा अपना दृष्टिकोण है…

वर्जीनिया वुल्फ़
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मैंने उसे अपना दिल दिया, और उसने लेकर उसे कुचलकर मार डाला : और मेरी ओर वापस उछाल दिया। …और चूँकि उसने मेरा दिल नष्ट कर दिया, मेरे पास उसके लिए कोई भावनाएँ नहीं हैं।

एमिली ब्रॉण्टे
  • संबंधित विषय : दिल
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पुराने दोस्त की तरह जब कोई आपको बहुत अच्छी तरह से जान जाता है तो वह आपसे मिलना नहीं चाहता।

डोरिस लेसिंग
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वे भावनाएँ कितनी उबाऊ हैं कि जिनमें हम फँस जाते हैं और उनसे मुक्त नहीं हो सकते, चाहे हम कितना भी चाहें…

डोरिस लेसिंग
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वेदना का परिष्कार ही रुचि है; किंतु संवेदना में ‘क्रिया’ नहीं होती, वह तो केवल ग्रहण ही करती है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन
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कुछ भावनाएँ वर्षों की दूरी ख़त्म कर देती हैं और असंभव स्थानों को जोड़ देती हैं।

वी. एस. नायपॉल
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अजनबी लोगों से मिली सहानुभूति बर्बाद कर सकती है।

मार्गरेट एटवुड
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कोई कभी भी किसी को उसकी भावना को बदलने के लिए नहीं कह सकता है।

सूज़न सॉन्‍टैग
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सहानुभूति मानवीय भावनाओं में सबसे अधिक विलक्षण है।

ग्लोरिया स्टाइनम
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अभावग्रस्त बचपन, मेहनत और चिंताओं से भरा विद्यार्थी-जीवन, बाद में मँझोली हैसियत की एक सरकारी नौकरी—अपने इन अनुभवों की कहानी सुनाना बेकार है क्योंकि इस तरह की कहानियाँ बहुत बासी हैं और बहुत दोहराई जा चुकी हैं।

श्रीलाल शुक्ल
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मानव के सभी कार्यों के कारणों में इन सात में से एक या अनेक होते हैं—संयोग, प्रकृति, विवशताएँ, आदत, तर्क, मनोभाव, इच्छा।

अरस्तु
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केशव को कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता थी जो एक कवि में होनी चाहिए। वे संस्कृत साहित्य से सामग्री लेकर अपने पांडित्य और रचना-कौशल की धाक जमाना चाहते थे। पर इस कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए भाषा पर जैसा अधिकार चाहिए, वैसा उन्हें प्राप्त था।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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कवि हमारे सामने असौंदर्य, अमंगल, अत्याचार, क्लेश इत्यादि भी रखता है, रोष, हाहाकार, और ध्वंस का दृश्य भी लाता है। पर सारे भाव, सारे रूप और सारे व्यापार भीतर-भीतर आनंद-कला के विकास में ही योग देते पाए जाते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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कविता की तरह चित्रकला भी मनुष्य की कोमल भावनाओं का परिणाम है। जो काम कवि करता है, वही चित्रकार करता है, कवि भाषा से, चित्रकार पेंसिल या कलम से। सच्ची कविता की परिभाषा यह है कि तस्वीर खींच दे। उसी तरह सच्ची तस्वीर का यह गुण है कि उसमें कविता का आनंद आए। कवि कान के माध्यम से आत्मा को सुख पहुँचाता है और चित्रकार आँख के द्वारा और चूँकि देखने की शक्ति सुनने की अपेक्षा अधिक कोमल और संवेदनशील होती है, इसीलिए जो बात चित्रकार एक चिन्ह, एक रेखा, या ज़रा से रंग से पूरा कर देगा, वह कवि की सैकड़ों पंक्तियों से अदा हो सकेगी।

प्रेमचंद
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मुझे हृदय की भावनाओं की पवित्रता तथा कल्पना की सत्यता पर ही पक्का विश्वास है, अन्य पर नहीं—कल्पना जिसे सौंदर्य के रूप में ग्रहण करती है वह सत्य ही होना चाहिए चाहे पहले वह अस्तित्व में था या नहीं।

जॉन कीट्स
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जेल में रहते-रहते आत्मनिष्ठ सत्य एक हो जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो भाव और स्मृति सत्य में परिणत हो गए हैं। मेरा भी ऐसा ही हाल है। भाव ही इस समय मेरे लिए सत्य है। इसका कारण भी स्पष्ट है—एकत्व-बोध में ही शांति है।

सुभाष चंद्र बोस
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कवि की पूर्ण भावुकता इसमें है कि वह प्रत्येक मानव-स्थिति में अपने को डालकर उसके अनुरूप भाव का अनुभव करे।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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काव्य की उक्ति का लक्ष्य किसी वस्तु या विषय का कोई भाव या रागात्मक स्थिति उत्पन्न करना होता है। बोध कराना नहीं, बल्कि उस वस्तु या विषय के संबंध में कोई भाव या रागात्मक स्थिति उत्पन्न करना होता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं का रूप, गुण और क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराने में कभी-कभी सहायक होने वाली युक्ति ही अलंकार है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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श्रेष्ठता की कसौटी को लेकर हमारे साहित्य में रचनाकारों और आलोचकों के दो-तीन बड़े मज़बूत और सुपरिचित खेमे हैं; इनकी मान्यताएँ और दृष्टियाँ अत्यंत सुपरिभाषित हैं और अपने को एक-दूसरे से भिन्न मानने में ही उनकी सैद्धांतिक सार्थकता समझी जाती है, पर एक मामले में दोनों खेमों के सदस्य एक जैसे हैं। वे एक ओर भावुकता-विरोध को एक स्वतः सिद्ध मूल्य मानते हैं और दूसरी ओर अकेले में वे सभी भावुक होने की अपार क्षमता दिखा सकते हैं—सब नहीं तो अधिकांश। उन्हीं अधिकांश में एक मैं भी हूँ।

श्रीलाल शुक्ल
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कोई भी कर्म जब इस भावना से किया जाता है कि वह परमेश्वर का है तो मामूली होने पर भी पवित्र बन जाता है।

विनोबा भावे
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गोस्वामी जी के भक्ति-क्षेत्र में शील, शक्ति और सौंदर्य तीनों की प्रतिष्ठा होने के कारण मनुष्य की सम्पूर्ण भावात्मिका प्रकृति के परिष्कार और प्रसार के लिए मैदान पड़ा हुआ है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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कला और काव्य दोनों ही का उपजीव्य भावलोक है। भाव-सृष्टि से ही आरंभ में गुण सृष्टि का जन्म होता है और फिर भाव और गुण दोनों की समुदित समृद्धि भूतसृष्टि में अवतीर्ण होती है। भाव-सृष्टि का संबंध मन से, गुण-सृष्टि का प्राण से और भूत-सृष्टि का स्थूल भौतिक रूप से है। इन तीनों की एकसूत्रता से ही लौकिक सृष्टि संभव होती है। इन तीनों के ही नामांतर ज्ञान, क्रिया और अर्थ है।

वासुदेवशरण अग्रवाल
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ध्यान के लिए वस्तुतः सर्वोच्च ढंग की संवेदनशीलता चाहिए तथा प्रचण्ड मौन की एक गुणवत्ता चाहिए—ऐसा मौन जो प्रेरित, अनुशासित या साधा हुआ नहीं हो।

जे. कृष्णमूर्ति
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कुव्यवस्था से चिपके रहने के कारण उसे व्यवस्था का सहज अंग मानने की आदत पड़ जाती है और संवेदना—जो सृजन की बुनियादी शर्त है—भोथरी पड़ने लगती है।

श्रीलाल शुक्ल
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संगीत, संवेदनाएं, पौराणिक कथाएँ, समय के साथ ढ़ल चुके चेहरे और कुछ जगहें हमें कुछ बताना चाहते हैं, या हमें कुछ बता रहे हैं जिनसे हमें चूकना नहीं चाहिए था या वे हमसे कुछ कहने वाले हैं, एक रहस्य का बहुत क़रीब से प्रकट होना, जिसे बनाया नहीं, जो शायद एक सुन्दर घटना है।

होर्खे लुइस बोर्खेस
  • संबंधित विषय : कला
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भूतकाल के साँचों को तोड़ डालो परंतु उनकी स्वाभाविक शक्ति और मूल भावना को सुरक्षित रखो, अन्यथा तुम्हारा कोई भविष्य ही नहीं रह जाएगा।

श्री अरविंद
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मस्तिष्क देख सके इसके पहले हृदय सदैव देख लेता है।

थॉमस कार्लाइल
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भौतिकवाद की पराकाष्ठा सर्वहितकारी सद्भाव में, अध्यात्मवाद की पराकाष्ठा सर्वात्मभाव में और विश्वास की पराकाष्ठा प्रभु की प्रसन्नना में निहित है।

संत एकनाथ
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जो आदमी दूसरों के भावों का आदर करना नहीं जानता, उसे दूसरे से भी सद्भावना की आशा नहीं करनी चाहिए।

हजारीप्रसाद द्विवेदी
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किसी भी चीज़ का अवलोकन करने के लिए—चाहे यह आपकी पत्नी हो, आपका पड़ोसी हो या बादल हो—आपके पास एक ऐसा मन होना चाहिए जो अत्यंत संवेदनशील हो।

जे. कृष्णमूर्ति
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कर्म वही, परंतु भावना-भेद से उसमें अंतर पड़ जाता है। परमार्थी मनुष्य का कर्म आत्म-विकासक होता है, तो संसारी मनुष्य का कर्म आत्म-बंधक सिद्ध होता है।

विनोबा भावे
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पल भर की भावुकता मनुष्य के जीवन को कहाँ से कहाँ खींच ले जाती है।

जयशंकर प्रसाद
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आदमी और आदमी को जोड़ने वाली वह संवेदना, जो लालित्य-उल्लास की जननी है—को किस विषैले धुएँ ने मार दिया?

कृष्ण बिहारी मिश्र
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कविता की सप्राणता भावना में ही है। परंतु भावना के लिए बुद्धि का नियंत्रण आवश्यक है। अनियंत्रित भावना की परिणति सस्ती भावुकता होती है।

गोपालशरण सिंह
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जब कोयल की आवाज़ आदमी के मन में आंदोलित करती है तो कोयल भी आदमी का इशारा कुछ-कुछ ज़रूर समझती होगी।

कृष्ण बिहारी मिश्र
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किसी भावोद्रेक द्वारा परिचालित अंतर्वृत्ति जब उस भाव के पोषक स्वरूप गढ़कर या काट-छाँटकर सामने रखने लगती है तब हम उसे सच्ची कवि-कल्पना कह सकते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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तार्किक जिस प्रकार श्रोता को अपनी विचार-पद्धति पर लाना चाहता है उसी प्रकार कवि अपनी भाव-पद्धति पर।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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भावुक होते ही 'कुछ करना चाहिए' की भावना उसके मन को मथने लगी, पर 'क्या करना चाहिए' इसका जवाब उसके पास नहीं था।

श्रीलाल शुक्ल
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व्यवहार में गंभीरता, वचन में गंभीरता और भावों में गंभीरता—इन तीन गंभीरताओं के साथ कृष्ण का स्मरण करें तो महामंगल मिलेगा।

माधवदेव
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भक्ति का अर्थ है भावपूर्वक अनुकरण।

महात्मा गांधी
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जब आपके पास परम संवेदनशीलता होती है, तो प्रज्ञा के साथ-साथ प्रेम का भी प्रादुर्भाव होता है—प्रेम तब आनंद ही, प्रेम तब समयातीत है।

जे. कृष्णमूर्ति
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वास्तव में क्षमा मानवीय भावों में सर्वोपरि है। दया का स्थान इतना ऊँचा नहीं। दया वह दाना है जो पोली धरती पर उगता है। इसके प्रतिकूल क्षमा वह दाना है जो काँटों में उगता है। दया वह धारा है, जो समतल भूमि पर बहती है, क्षमा कंकड़ों और चट्टानों में बहने वाली धारा है। दया का मार्ग सीधा और सरल है, क्षमा का मार्ग टेढ़ा और कठिन है।

प्रेमचंद

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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