
जहाँ कोई क़ानून नहीं होता, वहाँ अंतःकरण होता है।
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अंतःकरण हम सबको कायर बना देता है।

अंतःकरण प्रत्येक व्यक्ति के चरित्र का सार है।

मनुष्य का अंतःकरण देववाणी है।

मनुष्य की आत्मा ही राजनीति है, अर्थशास्त्र है, शिक्षा है और विज्ञान है, इसलिए अंतरात्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है। यदि हम अंतरात्मा को सुशिक्षित बना लें तो राजनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा और विज्ञान के प्रश्न स्वयं ही हल हो जाएँगे।

ख़ुशी का अनुभव करते हुए हमें उसके प्रति चेतन होने में कठिनाई होती है। जब ख़ुशी गुज़र जाती है और हम पीछे मुड़कर उसे देखते और अचानक से महसूस करते हैं—कभी-कभार आश्चर्य के साथ—कितने ख़ुश थे हम।

सत्पुरुषों की महानता उनके अंतःकरण में होती है, न कि लोगों की प्रशंसा में।

अंतःकरण तो कायरों द्वारा प्रयुक्त शब्दमात्र है, सर्व-प्रथम इसकी रचना शक्तिशालियों को भयभीत रखने के लिए हुई थी।

आत्मा के लिए अच्छा अंतःकरण वैसा ही है जैसा शरीर के लिए स्वास्थ्य।

जहाँ अंतःकरण का राज्य प्रारंभ होता है, वहाँ मेरा राज्य समाप्त हो जाता है।

स्वतंत्रता से भी अधिक शक्तिशाली एक और शब्द है—'अंतःकरण'।

अंतःकरण का दंश मनुष्यों को दंशन सिखाता है।

उस मनुष्य का किसी बात में विश्वास न करो जो हर बात में अंतःकरण वाला नहीं है।

जीवित मनुष्य के लिए दुष्ट अंतःकरण की यंत्रणा तो नरक है।

अपने वक्षस्थल में स्वर्गीय अग्नि की उस चिंगारी को सजीव रखने का प्रयत्न करो जिसे अंतःकरण कहते हैं।

क्या तुम नहीं देखते कि तुम्हारा अंतःकरण तुम्हारे अंदर विराजमान अन्य लोग हैं, अन्य कुछ नहीं ?

मनुष्य हर विवेक से ऊपर है—एक चेतना, जो प्रकृति का नहीं बल्कि इतिहास का उत्पाद है।

अच्छा अंतःकरण सर्वोत्तम ईश्वर है।

मेरे सामने जब कोई असत्य बोलता है तब मुझे उस पर क्रोध होने के बजाए स्वयं अपने ही ऊपर अधिक कोप होता हैं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अभी मेरे अंदर-तह में-असत्य का वास है।

जागृति का जो विस्मरण है वही स्वप्नसृष्टि का विस्तार है। वस्तु से विमुख जो अहंकार है वही त्रिगुणात्मक संसार है।

चेतना जब आत्मा में ही विश्रांति पा जाए, वही पूर्ण अहंभाव है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere