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चेतना पर उद्धरण

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जहाँ कोई क़ानून नहीं होता, वहाँ अंतःकरण होता है।

पब्लिलियस साइरस
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अंतःकरण आत्मा की आवाज़ है, मनोवेग शरीर की आवाज़ हैं।

रूसो
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अंतःकरण हम सबको कायर बना देता है।

विलियम शेक्सपियर
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अंतःकरण प्रत्येक व्यक्ति के चरित्र का सार है।

सैमुअल स्माइल्स
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मनुष्य का अंतःकरण देववाणी है।

लॉर्ड बायरन
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मनुष्य की आत्मा ही राजनीति है, अर्थशास्त्र है, शिक्षा है और विज्ञान है, इसलिए अंतरात्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है। यदि हम अंतरात्मा को सुशिक्षित बना लें तो राजनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा और विज्ञान के प्रश्न स्वयं ही हल हो जाएँगे।

जूली कागावा
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ख़ुशी का अनुभव करते हुए हमें उसके प्रति चेतन होने में कठिनाई होती है। जब ख़ुशी गुज़र जाती है और हम पीछे मुड़कर उसे देखते और अचानक से महसूस करते हैं—कभी-कभार आश्चर्य के साथ—कितने ख़ुश थे हम।

निकोस कज़ानज़ाकिस
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शरीर एक बदलता हुआ प्रवाह है और मन भी। उन्हें जो किनारे समझ लेते है, वे डूब जाते है।

ओशो
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सत्पुरुषों की महानता उनके अंतःकरण में होती है, कि लोगों की प्रशंसा में।

थॉमस ए केम्पिस
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अंतःकरण तो कायरों द्वारा प्रयुक्त शब्दमात्र है, सर्व-प्रथम इसकी रचना शक्तिशालियों को भयभीत रखने के लिए हुई थी।

विलियम शेक्सपियर
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आत्मा के लिए अच्छा अंतःकरण वैसा ही है जैसा शरीर के लिए स्वास्थ्य।

थॉमस एडिसन
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जीवित मनुष्य के लिए दुष्ट अंतःकरण की यंत्रणा तो नरक है।

जॉन केल्विन
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जहाँ अंतःकरण का राज्य प्रारंभ होता है, वहाँ मेरा राज्य समाप्त हो जाता है।

नेपोलियन बोनापार्ट
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स्वतंत्रता से भी अधिक शक्तिशाली एक और शब्द है—'अंतःकरण'।

सैमुअल स्माइल्स
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अंतःकरण का दंश मनुष्यों को दंशन सिखाता है।

फ़्रेडरिक नीत्शे
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उस मनुष्य का किसी बात में विश्वास करो जो हर बात में अंतःकरण वाला नहीं है।

लॉरेंस स्टर्न
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अपने वक्षस्थल में स्वर्गीय अग्नि की उस चिंगारी को सजीव रखने का प्रयत्न करो जिसे अंतःकरण कहते हैं।

जॉर्ज वॉशिंगटन
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क्या तुम नहीं देखते कि तुम्हारा अंतःकरण तुम्हारे अंदर विराजमान अन्य लोग हैं, अन्य कुछ नहीं ?

लुइजी पिरांडेलो
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चेतना और रूचि का फलक बड़ा होना ही चाहिए।

कृष्ण बिहारी मिश्र
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मनुष्य हर विवेक से ऊपर है—एक चेतना, जो प्रकृति का नहीं बल्कि इतिहास का उत्पाद है।

अंतोनियो ग्राम्शी
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शरीर तट है, मन है। उन दोनों के पीछे जो चैतन्य है, साक्षी है, द्रष्टा है, वह अपरिवर्तित नित्य बोध मात्र ही वास्तविक तट है। जो अपनी नौका की उस तट से बाँधते है, वे अमृत को उपलब्ध होते है।

ओशो
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अच्छा अंतःकरण सर्वोत्तम ईश्वर है।

थॉमस फ़ुलर
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प्रेम और जो कुछ उससे उत्पन्न होता है, क्रांति और जो कुछ वह रचती है और स्वतंत्रता और जो कुछ उससे पैदा होता है, ये परमात्मा के तीन रूप हैं और परमात्मा सीमित और चेतन संसार का अनंत मन है।

खलील जिब्रान
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कवि को अपने कार्य में अंतःकरण की तीन वृत्तियों से काम लेना पड़ता है—कल्पना, वासना और बुद्धि। इनमें से बुद्धि का स्थान बहुत गौण है। कल्पना और वासनात्मक अनुभूति ही प्रधान है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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उपवास करने से चित्त अंतर्मुख होता है, दृष्टि निर्मल होती है और देह हलकी बनी रहती है।

काका कालेलकर
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ईश्वर कोई बाह्य सत्य नहीं है। वह तो स्वयं के ही परिष्कार की अंतिम चेतना अवस्था है। उसे पाने का अर्थ स्वयं वही हो जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

ओशो
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समाज में गीत-वाद्य, नाट्य- नृत्य का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है, ये बड़ी मनोहर और उपयोगी कलाएँ हैं। पर हैं तभी, जब इन के साथ संस्कृति का निवास-स्थान पवित्र संस्कृत अंतःकरण हो। केवल 'कला' तो 'काल' बन जाती है।

हनुमान प्रसाद पोद्दार
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हमारा काम तभी अंतरात्मा से प्रेरित हो सकता है जब अपने-आप में वह स्वच्छ हो, उसका हेतु स्वच्छ हो और उसका परिणाम भी स्वच्छ हो।

महात्मा गांधी
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वह सबको शरण देने वाला है, दाता और सहायक है। अपराधों को क्षमा करने वाला है, जीविका देने वाला है और चित्त को प्रसन्न करने वाला है।

गुरु गोविंद सिंह
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हम ध्यान द्वारा शुद्ध और सूक्ष्म हुए मन से परमात्मा के स्वरूप का अनुभव तो कर सकते हैं, किंतु वाणी द्वारा उसका वर्णन नहीं कर सकते, क्योंकि मन के द्वारा ही मानसिक विषय का ग्रहण हो सकता है और ज्ञान के द्वारा ही ज्ञेय को जाना जा सकता है।

वेदव्यास
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मनुष्य की अचेतन क्रिया की यंत्रवत कारीगरी और यांत्रिक साधन ही आगे चलकर स्वतंत्र कलाओं में परिणत होते गए।

विजयदान देथा
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बालकों मूर्खों की तो गिनती क्या, महान लोगों की भी चित्तवृत्ति सदा एकाग्र नहीं रहती।

कल्हण
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मेरे सामने जब कोई असत्य बोलता है तब मुझे उस पर क्रोध होने के बजाए स्वयं अपने ही ऊपर अधिक कोप होता हैं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अभी मेरे अंदर-तह में-असत्य का वास है।

महात्मा गांधी
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धन जोड़कर भक्ति का दिखावा करने से कोई लाभ नहीं क्योंकि ऐसा करने से मन में वासना और भी बढ़ती जाएगी। जिनका चित्त वासनाओं में फँसा हुआ है, उन्हें अंतरात्मा के दर्शन कैसे हो सकते हैं?

संत एकनाथ
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जिस प्रकार स्वयं मनुष्य की देह और उसकी चेतना को टुकड़ों में नहीं बाँटा जा सकता, उसी प्रकार मनुष्य से सम्बन्धी विज्ञान कलाओं को भी परस्पर विच्छिन्न नहीं किया जा सकता।

विजयदान देथा
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हिंदी एक भाषा के अलावा एक चेतना का भी नाम थी जिसका रिश्ता राष्ट्रवाद की उठान से बैठ गया था। कालांतर में रिश्ता एक फंदा बन गया।

कृष्ण कुमार
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राम और कृष्ण के मिथक संकल्प और संवेग के चैतन्य स्रोत हैं।

कुबेरनाथ राय
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बस आप जानिए कि असावधान हैं; इस तथ्य के प्रति चुनावरहित रूप से सजग रहिए कि आप असावधान हैं, और हैं तो क्या हुआ? यानी इसके लिए चिंता मत कीजिए एवं असावधानी की इस अवस्था में, असावधानी के इन क्षणों में, यदि आप कुछ कर बैठें–तो उस क्रिया के प्रति सजग रहिए।

जे. कृष्णमूर्ति
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चेतना जब आत्मा में ही विश्रांति पा जाए, वही पूर्ण अहंभाव है।

जयशंकर प्रसाद
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लेखक स्वभाव से सपने देखने वाला होता है—सचेत सपने देखने वाला।

कार्सन मैक्कुलर्स
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जागृति का जो विस्मरण है वही स्वप्नसृष्टि का विस्तार है। वस्तु से विमुख जो अहंकार है वही त्रिगुणात्मक संसार है।

संत एकनाथ
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मनुज चेतना को किसका डर?

सुमित्रानंदन पंत
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भय की पूरी समस्या को समझने में ही आपके सारे विश्वास विदा हो जाते हैं।

जे. कृष्णमूर्ति
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मनुष्य मृण्मय और चिन्मय का जोड़ है।

ओशो
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संज्ञानमुक्त दृष्टि का धनी होने के कारण ही बच्चा कल्पना की सहज सामर्थ्य रखता है। वह चाँद देखता है तो चाँद बन जाता है।

कृष्ण कुमार
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जो है नहीं, उस चित्र को दिखाती है, पर होती है केवल दीवार। उसी प्रकार संपूर्ण जगदाकार से जो प्रकाशित होती है, वह संवित्ति (संवित्, चेतना) है।

ज्ञानेश्वर
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बिना आदि चेतना (आदि चैतन्य) के चेतना पैदा हो ही नहीं सकती। भूत से क्यों और कैसे चेतना पैदा होगी।

कुबेरनाथ राय
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चैतन्य को जड़शक्ति का औद्धत्य लील जाने को व्याकुल है।

कृष्ण बिहारी मिश्र
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मौन कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसका आप अभ्यास कर सकते हैं या जिसकी आप साधना कर सकते हैं। जब आप जीवन के आरंभ को, इसके संपूर्ण ढाँचे को तथा जीने की प्रक्रिया को समझ जाते हैं तभी इस मौन का जन्म होता है।

जे. कृष्णमूर्ति
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अचेतन उतना ही तुच्छ और बेतुका है जितना कि चेतन।

जे. कृष्णमूर्ति

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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