आत्म पर उद्धरण

आत्म का संबंध आत्मा

या मन से है और यह ‘निज’ का बोध कराता है। कवि कई बातें ‘मैं’ के अवलंब से कहने की इच्छा रखता है जो कविता को आत्मीय बनाती है। कविता का आत्म कवि को कविता का कर्ता और विषय—दोनों बनाने की इच्छा रखता है। आधुनिक युग में मनुष्य की निजता के विस्तार के साथ कविता में आत्मपरकता की वृद्धि की बात भी स्वीकार की जाती है।

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मैं अनावश्यक चीज़ों को छोड़ दूँगी, मैं अपना धन दे दूँगी, मैं अपने बच्चों के लिए अपनी जान दे दूँगी; लेकिन मैं ख़ुद को नहीं दूँगी।

केट शोपैं
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घायल दिल पहले कम आत्म-सम्मान पर क़ाबू पाकर आत्म-प्रेम सीखता है।

बेल हुक्स
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वह (स्त्री) ख़ुद से तब प्यार कर पाती है, जब कोई पुरुष उसे प्यार के क़ाबिल पाता है।

शुलामिथ फ़ायरस्टोन
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यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दूसरों में रुचि का कारण मनुष्य की स्वयं में रुचि है। यह संसार स्वार्थ से जुड़ा है। यह ठोस वास्तविकता है लेकिन मनुष्य केवल वास्तविकता के सहारे नहीं जी सकता। आकाश के बिना इसका काम नहीं चल सकता। भले ही कोई आकाश को शून्य स्थान कहे…

रघुवीर चौधरी
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भाषा स्वयं सुनती है।

यून फ़ुस्से
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प्यार करने का चुनाव जुड़ने का विकल्प है—दूसरे में ख़ुद को खोजने का विकल्प।

बेल हुक्स
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मेरे इतने लोकप्रिय होने का कारण यह है कि मैं दूसरों को वह लौटाती हूँ जो उन्हें स्वयं में खोजने की आवश्यकता होती है।

अज़र नफ़ीसी
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सफल होने के लिए—एक कलाकार के पास—साहसी आत्मा होनी चाहिए। …वह आत्मा जो हिम्मत करती है और चुनौती देती है।

केट शोपैं
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जब मैं भाषा के माध्यम से विचार करता हूँ तो मौखिक अभिव्यक्तियों के अतिरिक्त मेरे मन में कोई दूसरे ‘अर्थ’ नहीं होते : भाषा तो स्वयं ही विचार की वाहक होती है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन
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मैं जब तक जीवित रहूँगा, उनकी नक़ल नहीं करूँगा या उनसे अलग होने के लिए ख़ुद से नफ़रत नहीं करूँगा।

ओरहान पामुक
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कैसे मैं, जो जीवन को इतनी तीव्रता से चाहता है, स्वयं को लंबे समय तक किताबों की निरर्थक बातों और स्याही से काले पड़े पन्नों में उलझा हुआ छोड़ सकता था!

निकोस कज़ानज़ाकिस
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मन की अथाह गहराई में उतरकर लिखो, जो मन में आए वह लिखो।

जैक केरुआक
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क्या यह सच नहीं है कि लेखक केवल अपने बारे में लिख सकता है?

मिलान कुंदेरा
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मेरी मुश्किलें मेरी अपनी हैं।

अल्फ़्रेड एडलर
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स्मरण-शक्ति के साथ लिखो और ख़ुद के आश्चर्य के लिए लिखो।

जैक केरुआक
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सरल मन वाले दीवाने संत सरीखे बनो।

जैक केरुआक
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जब भी आप अपने आस-पास सुंदरता का निर्माण कर रहे होते हैं, आप अपनी आत्मा को बहाल कर रहे होते हैं।

एलिस वॉकर
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जब हमें नहीं पता होता कि किससे नफ़रत करें, हम ख़ुद से शुरुआत करते हैं।

चक पैलनिक
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आप कितनी भी दूर की यात्रा कर लें, आप कभी भी ख़ुद से दूर नहीं हो सकते।

हारुकी मुराकामी
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इंसान का गुण स्वयं का विस्तार करने, स्वयं से बाहर निकलने और अन्य लोगों में और उनके लिए मौजूद रहने की क्षमता में निहित है।

मिलान कुंदेरा
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आदमी ध्यान आकर्षित करने के लिए युद्ध करते हैं। सभी हत्याएँ आत्म-घृणा की अभिव्यक्ति हैं।

एलिस वॉकर
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व्यक्ति किसी और से प्यार करने और किसी और से प्यार प्राप्त करने के सरल कृत्यों से ख़ुद से प्यार करना सीखता है।

हारुकी मुराकामी
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प्रेम की प्राप्ति के लिए एक ज़रूरी शर्त है—अपनी ‘आत्म-मुग्धता’ से उबरने में सफलता।

एरिक फ़्रॉम
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मैं वही हूँ जो मेरे आस-पास है।

वॉलेस स्टीवंस
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अगर आप अपनी फ़ुरसत को खो रहे हैं, तो ख़बरदार! हो सकता है कि आप अपनी आत्मा को खो रहे हों।

वर्जीनिया वुल्फ़
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समुद्र की आवाज़ आत्मा से बात करती है।

केट शोपैं
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स्वयं को जानने का अर्थ किसी अन्य व्यक्ति के साथ कार्य करते हुए स्वयं का अध्ययन करना है।

ब्रूस ली
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दे दिया जाता हूँ।

रघुवीर सहाय
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डरने वाला व्यक्ति स्वयं ही डरता है, उसको कोई डराता नहीं है।

महात्मा गांधी
  • संबंधित विषय : डर
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अपने लिए सोचें और दूसरों को भी ऐसा करने का सौभाग्य दें।

वाल्तेयर
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ब्राह्मण किसी के राज्य में रहता है और किसी के अन्न से पलता है, स्वराज्य में विचरता है और अमृत होकर जीता है। वह तुम्हारा मिथ्या गर्व है। ब्राह्मण सब कुछ सामर्थ्य रखने पर भी, स्वेच्छा से इन माया-स्तूपों को ठुकरा देता है, प्रकृति के कल्याण के लिए अपने ज्ञान का दान देता है।

जयशंकर प्रसाद
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आत्मज्ञान, कार्यों का सभारंभ, तितिक्षा, धर्म में स्थिरता—ये सब गुण जिसको उद्देश्य से दूर नहीं हटाते, उसी को पंडित कहा जाता है।

वेदव्यास
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क्रोध, हर्ष, अभिमान, लज्जा, उद्दंडता, स्वयं को बहुत अधिक मानना—ये सब जिस मनुष्य को उसके लक्ष्य से नहीं हटाते, उसी को पंडित कहा जाता है।

वेदव्यास
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जिसने अपने आपको जीत लिया, वह स्वयं अपना बंधु है। परंतु जिसने अपने आपको नहीं जीता, वह स्वयं अपने शत्रुत्व में शत्रुवत बर्तता है।

वेदव्यास
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कविता में ‘मैं’ की व्याख्या केवल आत्मकेंद्रण या व्यक्तिवाद के अर्थ में करना

उसके बृहतर आशयों और संभावनाओं दोनों को संकुचित करना है।

कुँवर नारायण
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आत्म के दुःख कभी नहीं बाँटे जा सकते।

स्वदेश दीपक
  • संबंधित विषय : दुख
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हम लोगों के पश्चिमी जीवन का यह संस्कार है कि व्यक्ति को स्वावलंब पर खड़े होना चाहिए। तुम्हारे भारतीय हृदय में, जो सहायता की कौटुंबिक कोमलता में पला है, परस्पर सहानुभूति की बड़ी आशाएँ, परंपरागत संस्कृति के कारण, बलवती रहती हैं।

जयशंकर प्रसाद
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बातों में होते हैं हम जितना उतने से कई गुना कहीं और होते हैं।

नवीन सागर
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अचानक उसने कहा—बताओ तो तुमने जीवन से क्या दानाई हासिल की? मैंने कहा—मेरा सारा लेखन संशय केंद्रित है।

कृष्ण बलदेव वैद
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ऐसे दुष्ट बहुत होने चाहिए। हम पर उनका उपकार है। वे हमारे पापों का प्रक्षालन, बिना कोई मूल्य लिए और बिना साबुन के करते हैं। वे मुफ़्त में मज़दूर हैं जो हमारा बोझा ढोते हैं। वे हमें भवसागर से पार कर देते हैं और स्वयं नरक चले जाते हैं।

संत तुकाराम
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सर्वश्रेष्ठ बातचीत ख़ुद से होती है। कम से कम यहाँ किसी ग़लतफ़हमी का जोख़िम नहीं है।

ओल्गा तोकार्चुक
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मैं बाद अज़मर्ग कामयाबी का मुरीद हूँ।

कृष्ण बलदेव वैद
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मैं एक कवि के रूप में प्रकट हुआ, एक कवि के रूप में मरूँगा।

श्रीकांत वर्मा
  • संबंधित विषय : कवि
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मैं ख़ुद के सिवा कोई और नहीं हो सकती। यह कितना भयानक है। हम यह सोचना पसंद करते हैं कि हम स्वतंत्र हैं, कभी भी ख़ुद को फिर से बना सकते हैं।

ओल्गा तोकार्चुक
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अपने आप पर अपने आपके द्वारा लगाया हुआ बंधन हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी
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मैं पैदाइशी ‘अछूत’ हूँ। मुझे किसी संस्था में कोई आस्था नहीं। बकवास और ख़ुराफ़ात मुझसे बरदाश्त नहीं होते। स्याह को सफ़ेद या भूरा मैं नहीं कह सकता। खेल मैं नहीं खेलता।

कृष्ण बलदेव वैद
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मेरा काम हमेशा नासाज़ हालात में ही हुआ है, साज़गार हालात में नहीं।

कृष्ण बलदेव वैद
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अनात्म होने का अर्थ ही है ‘पुरुष’ होना। इच्छा या प्रकृति आपको माध्यम तभी तक बना सकती है जब तक आप ‘पुरुष’ नहीं हैं।

श्रीनरेश मेहता