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छाया पर उद्धरण

छाया, छाँव, परछाई विषयक

कविताओं का चयन।

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क्या निजी भाषा के नियम, नियमों की प्रतिच्छाया हैं?—जिस तुला पर प्रतिच्छाया को तोला जाता है, वह तुला की प्रतिच्छाया नहीं होती।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन
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कल्पना की तुलना में बुद्धि इसी प्रकार है जैसे कर्ता की तुलना में उपकरण, आत्मा की तुलना में शरीर और वस्तु की तुलना में उसकी छाया।

शंकर शैलेंद्र
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तुम जो हो तुम उसे नहीं देखते, तुम उसे देखते हो जो तुम्हारी परछाईं है।

रवींद्रनाथ टैगोर
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जिस चीज़ की कोई छाया नहीं होती, उसमें जीवित रहने की ताक़त भी नहीं होती।

चेस्लाव मीलोष
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पतन, उत्थान की; मृत्यु, जीवन की एक मात्र सखा-छाया है।

श्रीनरेश मेहता

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere