संगीत पर उद्धरण
रस की सृष्टि करने वाली
सुव्यवस्थित ध्वनि को संगीत कहा जाता है। इसमें प्रायः गायन, वादन और नृत्य तीनों शामिल माने जाते हैं। यह सभी मानव समाजों का एक सार्वभौमिक सांस्कृतिक पहलू है। विभिन्न सभ्यताओं में संगीत की लोकप्रियता के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। भर्तृहरि ने साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को पूँछ-सींग रहित साक्षात् पशु कहा है। इस चयन में संगीत-कला को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

केवल हिंदुस्तान में दर्शन संगीत के रूप में कहा गया। जब दर्शन और संगीत का जोड़ हो जाए तो मज़ा ही आएगा।

जो शोर की जगह संगीत, आनंद की जगह ख़ुशी, आत्मा की जगह सोना, रचनात्मक कार्य की जगह व्यापार, और जुनून की जगह मूर्खता चाहता है, उसे इस साधारण दुनिया में कोई घर नहीं मिलता।

मैंने तस्वीर में रंग भरे और रंगों में लय के साथ संगीत झंकृत होने लगा। हाँ, मैंने देखा था कि मैंने तस्वीर में रंग ही भरे थे।

क्या हमें किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना नहीं करना चाहिए, जिसने कभी संगीत नहीं सुना हो, और जो एक दिन अचानक शोपां की कोई अंतर्गुम्फित रचना सुने और यह मान बैठे कि यह एक ऐसी गुप्त भाषा है, जिसके अर्थों को दुनिया उससे छुपाए रखना चाहती है?

चेहरे के समान धुन की भी एक शक्ल होती है।

विचार के साथ और विचार के बिना बोलने की तुलना संगीत को विचार के साथ, और विचार के बिना बजाने से ही करनी चाहिए।


अँधेरे में संगीत दो व्यक्तियों को कितना पास खींच लाता है!

कविता का संगीत शब्द-ध्वनि का संगीत नहीं है, अर्थ-संकेत (इसे रीतिकालीन ‘अर्थ-संकेत’ के अर्थ में ग्रहण नहीं किया जाए) और अर्थ-विस्तार का संगीत है।

अकारण और अंतहीन : संगीत, लय और नृत्य।

धुन का भाषा से मेल होता है।

संगीत में जीवनकाल की कोई सीमा नहीं है।

जितने भी अधिक से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं वे सब अनायास ही नम्रतापूर्वक और बिना किसी आडंबर के हुआ करते हैं। न तो हल चलाने का कार्य और न इमारत बनाने या पशु चराने या सोचने के कार्य ही वर्दी पहनकर, दीपों की चमक-दमक में और तोपों की गर्जन के बीच किए जा सकते हैं। इसके विपरीत दीपों की जगमगाहट, तोपों की गड़गड़ाहट, संगीत, वर्दी, सफ़ाई और चमक-दमक यह प्रकट करते हैं कि उनके बीच जो कुछ भी हो रहा है वह सब महत्तवहीन है। महान और सच्चे कार्य सदा सरल और विनम्र होते हैं।

विफलता को लेकर ही इस जीवन-संगीत की मैंने रचना की है। दोनों आँखों से आँसू की बूंदें टपकती हैं। इस विशाल विश्व में केवल नयनाश्रुओं से ही मेरा सागर-तट भर गया।

कल्पना गीत गाती है और उस गीत से प्राण-वीणा में नृत्य छंद बज उठता है।

अंधविश्वास जीवन की कविता है।

पीते वक़्त ख़्वाहिश होती है अच्छा संगीत सुनूँ, और संगीत के इर्द-गिर्द ख़ामोशी हो।

यह संगीत ही है जो दिल का विस्तार करता है और श्रोता को परमानंद और भय से शांत कर देता है।

कल्पना, मनुष्य-प्राण की मानसी वीणा का चिरंतन संगीत है।

जब मैं प्रेम से परिचित हुआ तो शब्द मेरे मुख में साँस बनकर रह गए और जो संगीत बाहर आने के लिए बेचैनी से मेरे हृदय में लहरे ले रहा था, वह गहरे मौन में खो गया।

संगीत दो आत्माओं के बीच फैली अनंतता को भरता है।

मैं तो नहीं गाती। न जाने मेरे प्राण के गोपनीय अंतराल में कौन गाता है! मैं तो स्वयं नहीं जानती कि वह कौन है जो मेरी जीवन-वीणा अनजाने स्वरों से बजाता है।

जैसे संगीत में पद-पद पर समय का ध्यान रखना पड़ता है, वैसे ही प्राणायाम में भी होता है।

हर दिन, एक संगीत का टुकड़ा, एक छोटी कहानी या एक कविता मर जाती है क्योंकि उसके अस्तित्व का हमारे समय में कोई औचित्य नहीं रह जाता। और जो चीजें कभी अमर मानी जाती थीं, वे फिर से नश्वर हो गई हैं, अब कोई उन्हें नहीं जानता। फिर भी, उन्हें जीवित रहने का हक है।

अँधेरे में संगीत दो व्यक्तियों को कितना पास खींच लाता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere