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इच्छा पर उद्धरण

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चीज़ों को देर तक देखना तुम्हें परिपक्व बनाता है और उनके गहरे अर्थ समझाता है।

विन्सेंट वॉन गॉग
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अगर हम ख़ुद में ऐसी इच्छा पाते हैं जिसे इस दुनिया में कुछ भी संतुष्ट नहीं कर सकता है, तो सबसे संभावित स्पष्टीकरण यह है कि हम दूसरी दुनिया के लिए बने हैं।

सी. एस. लुईस
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निंदा, प्रशंसा, इच्छा, आख्यान, अर्चना, प्रत्याख्यान, उपालंभ, प्रतिषेध, प्रेरणा, सांत्वना, अभ्यवपत्ति, भर्त्सना और अनुनय इन तेरह बातों में ही पत्र से ही प्रकट होने वाले अर्थ प्रवृत्त होते हैं।

चाणक्य
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पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं।

संत एकनाथ
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साहित्य और कला की हमारी पूरी परंपरा में, जीव की प्रधान कामना आनंद की अनुभूति है।

लक्ष्मीनारायण मिश्र
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हे जगत्पति! मुझे धन की कामना है, जन की,न सुंदरी की और कविता की। हे प्रभु! मेरी कामना तो यह है कि जन्म-जन्म में आपकी अहैतुकी भक्ति करता रहूँ।

चैतन्य महाप्रभु
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मानव के सभी कार्यों के कारणों में इन सात में से एक या अनेक होते हैं—संयोग, प्रकृति, विवशताएँ, आदत, तर्क, मनोभाव, इच्छा।

अरस्तु
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संसार से प्रतिदिन प्राणी यमलोक में जा रहे हैं किंतु जो बचे हुए हैं, वे सर्वदा जीते रहने की इच्छा करते हैं। इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या होगा?

वेदव्यास
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जो कर्म के फल का विचार कर केवल कर्म की ओर दौड़ता हैं, वह उसका फल मिलने के समय उसी प्रकार शोक करता है जैसे ढाक का वृक्ष सींचने वाला करता है।

वाल्मीकि
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बिना पढ़े ही गर्व करने वाले, दरिद्र होकर भी बड़े-बड़े मनोरथ करने वाले और बिना कर्म किए ही धन पाने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को पंडित लोग मूर्ख कहते हैं।

वेदव्यास
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सज्जन लोगों का याचकों के प्रति अभिलषित वस्तु को करके दिखाना ही उत्तर होता है।

कालिदास
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हे अर्जुन! मन को मथने वाली इंद्रियाँ प्रयत्न करने वाले ज्ञानी पुरुष के मन को भी बलात्कारपूर्वक हर लेती हैं।

वेदव्यास
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हे अर्जुन! मैं बलवानों का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल हूँ और सब प्राणियों में धर्म के अनुकूल 'काम' हूँ।

वेदव्यास
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धन जोड़कर भक्ति का दिखावा करने से कोई लाभ नहीं क्योंकि ऐसा करने से मन में वासना और भी बढ़ती जाएगी। जिनका चित्त वासनाओं में फँसा हुआ है, उन्हें अंतरात्मा के दर्शन कैसे हो सकते हैं?

संत एकनाथ
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विजय की इच्छा वाले पुरुष को यह 'जय' नामक इतिहास अवश्य सुनना चाहिए।

वेदव्यास
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निश्चय ही इस संसार में इच्छारहित प्राणी को संपदाएँ नहीं अपनाती और संपूर्ण कल्याणों की उपस्थिति उनके हाथ में नित्य रहती है जो आलसी नहीं हैं।

दण्डी
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जो अपने प्रतिकूल हो, उसे दूसरों के प्रति भी करे—संक्षेप में यही धर्म है। इसके विपरीत जिसमें कामना से प्रवृत्ति होती है, वह तो अधर्म है।

वेदव्यास
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मैं निर्विकल्प (परिवर्तन रहित) निराकार, विभुत्व के कारण सर्वव्यापी, सब इंद्रियों के स्पर्श से परे हूँ। मैं मुक्ति हूँ मेय (मापने में आने वाले)। मैं विदानंद रूप हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य
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प्रणय का भी वेग कैसा प्रबल है! यह किसी महासाग‍र की प्रचंड आँधी से कम प्रबलता नहीं रखता। इस झोंके में मनुष्य की जीवन-नौका असीम तरंगों से घिरकर प्रायः कूल को नहीं पाती, अलौकिक आलोकमय अंधकार में प्रणयी अपनी प्रणय-तरी पर आरोहण कर उसी आनंद के महासागर में घूमना पसंद करता है, कूल की ओर जाने की इच्छा भी नहीं करता।

जयशंकर प्रसाद
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मनुष्य जिस-जिस कामना को छोड़ देता है, उस-उस की ओर से सुखी हो जाता है। कामना के वशीभूत होकर तो वह सर्वदा दुःख ही पाता है।

वेदव्यास
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तू तिंदुक की जलती हुई लकड़ी के समान दो घड़ी के लिए भी प्रज्वलित हो जो (थोड़ी देर के लिए ही सही, शत्रु के सामने महान पराक्रम प्रकट कर) परंतु जीने की इच्छा से भूसी की ज्वालारहित आग के समान केवल धुआँ कर।

वेदव्यास
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जो जितेंद्रिय नहीं हैं, उनके नेत्र उच्छृंखल इंद्रिय रूपी अश्वों द्वारा उठी धूल से भर जाते हैं।

बाणभट्ट
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मनुष्य की इच्छा उसके विवेक के द्वारा नियंत्रित होती है।

विलियम शेक्सपियर
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कोई भीतरी महान् वस्तु ऐसी अवश्य है जिसके होने से मनुष्य को जितेंद्रियता प्राप्त होती है या प्राप्त करने की इच्छा होती है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी
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इच्छा रखनी ही है तो पुनः जन्म लेने की इच्छा रखनी चाहिए।

तिरुवल्लुवर
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रास्ता खोजते समय भटक जाना, थक जाना या झुँझला पड़ना, इस बात के सबूत नहीं हैं कि रास्ता खोजने की इच्छा ही नहीं है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी
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हम परिचित चीज़ों की यादों और विदेशी और अजीब चीज़ों की चाहत के बीच फँसे रहते हैं।

कार्सन मैक्कुलर्स
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वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही उचित कर्म है।

वृंदावनलाल वर्मा
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अरे, इच्छित वस्तु मिल जाने पर कैसे विरोधी प्रभाव होते हैं।

कालिदास
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हम भूत और भविष्य को देखते हैं और जो नहीं है उसकी कामना करते हैं। हमारा निष्कपट हास्य भी किसी वेदना से युक्त होता है।

शंकर शैलेंद्र
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विषय-भोग की इच्छा विषयों का उपभोग करने से कभी शांत नहीं हो सकती। घी की आहुति डालने से अधिक प्रज्वलित होने वाली आग की भाँति वह और भी बढ़ती ही जाती है।

वेदव्यास
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इस मानव जीवन और परतंत्रता को धिक्कार है जहाँ अपनी इच्छा के अनुसार प्राणों का परित्याग भी नहीं किया जा सकता।

वाल्मीकि
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मुझे लोग पसंद करें, यह मैं कितना चाहता हूँ परंतु लोग मुझे चाहें, इसके लिए मैं करता क्या हूँ!

चार्ल्स लैंब
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पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पति की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करती हैं।

कालिदास
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एक तरफ़ निर्दयता में यह सदी बहुत बढ़ी हुई है, तो दूसरी तरफ़ न्याय की इच्छा में भी।

राममनोहर लोहिया
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मनोरथों की गति से बाहर कुछ भी नहीं है।

कालिदास
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यह कुछ अजीब बात है कि जिन पत्रों को लिखने की हमारी सबसे ज़्यादा इच्छा रहती है, वे अक्सर देर में लिखे जाते है।

जवाहरलाल नेहरू
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महात्माओं की इच्छा ऊर्ध्वगामिनी होती है।

कालिदास
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यज्ञ से संतुष्ट हुए देव तुम्हें इच्छित भोग देंगे।

वेदव्यास
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ईश्वर की इच्छा से कहीं विष अमृत और कहीं अमृत विष हो जाता है।

कालिदास
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अभीष्ट वस्तु के लिए मन के स्थिर निश्चय को और नीचे की ओर जाने वाले जल के प्रवाह को कौन रोक सकता है?

कालिदास
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इच्छा सदैव भविष्य की होती है। कुछ होने की इच्छा वस्तुतः वर्तमान में निष्क्रियता है।

जे. कृष्णमूर्ति
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सभी राजा राजकुमारी को उसी प्रकार चाहते हैं, जिस प्रकार मल्ल लोग विजय-पताका को चाहा करते हैं।

भास
  • संबंधित विषय : जीत
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कभी कुछ माँगो क्योंकि इस माँग के अंदर ही निकृष्टता के चिह्न हैं। अतः तृष्णा और वासना का नाश कर दो।

किशनचंद 'बेवस'
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थोड़े के लिए बहुत अधिक त्याग की इच्छा करते हुए तुम मुझे तो विचारमूढ़ प्रतीत होते हो।

कालिदास
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मनोरथों की परिधि से बाहर कुछ भी नहीं है।

कालिदास
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बड़े लोगों के मन में जिन वस्तुओं की अभिलाषा उत्पन्न होती है, भाग्य उन्हें उपस्थित करने में देर नहीं लगाता मानो वह भी पहले से उनकी सेवा करता रहता है।

बाणभट्ट
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प्रणय-प्रदान से बढ़ी हुई प्रीति दुर्लभ मनोरथ की भी अभिलाषा करने लगती है।

बाणभट्ट
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बोलशेविकवाद (मार्क्सवाद), जैसा कि पश्चिम में प्रचारित है, भारत में सफल नहीं हो सकता। हमें अपने वेदांत को दृढ़ता से अपनाए रहना चाहिए तो हमारी अभिलाषाएँ पूर्ण हो जाएँगी।

बाल गंगाधर तिलक
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यौवनकाल में रजोगुण-वश उत्पन्न भ्रांति वाला स्वभाव मनुष्य को इच्छानुसार बहुत दूर इसी प्रकार ले जाता है जिस प्रकार प्रबल वायु सूखे पत्तों को।

बाणभट्ट

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere