आज की दुनिया में जिस हद तक शोषण बढ़ा हुआ है; जिस हद तक भूख और प्यास बढ़ी हुई है, उसी हद तक मुक्ति-संघर्ष भी बढ़ा हुआ है और उसी हद तक बुद्धि तथा हृदय की भूख-प्यास भी बढ़ी हुई है। आज के युग में साहित्य का यह कार्य है कि वह जनता के बुद्धि तथा हृदय की इस भूख-प्यास का चित्रण करे और उसे मुक्तिपथ पर अग्रसर करने के लिए ऐसी कला का विकास करे, जिससे जनता प्रेरणा प्राप्त कर सके और जो स्वयं जनता से प्रेरणा ले सके।
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अतीत के बिना कोई कला नहीं होती है, किंतु वर्तमान के बिना भी कोई कला जीवित नहीं रहती है, यह भी ठीक है।
प्रेम नाम का कोई शाश्वत सूत्र नहीं है जो जीवन भर अपनी उपस्थिति का यक़ीन दिलाता रहे।
मुझे अपने अतीत से प्यार है। मुझे अपने वर्तमान से प्यार है। जो मेरे पास था उसमें मुझे शर्म नहीं थी, और मैं इस बात से दुखी नहीं हूँ कि अब वह मेरे पास नहीं है।
मौन निकटता की भावना लाता है। जैसे ही बात खुलती है, तीसरी उपस्थिति की मानो चेतावनी आती है।
आज के साथ कल का नाड़ी का संबंध है।
जितना आप प्रकट होते हैं और जहाँ आप प्रकट होते हैं, अपने आप पर उतना ही और केवल वहीं विश्वास करें। जो देखा नहीं जा सकता, फिर भी अस्तित्व में है, सर्वत्र है और शाश्वत है। आख़िरकार हम वही हैं।
प्रत्येक परीकथा वर्तमान सीमाओं को पार करने की क्षमता प्रदान करती है, इसलिए एक अर्थ में परीकथा आपको वह स्वतंत्रता प्रदान करती है, जिसे वास्तविकता अस्वीकार करती है।
मनुष्य की उपस्थिति में रेगिस्तान आभासी हो जाता है।
एकांत : रूप की प्यारी-सी अनुपस्थिति।
आप जहाँ हैं, वहाँ आप नहीं हैं।
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संबंधित विषय : अनुपस्थिति
मैंने एक दिन बाज़ार में एक कुम्हार को देखा जो मिट्टी के टुकड़े को अपने पैरों से रौंद रहा था। वह मिट्टी अपनी जिह्वा से उससे यह शब्द कह रही थी—कभी मैं भी तेरी तरह मनुष्य के रूप में थी और मुझमें भी ये सब बातें वर्तमान थीं।
मैं वर्तमान में एकांतवासी हूँ और कुछ नहीं करती, सिवाय लिखने और पढ़ने और पढ़ने और लिखने के।
साहित्यकारों की श्रेष्ठ चेष्टा केवल वर्तमान काल के लिए नहीं होती, चिरकाल का मनुष्य-समाज ही उनका लक्ष्य होता है।
डर की उपस्थिति को स्वीकार करना विफलता को जन्म देना है।
हम अबाध रूप से, कालक्रम से नहीं बढ़ते हैं। हम कभी-कभी असमान रूप से एक पहलू में आगे बढ़ते हैं, दूसरे में नहीं। हम थोड़ा-थोड़ा करके बढ़ते हैं। हम तुलनात्मक रूप से आगे बढ़ते हैं। हम एक क्षेत्र में परिपक्व हैं, दूसरे में बचकाने। अतीत, वर्तमान और भविष्य मिलकर हमें पीछे धकेलते हैं, आगे बढ़ाते हैं या हमें वर्तमान में स्थिर कर देते हैं। हम परतों, कोशिकाओं, ज्योति पुंजों से मिलकर बने हैं।
बढ़िया काम करने के लिए अनिवार्य है कि हम नॉस्टेल्जिया को पराजित करें—समय में कहीं और रहने की अस्पष्ट इच्छा को परास्त करें और वर्तमान को पकड़ कर रखें, और वर्तमान का पकड़ में आना मुश्किल है। जब हम उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाते हैं, हमारी समस्याएँ हमें कहीं और अतीत में या भविष्य में खींच ले जाती हैं। काम क्षणों को परिपक्व करने का एक तरीक़ा है—उन्हें गुरुता प्रदान करने का एक ढंग। काम के ज़रिए हम वर्तमान को टिकाऊपन की दावत देते हैं। अपने काम के ज़रिए वर्तमान को ग्रहण करो और फिर देखो, तुम्हारा काम हमेशा वर्तमान रहेगा।
आध्यात्मिक गृहस्थी में हमें कल के कारण आज के बारे में नहीं सोचना चाहिए।
आप जिस वर्तमान का निर्माण कर रहे हैं, उसे ध्यान से देखें : वह उस भविष्य की तरह दिखना चाहिए जिसका आप सपना देख रहे हैं।
तूफ़ानों में भी एक किस्म की शांति उपस्थित है।
हम कहीं नहीं हैं, अगर हम कहीं नहीं हैं तो हम हर जगह हैं।
हम ईश्वर की उपस्थिति को अनदेखा कर सकते हैं, लेकिन कहीं भी उनसे बच नहीं सकते हैं। वह दुनिया में हमेशा विद्यमान हैं। वह हर जगह गुप्त रूप से चलते हैं।
अगर हम अपनी वर्तमान स्थिति में सफल नहीं हो सकते तो किसी अन्य स्थिति में भी नहीं हो सकेंगे। अगर हम कमल की तरह कीचड़ में भी पवित्र और दृढ़ नहीं रह सकते तो हम कहीं भी रहें, नैतिक दृष्टि से कमज़ोर ही साबित होंगे।
आइए, विस्मरण का सम्मान करें, विस्मरण की विलक्षणताएँ—जो हमें चिंतन की अनुमति देती हैं, हर दूसरी चीज़ से अलग, वर्तमान की अद्वितीयता।
अतीत सुखों के लिए सोच क्यों, अनागत भविष्य के लिए भय क्यों, और वर्तमान को मैं अपने अनुकूल बना ही लूँगा, फिर चिंता किस बात की?
वर्तमान हमें अंधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।
इतिहास का प्रयोजन वर्तमान समय और उसके अनुसार कर्तव्य को महत्त्व देना है।
स्कूल में हर दौर का नाम होता था। हम जिस दौर में भागे जा रहे हैं, उसे क्या नाम दें—यह सवाल समाजशास्त्रीय दृष्टि से बड़ा महत्व रखता है। सरकारी लोग और आम समाज वैज्ञानिक इसे आधुनिकीकरण का नाम देते हैं।
वर्तमान जगत् में उपन्यासों की बड़ी शक्ति है। समाज जो रूप पकड़ रहा है, उसके भिन्न-भिन्न वर्गों में जो प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो रही हैं, उपन्यास उनका विस्तृत प्रत्यक्षीकरण ही नहीं करते, आवश्यकतानुसार उनके ठीक विन्यास, सुधार अथवा निराकरण की प्रवृत्ति भी उत्पन्न कर सकते हैं।
पूर्व और नूतन का जहाँ मेल होता है, वहीं उच्च संस्कृति की उपजाऊ भूमि है।
कल जो पंडितों के लिए अगम्य था, आज उसमें आधुनिक बालक के लिए भी नया कुछ नहीं है।
हम भूत और भविष्य को देखते हैं और जो नहीं है उसकी कामना करते हैं। हमारा निष्कपट हास्य भी किसी वेदना से युक्त होता है।
भारत में वर्ग-संघर्ष न होने का कारण यह है कि अपने वर्ग-चरित्र का सबने त्याग कर दिया है, और वर्तमान व्यवस्था में सबके निहित स्वार्थ फँसे हुए हैं।
इतिहास हमेशा किसी वर्तमान और उसके अतीत के बीच एक रिश्ता क़ायम करता है। फलस्वरूप वर्तमान का भय अतीत को रहस्यमय बनाने की ओर ले जाता है।
केवल वर्तमान के क्षणिक पहलुओं में ही सारी संभावनाएँ होती है।
स्मृति एक जाल है—शुद्ध और सरल। यह बदलती है, यह अतीत को वर्तमान के अनुरूप करने के लिए उसे सूक्ष्मता से पुनर्व्यवस्थित करती है।
जहाँ शब्दों से काम चल सकता था, वहाँ गोली और बम चलाने में संकोच न करना इस युग का धर्म है।
एक सैनिक यह चिंता कब करता है कि उसके बाद उसके काम का क्या होगा? वह तो अपने वर्तमान कर्त्तव्य की ही चिंता करता है।
अतीत में सक्रियता को आशावाद के साथ जोड़ा गया था, जबकि आज सक्रियतावाद के लिए निराशावाद की आवश्यकता है।
समझदार मनुष्य वर्तमान को पिछली घटनाओं के आधार पर आँकते हैं।
आज आसान नहीं है, कल और भी मुश्किल है, लेकिन परसों लाजवाब है।
वर्तमान अतीत की सत्ता के खेल से पैदा हुआ है।
हमारा अतीत ही स्वयं को बढ़ाकर वर्तमान बन गया है। हम अतीत हैं, मेरा आशय वास्तविक हम से हैं।
या एक अन्य क़ानून जो प्रदर्शित नहीं किया गया है और जिसे हमने अभी तक सोचा भी नहीं है, जो यह कहता है कि आप एक ही स्थान में दो बार अस्तित्व में नहीं हो सकते?
भविष्य के प्रति असली उदारता वर्तमान को पूरी तरह से समर्पित करने में है।
वर्तमान हमें अँधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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