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आग पर कविताएँ

सृष्टि की रचना के पाँच

मूल तत्त्वों में से एक ‘पावक’ जब मनुष्य के नियंत्रण में आया तो इसने हमेशा के लिए मानव-इतिहास को बदल दिया। संभवतः आग की खोज ने ही मनुष्य को प्रकृति पर नियंत्रण के साथ भविष्य में कूद पड़ने का पहली बार आत्मविश्वास दिया था। वह तब से उसकी जिज्ञासा का तत्त्व बना रहा है और नैसर्गिक रूप से अपने रूढ़ और लाक्षणिक अर्थों के साथ उसकी भाषा में उतरता रहा है। काव्य ने वस्तुतः आग के अर्थ और भाव का अंतर्जगत तक वृहत विस्तार कर दिया है, जहाँ विभिन्न मनोवृत्तियाँ आग के बिंब में अभिव्यक्त होती रही हैं।

स्‍त्री और आग

नवीन रांगियाल

अँधेरे में

गजानन माधव मुक्तिबोध

मृत्यु और आग

शुन्तारो तानीकावा

आवारा के दाग़ चाहिए

देवी प्रसाद मिश्र

जंगल की आग

शुभम नेगी

इतनी सुंदर आग

अमिताभ चौधरी

रेलगाड़ी की आग

प्रदीप त्रिपाठी

अग्निसंभवा

ज्योति रीता

अभी टिमटिमाते थे

तेजी ग्रोवर

जलते हुए घर से

अष्टभुजा शुक्‍ल

जल रहा है

केदारनाथ अग्रवाल

माँ और आग

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

आग

कमल जीत चौधरी

देह-राग : चार

कंचन जायसवाल

इल्ज़ाम

कुमार विकल

इसी तरह आएगी आग

ज्याेति शोभा

नींद में आग

शंकरानंद

आग

हरभजन सिंह

आँच

वंदना मिश्रा

फूल से आग

लनचेनबा मीतै

आग के अक्षर

शिवमंगल सिद्धांतकर

यह जो आग है-चार

पवन चौहान

यह जो आग है-तीन

पवन चौहान

यह जो आग है-दो

पवन चौहान

आग

सतीश नूतन

आग की पहचान

पारस अरोड़ा

आग

विपिन बिहारी

आग

बेबी शॉ

पत्थर की तरह निश्चल

प्रभात त्रिपाठी

अनुमान प्रमाण

अखिलेश जायसवाल

कोयला

वीरू सोनकर

तापना

अजेय

आग

मोहनदास नैमिशराय

जलते हुए जंगल के पास

विजय देव नारायण साही

दावाग्नि में जंगल

पद्मजा घोरपड़े

यह जो आग है-एक

पवन चौहान

उपद्रव की आग

नरेश अग्रवाल

आँच है मगर

पारुल पुखराज

बावजूद

विनोद दास

आग

उमा शंकर चौधरी

लाल गाड़ियाँ

श्याम विमल

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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