पेड़ पर उद्धरण
इस विशिष्ट चयन में प्रकृति
के प्रतीक और जड़-ज़मीन-जीवन के संदर्भ के साथ पेड़ या वृक्ष कविता में अपनी ज़रूरी उपस्थिति दर्ज कराते नज़र आएँगे।
हवा ने बारिश को उड़ा दिया, उड़ा दिया आकाश को और सारे पत्तों को, और वृक्ष खड़े रहे। मेरे ख़याल से, मैं भी, पतझड़ को लंबे समय से जानता हूँ।
हमारा जीवन मनुष्यों के संपर्क से मुक्त होकर वृक्षों में वाणी, गतिशील सरिताओं में पुस्तकें, शिलाओं में सदुपदेश तथा प्रत्येक वस्तु में अच्छाई का दर्शन करने लगता है।
मैं पेड़ नहीं, इसका अर्थ बनना चाहता हूँ।
युद्ध से पहले सेब का पेड़ चर्च के पीछे स्थित था। वह सेब का एक ऐसा पेड़ था जिसने अपने सेबों को खा लिया था।
मुझे कई बार लगता है कि पेड़ शायद आदमी का पहला घर है।
देखो वृक्ष को देखो वह कुछ कर रहा है।
किताबी होगा कवि जो कहेगा कि हाय पत्ता झर रहा है।
समय बीतने पर उपार्जित विद्या नष्ट हो जाती है, मज़बूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर पड़ते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। किंतु हुत (हवनादि किया हुआ पदार्थ) या सत्पात्त को दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है।
जीवन का आदर्श साँचे में ढाला पुरजा नहीं है, वृक्ष पर खिला पुष्प है। वह बटन दबाते ही खिंच जाने वाला फ़ोटो नहीं, ब्रश और उँगलियों की कारीगरी से धीरे-धीरे बनने वाला चित्र है।
मनुष्य की हृदयभूमि में मोह रूपी बीज से उत्पन्न हुआ एक विचित वृक्ष है जिसका नाम है काम। क्रोध और अभिमान उसके महान स्कंध हैं। कुछ करने की इच्छा उसमें जल सींचने का पात्र है। अज्ञान उसकी जड़ है, प्रमाद ही उसे सींचने वाला जल है, दूसरे के दोष देखना उस वृक्ष का पत्ता है तथा पूर्वजन्म के किए गए पाप उसके सार भाग है। शोक उसकी शाखा, मोह और चिंता डालियाँ एवं भय उसका अँकुर है। मोह में डालने वाली तृष्णा रूपी लताएँ उसमें लिपटी हुई है।
जो कर्म के फल का विचार न कर केवल कर्म की ओर दौड़ता हैं, वह उसका फल मिलने के समय उसी प्रकार शोक करता है जैसे ढाक का वृक्ष सींचने वाला करता है।
मेरा शरीर जलकर अवश्य राख होगा और वृक्षों में खाद के रूप में उपयोगी होगा। जब उस वृक्ष की लकड़ी लेकर बढ़ई अपने कौशल से प्रभु के लिए पादुका बनाएगा, उस समय भी (उसमें स्थित) मुझे प्रभु की पद-सेवा का सौभाग्य मिलेगा ही।
जैसे भौंरा धीरे-धीरे फूल एवं वृक्ष का रस लेता है, वृक्ष को काटता नहीं और जैसे मनुष्य बछड़े को कष्ट न देकर धीरे-धीरे गाय को दुहता है, उसके थनों को कुचल नहीं देता, उसी प्रकार राजा को कोमलता के साथ राष्ट्र रूपी गौ का दोहन करना चाहिए, उसे कुचलना नहीं चाहिए।
एक कहावत है कि जब उड़ता हुआ पक्षी थक जाता है, तब वह किसी भी पेड़ पर उतर जाता है।
वेद शास्त्रों में कहा है कि जिसका मूल अव्यक्त है, जो अनादि है, जिसकी चार त्वचाएँ, छः तने, पचीस शाखाएँ, अनेक पत्ते और बहुत से फूल हैं, जिनमें कड़ुवे और मीठे दो प्रकार के फल लगे हैं, जिस पर एक ही बेल है, जो उसी के आश्रित रहती है, जिसमें नित्य नए पत्ते और फूल निकलते रहते हैं, ऐसे संसार-वृक्ष स्वरूप आपको हम नमस्कार करते हैं।
धर्म और सत्यरूपी महावृक्षों के जो अमर बीज वाल्मीकि ने बोए हैं, वे आज भी फल-फूल रहे हैं।
जिस भूमि में वृक्ष नहीं होते; वह मरूभूमि हो जाती है क्योंकि पानी तो वहाँ बरसता नहीं, इसलिए सब रेत-ही-रेत हो जाता है।
सौभाग्य से पेड़ों में विचारशीलता नहीं होती।
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जिनकी जड़ खोखली हो गई हो, वे वृक्ष जैसे अधिक काल तक खड़े नहीं रह सकते, उसी प्रकार पाप कर्म करने वाले लोकनिंदित क्रूर पुरुष ऐश्वर्य को पाकर भी चिरकाल तक उसमें प्रतिष्ठित नहीं रह पाते।
वृक्ष फलों के उत्पन्न होने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे को दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियाँ पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है।
पेड़ के गठन को तभी समझ सकते हैं, जब पतझड़ हो।
न तो मैं भगवान बनना चाहता हूँ और न ही नायक। बस एक पेड़ में बदल जाऊँ, सदियों तक बढ़ता रहूँ और किसी को चोट न पहुँचाऊँ।
तुम प्राय: कहते हो, 'मैं दान दूँगा, किंतु सुपात्र को ही।' तुम्हारी वाटिका के वृक्ष ऐसा नहीं कहते, न तुम्हारे चरागाह की भेड़ें।
वे देते हैं, ताकि जी सकें, क्योंकि रखे रहना ही मृत्यु है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere