
आँख वाले प्रायः इस तरह सोचते हैं कि अंधों की, विशेषतः बहरे-अंधों की दुनिया, उनके सूर्य प्रकाश से चमचमाते और हँसते-खेलते संसार से बिलकुल अलग हैं और उनकी भावनाएँ और संवेदनाएँ भी बिलकुल अलग हैं और उनकी चेतना पर उनकी इस अशक्ति और अभाव का मूलभूत प्रभाव है।

मुल्ला और मशालची दोनों एक ही मत के हैं। औरों को तो ये प्रकाश देते हैं और स्वयं अंधकार में फँसे रहते हैं।

हमारी आँखें हैं, इस कारण अंधों के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य है। हम अपनी आँखें दिन में एक बार, सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार कुछ देर के लिए उन्हें उधार दे दें।

जानवर इंसानों जितने बुद्धिमान नहीं होते, इसलिए उन्होंने छिपने की कला नहीं सीखी है। लेकिन मनुष्य में और उनमें बुद्धि को छोड़कर बाक़ी सभी चीज़ें समान स्तर की होती हैं। उन्होंने अपनी कुटिल बुद्धि से वितरण की व्यवस्था बनाकर अपने पशुवत कर्मों को छुपाने के लिए सुरक्षित अंधकार पैदा कर लिया है।

जीवन में जो सुंदर है, वह पेंटिंग में ख़राब हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इसमें बहुत अधिक सुंदरता है। एक अच्छी तस्वीर को जिस तरह से चमकना चाहिए, उसके लिए उसमें कुछ बुरा होना आवश्यक है। उसे अँधेरे की आवश्यकता होती है।

करुणा और समर्पण के बीच का अंतर प्रेम का सबसे अंधकारमय, सबसे गहरा क्षेत्र है।

अंधकार मानो अंगों पर लेप कर रहा है। आकाश मानो अंजन बरसा रहा है। इस समय दृष्टि ऐसी निष्फल हो रही है जैसे दुष्ट पुरुषों की सेवा।

जानवर इंसानों जितने बुद्धिमान नहीं होते, इसलिए उन्होंने छिपने की कला नहीं सीखी है। लेकिन मनुष्य में और उनमें बुद्धि को छोड़कर बाक़ी सभी चीज़ें समान स्तर की होती हैं। उन्होंने अपनी कुटिल बुद्धि से वितरण की व्यवस्था बनाकर अपने पशुवत कर्मों को छुपाने के लिए सुरक्षित अंधकार पैदा कर लिया है।

अँधेरा ही एक ऐसी चीज़ है जो हर आदमी की शकल को एक बना देती है।

घोर अंधकार में जिस प्रकार दीपक का प्रकाश सुशोभित होता है उसी प्रकार दुःख का अनुभव कर लेने पर सुख का आगमन आनंदप्रद होता है किंतु जो मनुष्य सुख भोग लेने के पश्चात् निर्धन होता है वह शरीर धारण करते हुए भी मृतक के समान जीवित रहता है।

स्मरण का संबंध अंधकार से अधिक है।

अँधेरा प्रकाश की ओर आकर्षित होता है, लेकिन प्रकाश को यह पता नहीं होता; प्रकाश को अंधकार को अवशोषित करना चाहिए और इसलिए उसे स्वयं ही समाप्त हो जाना चाहिए।

अंधे की लाठी पकड़ने वाला अंधा हो तो दोनों ही गड्ढे में गिरते हैं।

जो लोग इस बात से अनजान हैं कि वे अंधकार में चल रहे हैं, वे कभी भी प्रकाश की तलाश नहीं करेंगे।

इतनी चमकदार रौशनी में, अँधेरे में गुज़रे लंबे समय बाद, जो दिखता है वह सिर्फ़ स्याह और सफ़ेद है, सिर्फ़ रूपरेखाएँ जिनके ख़िलाफ़ पलक झपकाना चाहिए।


रोशनी और परिभाषाओं को फेंक दो, और वह बताओ जो तुम अँधेरे में देखते हो।


जब हम मृत्यु और अँधेरे को देखते हैं, तो हम अज्ञात से डरते हैं और कोई बात नहीं है।

अँधेरे में संगीत दो व्यक्तियों को कितना पास खींच लाता है!

अँधेरे में शायद इंसान दबे पैरों अपने अंदर उतरता जाता है, जैसे वह किसी ग़ैर के घर में चोरी के लिए दाख़िल हुआ हो और अपने अंदर से सब कुछ बाहर निकाल लाता है।

अँधेरे की तरह अज्ञान भी सत्य नहीं।

जिस प्रकार बच्चे अँधेरे में जाने से भयभीत होते हैं, उसी प्रकार मनुष्य मृत्यु से भयभीत होते हैं।

अंधकार का आलोक से, असत् का सत् से जड़ का चेतन से और बाह्य जगत का अंतर्जगत से संबंध कौन कराती है? कविता ही न।

जड़-चेतनमय, विष अमृतमय, अंधकार-प्रकाशमय जीवन में न्याय के लिए कर्म करना ही गति है। मुझे जीना ही होगा, कर्म करना ही होगा। यह बंधन ही मेरी मुक्ति भी है। इस अंधकार में ही प्रकाश पाने के लिए मुझे भी जीना है।


आस्था तर्क से परे की चीज़ है। जब चारों ओर अँधेरा ही दिखाई पड़ता है और मनुष्य की बुद्धि काम करना बंद कर देती है उस समय आस्था की ज्योति प्रखर रूप से चमकती है और हमारी मदद को आती है।

मार्गरूपी नदियों में अंधकार बह रहा है। गृह-माला तटों के समान प्रतीत हो रही है। दसों दिशाएँ अंधकार में डूबी हुई हैं। अंधकार को मानो नौका से पार करना होगा।

लोग हमेशा की तरह सपने देखते, लड़ते और सोते रहे… और आदतन उन्होंने अपने विचारों को छोटा कर लिया, ताकि वे कल के बाद अँधेरे में न भटकें।

क्या बाल रवि अंधकार को नष्ट नहीं करता? क्या छोटी दावाग्नि जंगल नहीं जला देती? क्या बाल सिंह हाथी का दलन नहीं करता? क्या बाल सर्प डसता नहीं?

मैं, जो कि अंधी हूँ, आँख वालों को एक सुझाव दे सकती हूँ—अपनी आँखों का ऐसे उपयोग कीजिए कि जैसे कल आप अंधे हो जाने वाले हैं। और यही तरीक़ा अन्य इंद्रियों के लिए भी अपनाया जा सकता है। लोगों की कंठध्वनियों के संगीत, पक्षियों के गीत और वाद्यवृंदों की स्वरलहरी को ऐसे सुनिए, जैसे कल आपकी स्पर्श-शक्ति नष्ट हो जाएगी। फूलों का सौरभ यों सूँघिए, भोजन के प्रत्येक कौर का रस यों लीजिए, जैसे कल आप सूँघने व चखने में असमर्थ हो जाने वाले हैं। प्रकृति ने आपको जो संपर्क के साधन दिए हैं, उनके माध्यम से यह संसार आनंद और सौंदर्य के जितने भी पहलू आपके सामने उद्घाटित करे, उन सब पर अभिमान अनुभव कीजिए।

मुझे घोर अँधेरे और घनेरे वन प्रिय हैं, किंतु मुझे वायदे पूरे करने हैं। मुझे सोने से पहले मीलों दूर जाना है।

प्रणय का भी वेग कैसा प्रबल है! यह किसी महासागर की प्रचंड आँधी से कम प्रबलता नहीं रखता। इस झोंके में मनुष्य की जीवन-नौका असीम तरंगों से घिरकर प्रायः कूल को नहीं पाती, अलौकिक आलोकमय अंधकार में प्रणयी अपनी प्रणय-तरी पर आरोहण कर उसी आनंद के महासागर में घूमना पसंद करता है, कूल की ओर जाने की इच्छा भी नहीं करता।

घरों के भीतर अंधकार है, धर्म के नाम पर ढोंग की पूजा है, और शील तथा आचार के नाम पर रूढ़ियों की।

आदर्श अंधकार से सूर्य की ओर उठने की आकांक्षा है। जो उस आकांक्षा से पीड़ित नहीं होता है, वह अंधकार में ही पड़ा रह जाता है।

जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।

धर्म आध्यात्मिक परिवर्तन है, एक अंतर्मुखी रूपांतरण है। यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाना है, आत्मोद्धारहीनता से आत्मोद्धार की स्थिति में पहुँचना है। यह एक जागरण है. एक प्रकार की पुनर्जन्मता है।

मैं तुम्हें देखते-देखते थक जाऊँ इसके पहले ही मृत्यु मुझे पा लेगी और अकस्मात् उस अंतिम देश के अंधकार और सूनेपन और दलदल में फेंक देगी।

जब आदमी बेहया बन जाता है, कोई अपकर्म-कुकर्म करते उसे संकोच नहीं होता और धीरे-धीरे उसमें उस ढीठ संस्कार का जन्म होता जो उसे जंगली कानून के राज्य में ले जाता है, जहाँ नाना प्रकार का अन्धकार और संकीर्णताएँ फलती-फूलती हैं।

यौवन से उत्पन्न अति गहन अंधकार न तो सूर्य द्वारा भेद्य है, न रत्नों के आलोक से छेद्य है और न दीप की प्रभा से दूर किया जा सकता है।

अपने घर के अंधकार में दूसरे का प्रकाश असह्य हो उठता है।

मृत्यु क्षणिक अंधकार है, इस अन्धकार के पीछे न जीवन का सूर्योदय है।

जो वेद-ज्ञान से रहित है, वही अंधा है। जो याचक के निरर्थक लिए है, वही शठ है। जो यश-विहीन है, वही मृतक है। जिसकी बुद्धि धर्म में नहीं है, वही शोचनीय है।

प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत् को सत् बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है।

जब सूर्य चमक रहा हो, तब अँधेरा मनुष्य की दृष्टि पर आवरण कैसे डाल सकता है।

सौंदर्य, आकार, अनुपात और क्रम के सारतत्त्व अंधों को सुलभ और हस्तगत हैं; सौंदर्य और छंद इंद्रियजन्य नहीं, बल्कि उससे गहरे, किसी आध्यात्मिक विधि के परिणाम हैं।

पुराने आघातों का स्मरण करना मानसिक अंधकार है और आघातकर्ताओं से बदला लेने का विचार करना मानसिक आत्मघात है।

मैं अपनी अंतिम यात्रा करने वाला हूँ—अँधेरे में एक बड़ी छलाँग।

अज्ञान के अतिरिक्त कोई अंधकार है ही नहीं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere