
पृथ्वी अपनी गणना में अद्वितीय है। इसकी सुंदरता को केवल पैदल यात्री ही महसूस कर सकता
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किसी वजह से हम फ़ोटो लेते समय भी मुस्कुराने के लिए बाध्य महसूस करते हैं। हम वहाँ भी ख़ुशी का खेल खेल रहे होते हैं।

प्रेम की भावना हम सभी को दूसरे व्यक्ति को जानने की भ्रामक मिथ्या धारणा देती है।

कोई व्यक्ति जो करता है, उसमें माहिर हो सकता है; लेकिन वह जो महसूस करता है, उसमें कभी नहीं।

किसी से प्यार करना मज़बूत एहसास ही नहीं है—यह निर्णय है, यह वादा है।

ख़ुशी का अनुभव करते हुए हमें उसके प्रति चेतन होने में कठिनाई होती है। जब ख़ुशी गुज़र जाती है और हम पीछे मुड़कर उसे देखते और अचानक से महसूस करते हैं—कभी-कभार आश्चर्य के साथ—कितने ख़ुश थे हम।

अनिद्रा के रोगी का अंतिम आश्रय सोई हुई दुनिया से श्रेष्ठता की भावना है।

मैं ख़ुद को निराशावादी नहीं मानता। मैं निराशावादी व्यक्ति उसे मानता हूँ जो बारिश होने का इंतिज़ार कर रहा है। और मैं पूरी तरह से भीगा हुआ महसूस करता हूँ।
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स्त्री तो एक मूर्तिमान बलिदान है। वह जब सच्ची भावना से किसी काम का बीड़ा उठाती है तो पहाड़ों को भी हिला देती है।


…मुझे एहसास हुआ है कि प्रकृति के महान नियमों का उल्लंघन प्राणनाशक पाप है। हमें ज़ल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, हमें अधीर नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें आत्मविश्वास के साथ शाश्वत लय की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
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दूसरे लोगों के दिलों को महसूस करने के लिए आपके पास दिल होना चाहिए।

लोकप्रिय तत्त्व—महसूस करता है, लेकिन वह हमेशा जानता या समझता नहीं। बौद्धिक तत्त्व—जानता और समझता है, लेकिन वह हमेशा महसूस नहीं करता।

कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता तुम कितने भी सावधान रहे आओ, एक एहसास तुम्हें हमेशा सालता रहेगा कि तुमसे कुछ छूट रहा है। तुम्हारी चमड़ी के ठीक नीचे धड़कता एक एहसास कि तुमने सब कुछ नहीं भोगा है। दिल के भीतर एक डूबता एहसास कि जिन पलों से तुम गुज़रे हो, उन पर और ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए था। सच कहूँ तो इनके आदती हो जाओ, एक रोज़ तुमको तुम्हारी सारी ज़िंदगी यूँ ही महसूस होने वाली है।

हमें बुरे स्वभाव की व्याख्या हीन भावना की निशानी के रूप में करनी चाहिए।

जैसे समुद्र और आकाश के बीच, यात्री और समुद्र के बीच का अंतर बताना मुश्किल है; वैसे ही हक़ीक़त और दिल की भावनाओं के बीच अंतर करना कठिन है।

तुम्हें मुझे समझना होगा, क्योंकि मैं कोई किताब नहीं हूँ। इसलिए मेरे मरने के बाद मुझे कोई नहीं पढ़ सकता, मुझे जीते जी ही समझना होगा।

दोस्ती में हम दूसरे व्यक्ति की आँखों से देखना, उसके कानों से सुनना और उसके दिल से महसूस करना सीखते हैं।

तुम्हारे अंदर भी एक शैतान है, पर तुम उसका नाम अभी नहीं जानते; और चूँकि तुम यह नहीं जानते, तुम साँस नहीं ले सकते। उसका बपतिस्मा कर दो, मालिक, और तुम बेहतर महसूस करोगे।

वह जानता था कि बाल महसूस नहीं कर सकते, उसने उसके बालों को चूमा।

इंसान होने का मतलब है—तुच्छ महसूस करना।

आप जानते हैं कि एक महान् लेखक आपको कैसा एहसास देता है : मेरी आत्मा को पोषण और ताज़गी मिली है, उसने कुछ नया खाया है।

मुझे एहसास है कि मैंने अपना हिस्सा ऐसी जगह छोड़ दिया है, जहाँ मैं शायद कभी वापस नहीं जाऊँगी।

कला सामाजिक अनुपयोगिता की अनुभूति के विरुद्ध अपने को प्रमाणित करने का प्रयत्न अपर्याप्तता के विरुद्ध विद्रोह है।

साहित्य और कला की हमारी पूरी परंपरा में, जीव की प्रधान कामना आनंद की अनुभूति है।

तंग मज़हबों में सीमित न हो जाओ। राष्ट्रीयता को स्थान दो। भ्रातृत्व, मानवता तथा आध्यात्मिकता को स्थान दो। द्वैत-भावना की मलिन दृष्टि को त्याग दो- तुम भी रहो, मैं भी रहूँ।
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अपनी व्यक्तिगत सत्ता की अलग भावना से हटाकर निज के योगक्षेम के संबंध से मुक्त करके, जगत की वास्तविक दशाओं में जो हृदय समय-समय पर रमता है, वही सच्चा कवि हृदय है।

हम ध्यान द्वारा शुद्ध और सूक्ष्म हुए मन से परमात्मा के स्वरूप का अनुभव तो कर सकते हैं, किंतु वाणी द्वारा उसका वर्णन नहीं कर सकते, क्योंकि मन के द्वारा ही मानसिक विषय का ग्रहण हो सकता है और ज्ञान के द्वारा ही ज्ञेय को जाना जा सकता है।

उसके चेहरे पर कुछ-कुछ वैसा ही करुणाजनक भाव आ गया था जो हिंदी सिनेमा में ग़ज़ल गाने के पहले हिरोइन के चेहरे पर आ जाता है।
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भक्ति का अर्थ है भावपूर्वक अनुकरण।

कर्म-भावना-प्रधान उत्साह ही सच्चा उत्साह है। फल-भावना-प्रधान उत्साह तो लोभ ही का एक प्रच्छन्न रूप है।

किसी भावोद्रेक द्वारा परिचालित अंतर्वृत्ति जब उस भाव के पोषक स्वरूप गढ़कर या काट-छाँटकर सामने रखने लगती है तब हम उसे सच्ची कवि-कल्पना कह सकते हैं।

तिलक और माला धारण कर लेने मात्र से हृदय में भक्तिभाव नहीं जाग जाता है। यदि कोई प्रेम के बिना कोरा उपदेश देता है तो वह व्यर्थ ही भौंकता है—अनुभव के बिना बोलना निरुपयोगी है।

जीवन की गहराई की अनुभूति के कुछ क्षण ही होते हैं, वर्ष नहीं। परंतु यह क्षण निरंतरता से रहित होने के कारण कम उपयोगी नहीं कहे जा सकते।

भक्ति, धर्म और ज्ञान दोनों की रसात्मक अनुभूति है।

क्या आपने कभी ऐसे लोगों को देखा है, जिन्हें बाद में आप तस्वीर से ज़्यादा एक एहसास की तरह याद करते हैं?

धर्म की रसात्मक अनुभूति का नाम भक्ति है।

…अपने डरावने एहसास को ताज़ा करने के लिए समय-समय पर घर जाना चाहिए।


भारत में सौंदर्यशास्त्रीय तथा धार्मिक भावनाएँ व मूल्य एकीकृत हो गए हैं जिससे वे अनुभूति के उस आयाम तक पहुँचे जिसमें बुद्धि और भाव दोनों चरम उत्कर्ष प्राप्त करते हैं।

जो वस्तु हमसे अलग है, हमसे दूर प्रतीत होती हैं, उसकी मूर्ति मन में लाकर उसके सामीप्य का अनुभव करना ही उपासना है।

भावनाओं के अतुलनीय ऐश्वर्य को किसी भी बहुमूल्य भौतिक वस्तु से ख़रीदा नहीं जा सकता है। भावना के बदले वस्तु का सौदा मानवीय दयनीयता का परिचायक है।

ओ आनंद की भावना! तुम कभी-कभी आती हो।

मौत के विचार से पैदा होने वाले भावों को अनुभवजनित न कहकर सामान्य या सांसारिक ज्ञान से उत्पन्न भाव माना जाना चाहिए।

बुद्धिहीनता कहते हैं उस विक्षिप्तता को जो इस भावा से उत्पन्न होती है कि हम बुद्धिमान हैं।

जो भाव इंद्रियगम्य नहीं है, वहाँ तर्क कभी सफल नहीं होता।

निश्चयपूर्वक तीव्र वेग से जिस वस्तु की भावना की जाती है, पुरुष वही शीघ्र हो जाता है। यह बात कीट-भृगन्याय से समझनी चाहिए।

कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि क्या मेरे लेखन का उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया है या महसूस किया है, या यदि नहीं; तो क्या उनके लिए ऐसी चीज़ों को अनुभव करना सामान्य है।

इस कलाकार में बड़ा भारी गुण यह था कि इसने नए और पुराने विचारों को अपनी रचनाओं में इस सफ़ाई से मिलाया कि कहीं से जोड़ मालूम न हुआ। पुराने भावों और आदर्शों को लेकर इन्होंने नए आदर्श खड़े किए।

बार-बार लौटने वाला एहसास वह है, जो दरअस्ल कभी आपसे दूर हुआ ही नहीं था।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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