पत्र पर उद्धरण
पत्र बातों और भावनाओं
को शब्दों में प्रकट कर संवाद करने का एक माध्यम है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें पत्र प्रमुख तत्त्व और प्रसंग की तरह कविता में उपस्थित हुए हैं।

‘‘पत्र तो कागज के टुकड़े हैं…’’ मैंने कहा, ‘‘उन्हें जला दो… और जो तुम्हारे दिल में रहेगा, वह रहेगा; उसे रख लो और जो मिटना है, वह मिट जाएगा।’’

मेरी डाक में आने वाले खतों में कुछ खत तो गालियों से ही भरे होते हैं। उन गालियों का तो मेरे ऊपर कोई असर नहीं होता, क्योंकि मैं इन गालियों को ही स्तुति समझता हूँ, परंतु वे लोग गालियाँ इसलिए नहीं देते कि मैं उनको स्तुति समझता हूँ बल्कि इसलिए कि मैं जैसा उनकी निगाह में होना चाहिए वैसा नहीं हूँ। एक वक़्त वह था जब वे मेरी स्तुति भी करते था। इसलिए गालियाँ देना या स्तुति करना तो दुनिया का एक खेल हूँ।

जो प्रेमपत्र में मूर्खतापूर्ण बातें न लिखे, उसका प्रेम कच्चा है, उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। पत्र जिनता मूर्खतापूर्ण हो, उतना ही गहरा प्रेम समझना चाहिए।

पत्र लिखना भी एक कला है। हमारी सभी कलाएँ सत्य की पूजा से आरंभ होती हैं। मुझे पत्र लिखना है और उसमें सत्य ही लिखना है और उसमें प्रेम उड़ेल देना है ऐसा सोचकर लिखने बैठोगे तो सुंदर पत्र ही लिखोगे।

कृपया सदैव मुझे प्रेमपूर्वक पत्र लिखिए क्योंकि मैं 'मित्रविहीन निर्जन प्रदेश' में हूँ, अकेला हूँ और जो मुझसे प्रेम करते हैं, उनके पत्र मुझे वरदान तुल्य हैं।

ख़त निजी अख़बार है घर का।

यह कुछ अजीब बात है कि जिन पत्रों को लिखने की हमारी सबसे ज़्यादा इच्छा रहती है, वे अक्सर देर में लिखे जाते है।

गाँव की बिरहिनियों के लिए पत्र पत्र नहीं, जो पढ़कर फेंक दिया जाता है, अपने प्यारे परदेसी के प्राण हैं, देह से मूल्यवान। उनमें देह की कठोरता नहीं, कलुषता नहीं, आत्मा की आकुलता और अनुराग हैं।

यदि लिखावट इतनी धुँधली हो कि पढ़ी न जा सके तो इस पत्र को फेंक देना।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere