
अकेले स्वादिष्ट भोजन न करे, अकेले किसी विषय का निश्चय न करे, अकेले रास्ता न चले और बहुत से लोग सोए हों तो उनमें अकेला जागता न रहे।

जब मनुष्य आदत और उद्धरण के अनुरूप जीना शुरू कर देता है, तो वह जीना बंद कर देता है।

हम दूसरों को नहीं जानते। वे एक पहेली हैं। हम उन्हें नहीं जान सकते, ख़ासकर वे जो हमारे सबसे क़रीबी हैं; क्योंकि आदत हमें धुंधला कर देती है और उम्मीद हमें सचाई से अंधा कर देती है।

पढ़ना मेरी पहली एकमात्र बुरी आदत थी और उससे अन्य सब अवगुण आए। मैंने खाते वक़्त पढ़ा, मैंने शौचालय में पढ़ा, मैंने स्नानघर में पढ़ा। जब मुझे सोना चाहिए था, मैं पढ़ रही थी।

मानव-विकास नाम की कोई चीज़ नहीं है। उसे बस अपनी ख़ामियों की आदत हो जाती है, बस इतना ही है।

अपने दोष हम देखना नहीं चाहते हैं, दूसरों के देखने में हमें मज़ा आता है। बहुत दुःख तो इसी आदत में से पैदा होता है।

बिना किसी के गुण-दोष की ओर ध्यान दिए परोपकार करना सज्जनों का एक व्यसन ही होता है।

अन्याय करके पछताने की आदत बुरी नहीं है।
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सदाचरण, सहयोग, एवं सनिश्चय—इन तीनों गुणों में सिद्ध होना दूत के लिए आवश्यक है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere