बुद्धिजीवी पर उद्धरण

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शत्रु में दोष देखकर बुद्धिमान झट वहीं क्रोध को व्यक्त नहीं करते हैं, अपितु समय को देखकर उस ज्वाला को मन में ही समाए रखते हैं।

तिरुवल्लुवर
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अज्ञान की निवृत्ति में ज्ञान ही समर्थ है, कर्म नहीं, क्योंकि उसका अज्ञान से विरोध नहीं है और अज्ञान की निवृत्ति हुए बिना राग-द्वेष का भी अभाव नहीं हो सकता।

आदि शंकराचार्य
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जाति और कुल में सभी एक समान हो सकते हैं परंतु उद्योग, बुद्धि और रूप संपत्ति में सबका एक-सा होना संभव नहीं है।

वेदव्यास
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मैंने कितनी ही बार सोचा है कि क्या व्यक्तियों से संबंध बनाना संभव है, जब किसी के मन में किसी के लिए भी कोई भावना रही हो; अपने माता पिता के लिए भी नहीं। अगर किसी को कभी भी गहराई से प्यार नहीं किया गया, तो क्या उसके लिए सामूहिकता में रहना संभव है? क्या इन सबका मेरे जैसे युद्धप्रिय के ऊपर कोई प्रभाव नहीं रहा? क्या इस सबसे मैं और बंध्य नहीं हुआ? क्या इन सबसे एक क्रांतिकारी के रूप में मेरी गुणवत्ता कम नहीं हुई? मैं जिसने हर चीज़ को बौद्धिकता और शुद्ध गणित के पैमाने पर रख दिया।

अंतोनियो ग्राम्शी
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सभी मनुष्य बुद्धिजीवी हैं, लेकिन सभी मनुष्य समाज में बुद्धिजीवियों का कर्म नहीं करते।

अंतोनियो ग्राम्शी
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कुल, धन, ज्ञान, रूप, पराक्रम, दान और तप- ये सात मुख्य रूप से मनुष्यों के अभिमान के हेतु हैं।

क्षेमेंद्र
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मस्तिष्क देख सके इसके पहले हृदय सदैव देख लेता है।

थॉमस कार्लाइल
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हे अर्जुन! मन को मथने वाली इंद्रियाँ प्रयत्न करने वाले ज्ञानी पुरुष के मन को भी बलात्कारपूर्वक हर लेती हैं।

वेदव्यास
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विद्वान पुरुष सर्वत्र आनंद में रहता है और सर्वत्र उसकी शोभा होती है। उसे कोई डराता नहीं है और किसी से डराने पर भी वह डरता नहीं है।

वेदव्यास
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इस लोक में बुद्धिमानों की बुद्धि से अगम्य कुछ भी नहीं है। देखो शस्त्रास्रधारी नंदवंशी राजाओं को चाणक्य ने बुद्धि द्वारा ही नष्ट कर दिया था।

विष्णु शर्मा
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अतः बुद्धिमान मनुष्य को, संसार में फैले हुए मोह रूपी बादल में यह रूप निश्चय ही बिजली की कौंध के समान है- ऐसा विचार करके आश्चर्यपूर्ण सौंदर्य-विलास का अभिमान नहीं करना चाहिए।

क्षेमेंद्र

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere