
बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।

अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।

पुरुष जब बिस्तर में बेकार हो जाए, बेरोज़गार हो जाए, बीमार हो जाए तो पत्नी को सारे सच्चे-झूठे झगड़े याद आने लगते हैं। तब वह आततायी बन जाती है। उसके सर्पीले दाँत बाहर निकल आते हैं।

किसी का मूल्यांकन करते वक़्त हमें अपने दृष्टिकोण का भी मूल्यांकन करना चाहिए।


बदसूरती आम हिंदुस्तानी आँख को दिखाई ही नहीं देती।

यह कड़वी हक़ीक़त कि हम हिंदी के लेखक एक-दूसरे को शौक़, प्यार और उदारता से नहीं पढ़ते। अक्सर तो पढ़ते ही नहीं। पढ़ भी लें तो बता नहीं देते कि पढ़ लिया है।

ख़राब किया जा रहा मनुष्य आज जगह-जगह दिखाई देता है।

इस लज्जित और पराजित युग में कहीं से ले आओ वह दिमाग़ जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता।

दोहरी ज़िंदगी की सुविधाओं से मुझे प्रेम नहीं है।

मैं पैसे और शोहरत के मोह से मुक्त होने की कोशिश में हूँ, इसीलिए बहुत से लोग मुझसे दूर भागते रहते हैं।

सूची कोई भी बनाए, कभी भी बनाए, सूचियाँ हमेशा ख़ारिज की जाती रहेंगी; वे विश्वसनीयता पैदा नहीं कर सकती—क्योंकि हर संपादक, आलोचक के जेब में एक सूची है।

शिकायतों का कोई फ़ायदा नहीं है, क्योंकि हम जो महसूस करते हैं, हम जो जीते हैं, या जो हम हैं, उसमें किसी भी बाहरी निर्णय का कोई योगदान नहीं है।

अगर हमारे पास मुठभेड़ के अपने विषय नहीं होंगे और हम विरोधियों, शत्रुओं से ही संघर्ष के विषय लेते रहेंगे तो यह एक झगड़ालू और निस्तेज जीवन होगा।

प्रलाप का अर्थ है प्रलाप।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere