पुनर्जन्म पर उद्धरण
भारतीय धार्मिक-सांस्कृतिक
अवधारणा में पुनर्जन्म मृत्यु के बाद पुनः नए शरीर को धारण करते हुए जन्म लेना है। यह अवधारणा अनिवार्य रूप से भारतीय काव्य-रूपों में अभिव्यक्ति पाती रही है। प्रस्तुत चयन उन कविताओं का संकलन करता है, जिनमें इस अवधारणा को आधार लेकर विविध प्रसंगों की अभिव्यक्ति हुई है।

धर्म कुछ संकुचित संप्रदाय नहीं है, केवल बाह्याचार नहीं है। विशाल, व्यापक धर्म है ईश्वरत्व के विषय में हमारी अचल श्रद्धा, पुनर्जन्म में अविरल श्रद्धा, सत्य और अहिंसा में हमारी संपूर्ण श्रद्धा।

मेरा मानना है कि कुछ ऐसे लोग हैं जिनमें चीज़ों को आपस में मिलाकर उन्हें पुनर्जीवित करने की ताक़त होती है।


हिंसा मनुष्य द्वारा स्वयं का पुनर्निर्माण है।

मैं नर्क की तुलना में पुनर्जन्म में विश्वास करती हूँ। अगर लौटने का विकल्प हो, तब पुनर्जन्म का विचार और भी अधिक सहनीय हो जाता है।

भूलना पुनर्जन्म की तरह है।

धर्म आध्यात्मिक परिवर्तन है, एक अंतर्मुखी रूपांतरण है। यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाना है, आत्मोद्धारहीनता से आत्मोद्धार की स्थिति में पहुँचना है। यह एक जागरण है. एक प्रकार की पुनर्जन्मता है।

मेरी दृष्टि से पुनर्जन्म शास्त्रीय प्रयोगों और अनुभव से सिद्ध वस्तु है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere