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स्पर्श पर उद्धरण

त्वचा हमारी पाँच ज्ञानेंद्रियों

में से एक है, जो स्पर्श के माध्यम से हमें वस्तुओं का ज्ञान देती है। मानवीय भावनाओं के इजहार में स्पर्श की विशिष्ट भूमिका होती है। प्रस्तुत चयन में स्पर्श के भाव-प्रसंग से बुनी कविताओं को शामिल किया गया है।

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मनुष्य किसी भी चीज़ से उतना नहीं डरता जितना कि अज्ञात के स्पर्श से।

एलायस कनेटी
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हे नारी! तुम्हारे स्पर्श से ही पृथ्वी को रूप मिला है और सुधा रस का स्पर्श मिला है! जीवन कुसुम को परिवेष्टित कर कवियों ने विश्व गुंजा दिया जिससे काव्य का सुरस विकसित हो उठा।

नलिनीबाला देवी
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तुम वही शरद्कालीन अमृतमयी ज्योत्स्ना हो, जो विषाद की घन घटाओं को दूर करती है। तुम्हारे हृदय के पुण्य स्पर्श मात्र से दरिद्र की कुटिया शांति निकेतन बन जाती है।

नलिनीबाला देवी
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पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं।

संत एकनाथ
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पत्थर को पारस के स्पर्श से क्या लाभ?

संत तुकाराम
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पुत्र के लिए माताओं का हस्त-स्पर्श प्यासे के लिए जल-धारा के समान होता है।

भास
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स्वप्न-लीला के तुम मधुर स्पर्श हो और क्लांत जीवन में प्रशांति-सुधा तथा असीम की अमृत माधुरी लाने वाले, स्मृति भंडार की मूर्त छबि हो।

नलिनीबाला देवी
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जिस प्रकार पापियों का स्पर्श अंगों को दूषित करता है, उसी प्रकार उनका कीर्तन वाणियों को दूषित करता है, अतः उसकी अन्य नृशंसता का वर्णन नहीं किया गया है।

कल्हण
  • संबंधित विषय : पाप
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अनासक्ति और संवेदनशून्यता में भी फ़र्क़ है।

कृष्ण बलदेव वैद
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हे दुष्ट की जिह्वा रूपी झाड़ू! यद्यपि तुम निरन्तर फेंके हुए मल के द्वारा भुवनतल को निर्मल करती रहती हो, फिर भी तुम्हारे स्पर्श में भय ही होता है।

कवि कर्णपूर

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere