यदि तुम मुझे एक दिन भूल जाओगे, यदि तुम मुझे एक दिन छोड़ ही दोगे तो मुझे यूँ थकाओ मत। मुझे मेरे कोने से बेवजह बाहर मत निकालो।
हम दोपहर में अपने पसीने को व्यय करते हैं और रात्रि में तेल को। हर रात्रि में चिंतन करके थकते हैं और दिन में परिश्रम करके।
मैं आँसुओं और मुस्कान से थक गया हूँ। मैं मनुष्यों से भी थक गया हूँ जो इस चिंता से कि कल क्या होगा, रोते और हँसते हैं और जो फ़सल बोते और काटते हैं।
मैं दिनों और घंटों से थक गया हूँ, वंध्या फूलों की खिली कलियों से थक गया हूँ और निद्रा के अतिरिक्त सभी से—इच्छाओं, कल्पनाओं और शक्तियों से थक गया हूँ।
एक कहावत है कि जब उड़ता हुआ पक्षी थक जाता है, तब वह किसी भी पेड़ पर उतर जाता है।
मैं तुम्हें देखते-देखते थक जाऊँ इसके पहले ही मृत्यु मुझे पा लेगी और अकस्मात् उस अंतिम देश के अंधकार और सूनेपन और दलदल में फेंक देगी।
सबसे अधिक शक्तिशालियों के भी क्षण आते हैं जब वे थक जाते हैं।
रास्ता खोजते समय भटक जाना, थक जाना या झुँझला पड़ना, इस बात के सबूत नहीं हैं कि रास्ता खोजने की इच्छा ही नहीं है।
एक बार मैंने मेघा पाटकर से पूछा था कि वे थकती क्यों नहीं हैं? पत्र में उन्होंने लिखा था कि 'लड़ते-लड़ते अपनी ही छाया में गिर जाना' थककर बैठ जाने से बेहतर है। बैठ जाने से उनका आशय ज़रूर आंदोलन का रास्ता छोड़ देने से रहा होगा।
थकान दो तरह की होती है—एक में शरीर नींद के लिए छटपटाता है और दूसरे में मन चैन पाने के लिए बेक़रार रहता है।
जीवन थक जाने की एक लंबी प्रक्रिया है।
थकान सर्वोत्तम तकिया है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere