
मैं जितनी अधिक आश्चर्यचकित होती हूँ, उतना ही अधिक प्रेम करती हूँ।

जैसे-जैसे हमारी आँखें देखने की आदी हो जाती हैं, वे ख़ुद को आश्चर्य के विरुद्ध ढाल लेती हैं।

संसार से प्रतिदिन प्राणी यमलोक में जा रहे हैं किंतु जो बचे हुए हैं, वे सर्वदा जीते रहने की इच्छा करते हैं। इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या होगा?

कोई ही इस आत्मा को आश्चर्यवत् देखता है और वैसे ही दूसरा कोई ही आश्चर्यवत् (इसके तत्त्व को) कहता है और दूसरा (कोई ही) इस आत्मा को आश्चर्यवत् सुनता है। और कोई सुनकर भी इस आत्मा को नहीं जानता।

आज वही सारहीन है जिस पर कल आश्चर्य प्रकट किया जा रहा था। जो कल तक ज्ञान समझा जाता था, आज वही अज्ञान माना जा रहा है। कल शायद वह दोषी माना जाएगा, जिसे आज ज्ञान प्राप्त है। वह वस्तु ही कहाँ है जिसमें परिवर्तशीलता न हो?

यह जानकर आश्चर्य क्यों होता है कि हमारे सिवाय अन्य लोग भी झूठ बोलने में सक्षम हैं?
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere