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क्रोध पर उद्धरण

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शत्रु में दोष देखकर बुद्धिमान झट वहीं क्रोध को व्यक्त नहीं करते हैं, अपितु समय को देखकर उस ज्वाला को मन में ही समाए रखते हैं।

तिरुवल्लुवर
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आलस्य मनुष्य के द्वारा समय को बर्बाद करना है, लालच उसके द्वारा भोजन या धन को बर्बाद करना है, क्रोध उसके द्वारा शांति को बर्बाद करना है। लेकिन ईर्ष्या—ईर्ष्या उसके द्वारा साथी मनुष्य को बर्बाद करना है। दूसरे मनुष्यों की सांत्वना बर्बाद करना है।

सामंथा हार्वे
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हे राजा! धन से धर्म का पालन, कामना की पूर्ति, स्वर्ग की प्राप्ति, हर्ष की वृद्धि, क्रोध की सफलता, शास्त्रों का श्रवण और अध्ययन तथा शत्रुओं का दमन—ये सभी वही कार्य सिद्ध होते हैं।

वेदव्यास
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ग़ुस्से का स्वभाव आपको जल्द ही मूर्ख बना देगा।

ब्रूस ली
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क्रोध एक तेज़ाब है। वह जिस पर फेंका जाता है; उससे अधिक नुक़सान उस बर्तन को पहुँचा सकता है, जिसमें इसे रखा जाता है।

मार्क ट्वेन
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क्रोध अत्यंत कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक वाक्य निशाने पर बैठता है या नहीं, वह मौन को सहन नहीं कर सकता।

प्रेमचंद
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हिटलर पर भी ग़ुस्सा करना उचित नहीं है, ईश्वर पर तो और भी कम।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन
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अन्यायपूर्वक दिए गए दंड ने भय और क्रोध को जन्म दिया।

दण्डी
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जो कमज़ोर होता है वही सदा रोष करता है और द्वेष करता है। हाथी चींटी से द्वेष नहीं करता। चींटी, चींटी से द्वेष करती है।

महात्मा गांधी
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ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन—इन चार सदा बचते रहना ही वस्तुतः धर्म है।

तिरुवल्लुवर
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भारतवर्ष की पवित्र भूमि है, उत्तम कुल में जन्म मिला है, समाज और शरीर भी उत्तम मिला है। ऐसी अवस्था में जो व्यक्ति क्रोध कठोर वचन त्याग कर वर्षा, जाड़ा, वायु और धूप को सहन करता हुआ चातक-हठ से भगवान् को भजता है, वही चतुर है। शेष सब तो सुवर्ण के हल में कामधेनु को जोतकर विषबीज ही बोते हैं।

तुलसीदास
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क्रोध में आदमी अपने मन की बात नहीं करता, वह केवल दूसरे का दिल दुखाना चाहता है।

प्रेमचंद
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क्रोध-भाव की चेतना के भीतर ही, विशेष मानव-संबंध अपने सामान्य तथा विशिष्ट रूप में देखे जा सकते हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध
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मनुष्य की हृदयभूमि में मोह रूपी बीज से उत्पन्न हुआ एक विचित वृक्ष है जिसका नाम है काम। क्रोध और अभिमान उसके महान स्कंध हैं। कुछ करने की इच्छा उसमें जल सींचने का पात्र है। अज्ञान उसकी जड़ है, प्रमाद ही उसे सींचने वाला जल है, दूसरे के दोष देखना उस वृक्ष का पत्ता है तथा पूर्वजन्म के किए गए पाप उसके सार भाग है। शोक उसकी शाखा, मोह और चिंता डालियाँ एवं भय उसका अँकुर है। मोह में डालने वाली तृष्णा रूपी लताएँ उसमें लिपटी हुई है।

वेदव्यास
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करुणा अपना बीज अपने आलंबन या पात्र में नहीं फेंकती है अर्थात् जिस पर करुणा की जाती है, वह बदले में करुणा करने वाले पर भी करुणा नहीं करता— जैसा कि क्रोध और प्रेम में होता है—बल्कि कृतज्ञ होता अथवा श्रद्धा या प्रीति करता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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राजन! आपका कल्याण हो। अत्यंत अभिमान, अधिक बोलना, त्याग का अभाव, क्रोध, अपना ही पेट पालने की चिंता और मित्र द्रोह—ये छह तीखी तलवारें देह-धारियों की आयु को काटती हैं। ये ही मनुष्यों का वध करती है, मृत्यु नहीं।

वेदव्यास
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क्रोध से अंधा हुआ व्यक्ति ही परमांध होता है क्योंकि उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है। केवल नेत्र से अंधा हुआ मनुष्य अंधा नहीं होता।

कवि कर्णपूर
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क्रोध, हर्ष, अभिमान, लज्जा, उद्दंडता, स्वयं को बहुत अधिक मानना—ये सब जिस मनुष्य को उसके लक्ष्य से नहीं हटाते, उसी को पंडित कहा जाता है।

वेदव्यास
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न्यायप्रिय स्वभाव के लोगों के लिए क्रोध एक चेतावनी होता है, जिससे उन्हें अपने कथन और आचार की अच्छाई और बुराई को जाँचने और आगे के लिए सावधान हो जाने का मौक़ा मिलता है। इस कड़वी दवा से अक्सर अनुभव को शक्ति, दृष्टि को व्यापकता और चिंतन को सजगता प्राप्त होती है।

प्रेमचंद
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व्यंग्य और क्रोध में आग और तेल का संबंध है।

प्रेमचंद
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महापुरुषों के क्रोध को शांत करने का उपाय उनकी शरण में चले जाना है।

कालिदास
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दूसरों से गाली सुनकर भी स्वयं उन्हें गाली दे। गाली सहन करने वाले का रोका हुआ क्रोध ही गाली देने वाले को जला डालता है और उसके पुण्य भी ले लेता है।

वेदव्यास
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वही चीज़ एक निगाह से देखें, ग़ुस्सा आता है। दूसरी निगाह से देखें, हँसी आती है। क्या अच्छा यह नहीं कि हम ग़ुस्सा करें, हँसें?

महात्मा गांधी
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क्रोध से कलुषित बुद्धि कर्तव्य-अकर्तव्य का विचार नहीं करती।

बाणभट्ट
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हे मन! यदि तुझे क्रोध ही करना है तो क्रोध पर कर। निंदा ही करनी है तो अपनी देह की कर। द्रोह ही करना है तो अधर्म से कर, और स्नेह ही करना है तो भगवान से कर।

दयाराम
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क्रोध-भरे दिल से प्रार्थना करने में दिल की स्वच्छता नहीं हो सकती, इसलिए शांति को ही प्रार्थना समझें।

महात्मा गांधी
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क्रोधी मनुष्य पाप कर सकता है, क्रोधी गुरुजनों की हत्या कर सकता है, क्रोधी कठोर वाणी द्वारा श्रेष्ठ जनों का अपमान भी कर सकता है।

क्रोधी मनुष्य यह नहीं समझ पाता कि क्या कहना चाहिए तथा क्या नहीं। क्रोधी के लिए कुछ भी अकार्य एवं अवाच्य नहीं है।

वेदव्यास
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आज्ञा का उल्लंघन सद्गुण केवल तभी हो सकता है जब वह किसी अधिक ऊँचे उद्देश्य के लिए किया जाए और उसमें कटुता, द्वेष या क्रोध हो।

महात्मा गांधी
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वे महान् पुरुष धन्य हैं जो अपने उठे हुए क्रोध को अपनी बुद्धि के द्वारा उसी प्रकार रोक देते हैं, जैसे दीप्त अग्नि को जल से रोक दिया जाता है।

वाल्मीकि
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मेरे सामने जब कोई असत्य बोलता है तब मुझे उस पर क्रोध होने के बजाए स्वयं अपने ही ऊपर अधिक कोप होता हैं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अभी मेरे अंदर-तह में-असत्य का वास है।

महात्मा गांधी
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अग्नि लकड़ियों को हिला देने से प्रज्वलित हो जाती है। साँप छेड़ने पर अपना फन फैलाता है। इसी प्रकार मनुष्य भी प्रायः क्षोभ से अपने पराक्रम को प्राप्त होता है।

कालिदास
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तब मेरा शीतल क्रोध उस जल के समान हो उठा, जिसकी तरलता के साथ, मिट्टी ही नहीं, पत्थर तक काट देने वाली धार भी रहती है।

महादेवी वर्मा
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बुद्धिमान क्रोध के वेग को जीत लेते हैं तथा क्षुद्र लोग क्रोध से तत्काल ही पराजित हो जाते हैं।

माघ
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ग़ुस्सा करने का मतलब है थोड़ा पागल होना।

महात्मा गांधी
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एक ग़ुस्सा था रुके हुए पानी की तरह जिसके निकलने की कोई राह नहीं थी, इसलिए जहाँ वह रुका हुआ था, उन दीवारों को ही चाट रहा था।

अमृता प्रीतम
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क्रोध प्राणहारी शत्रु है। क्रोध मित्रमुख शत्रु (ऊपर से मित्र किंतु अंदर से शत्रु) है। क्रोध महातीक्ष्ण तलवार है तथा क्रोध सब कुछ को खींच लेता है।

वाल्मीकि
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कोई स्वयं अपनी रक्षा करना चाहे तो क्रोध से रक्षा करे। अन्यथा क्रोध ही उसे मार डालेगा।

तिरुवल्लुवर
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ग़ुस्सा करने का मतलब है थोड़ा पागल होना।

महात्मा गांधी
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लाल-लाल आँखों से देखने से कोई अच्छी चीज़ नहीं होती। इससे विचार साफ़ हो सकते हैं, और हमारे कर्म।

जवाहरलाल नेहरू
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क्रोध के लक्षण शराब और अफ़ीम दोनों से मिलते हैं। शराबी की भाँति क्रोधी मनुष्य भी पहले आवेशवश लाल-पीला होता है। फिर यदि आवेश के मंद पड़ जाने पर भी क्रोध घटा हो तो वह अफ़ीम का काम करता है और मनुष्य की बुद्धि को मंद कर देता है। अफ़ीम की तरह वह दिमाग़ को कुतर कर खा जाता है।

महात्मा गांधी
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अत्यंत क्रोधी स्वभाव का नेत्रधारी भी अंधा ही होता है।

बाणभट्ट
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क्रोध का एक हल्का रूप है चिड़चिड़ाहट, जिसकी व्यंजना प्रायः शब्दों ही तक रहती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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अधिकांश ग़ुस्सैल लोग दो श्रेणियों में आते हैं–वे जो अपने ग़ुस्से पर कोई नियंत्रण नहीं रखते और इसे अपने ऊपर हावी होने देते हैं, और दूसरे वे, जो अपने ग़ुस्से में फट पड़ते हैं।

अशदीन डॉक्टर
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कुपित व्यक्ति की पहले विद्या धुँधली हो जाती है और बाद में भृकुटि।

बाणभट्ट
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क्रोध से भरा हुआ एक व्यक्ति जब यह देख लेता है कि क्रोध से छुटकारा पाने की कोशिश का कोई मतलब नहीं है, तो उसके जीवन में पहली बार व्यवस्था का आगमन होता है।

जे. कृष्णमूर्ति
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काम-क्रोध से तपस्या भंग हो जाती है, तपस्या का फल क्षण-भर में नष्ट हो जाता है।

रवींद्रनाथ टैगोर
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जब भी आपको ग़ुस्सा आए, तो उसे शांति से गुजरने दें। ग़ुस्सा शांत होने दें। जब आपका ग़ुस्सा शांत हो जाए, तो सोचें और लिखें कि कौन सी भावना ने इस ग़ुस्से को जन्म दिया।

अशदीन डॉक्टर
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जिसका क्रोध निष्फल नहीं होता और विपत्तियों को दूर कर देने वाला है, उसके वश में लोग अपने आप हो जाते हैं।

भारवि
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क्रोध उन लोगों के ख़िलाफ़ अधिक स्वतंत्र रूप से प्रकट होता है, जो आपके सबसे क़रीब हैं… इतने क़रीब कि भरोसा होता है कि क्रोध और चिड़चिड़ेपन को माफ़ कर दिया जाएगा।

कार्सन मैक्कुलर्स
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दुःख हो या क्रोध, उसे पीना पड़ता है।

कृष्ण कुमार
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